अपेक्षा बंधन है, जहर है
उत्तरदायित्व सदैव स्वतंत्रता का सबसे पहला कदम है. किसी दूसरे के कंधों पर उत्तरदायित्व डाल देना, स्वतंत्रता के अवसर को चूक जाना है, गंवा देना है.
धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो |
दोनों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता. वे अविभाज्य रूप से एक हैं. यह सच है कि संपूर्ण उत्तरदायित्व शिष्य का ही है, गुरु तो केवल एक उत्प्रेरक है, बहाना है परंतु उत्तरदायित्व को स्वीकार करना हिम्मत का काम है. स्वतंत्रता हर कोई चाहता है, पर उत्तरदायित्व कोई नहीं चाहता. और समस्या यह है कि वे सदा साथ-साथ रहते हैं.
यदि तुम उत्तरदायित्व नहीं चाहते, तो किसी न किसी रूप में गुलाम जरूर बना लिए जाओगे. यह गुलामी आध्यात्मिक भी हो सकती है. राजनीतिक गुलामी, आर्थिक गुलामी तो ऊपरी है, बनावटी है; तुम उनके खिलाफ आसानी से विद्रोह कर सकते हो. लेकिन आध्यात्मिक गुलामी इतनी गहरी है कि उसके खिलाफ विद्रोह करने का खयाल तक नहीं आता और सीधा कारण यह है कि यह गुलामी है ही इसलिए क्योंकि तुमने स्वयं इसे चाहा है, मांगा है.
दूसरी गुलामियां तुम्हारे ऊपर लादी जाती हैं; तुम उन्हें उतार कर फेंक सकते हो, क्योंकि वे तुम्हारे विपरीत हैं. यह गुलामी, आध्यात्मिक गुलामी, तुम्हें इच्छा के विपरीत नहीं मालूम पड़ती बल्कि एक बड़ी सांत्वना मालूम होती है-यह सांत्वना कि तुम्हारा उत्तरदायित्व किसी ऐसे व्यक्ति ने अपने ऊपर ले लिया है जो जानता है; अब तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं. लेकिन स्मरण रहे, उत्तरदायित्व के साथ-साथ तुमने स्वतंत्रता भी गंवा दी.
प्रत्येक अपेक्षा एक बंधन है जो देर-सबेर यह निराशा में ही ले जाती है. कोई भी अपेक्षा पूरी हो नहीं सकती क्योंकि कोई भी तुम्हारी अपेक्षाएं पूरी करने को बाध्य नहीं है; उसके पास उसकी स्वयं की अपेक्षाएं हैं. गुरु-शिष्य संबंध किसी भी प्रकार की आशा-अपेक्षाओं का संबंध नहीं है. अपेक्षा तो वह जहर है जो सब संबंधों को नष्ट कर देता है. जिस क्षण भी अपेक्षा आई, प्रेम घृणा में बदल जाता है. मित्रता शत्रुता बन जाती है.
अपेक्षा का जादू हर सुंदर चीज को कुरूपता में बदल देता है. लेकिन तुम्हारा पूरा जीवन अपेक्षाओं से भरा है. तुम्हारा मन अपेक्षा के अतिरिक्त और कुछ जानता ही नहीं. इसलिए जब तुम गुरु के पास भी आते हो, तब भी तुम्हारा मन अपनी अपेक्षाएं, आदतें, अपना पुराना ढर्रा साथ लेकर आता है. फिर ऐसे लोग भी हैं जो गुरु होने का ढोंग रच रहे हैं. यही उन्हें परखने की कसौटी है. यदि कोई तुम्हारी अपेक्षाएं पूरी करने को तैयार है तो वह गुरु नहीं है, वह केवल तुम्हारा शोषण कर रहा है.
साभार: ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन
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