आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा
महत्वाकांक्षा आत्मविश्वास की कमी को इंगित करती है.
धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर |
जब तुम जानते हो कि तुम किसी चीज को सरलता से प्राप्त कर सकते हो, तब उसके प्रति तुम्हारी कोई महत्वाकांक्षा नहीं होती. तुम्हें केवल विश्वास होता है कि तुम इसे कर सकते हो. तुम्हारा महत्वाकांक्षी होना अनिश्चितता और चुनौती का सूचक है जो आत्मविश्वास के विपरीत है. इसलिए जिस व्यक्ति में पूर्ण आत्मविश्वास होता है, वह महत्वाकांक्षी नहीं हो सकता.
यह भी सत्य है कि जिस व्यक्ति में बिल्कुल भी आत्मविश्वास नहीं होता वह भी महत्वाकांक्षी नहीं हो सकता. इसलिए किसी महत्वाकांक्षा को रखने के लिए व्यक्ति में थोड़े विश्वास और आत्मस्वरूप की अज्ञानता दोनों का होना आवश्यक है. आत्म ज्ञान के बिना पूर्ण विश्वास का होना असंभव है. आत्मज्ञान के बाद कुछ भी प्राप्त करने की अभिलाषा नहीं होती क्योंकि इस सम्पूर्ण सृष्टि में जो कुछ भी विद्यमान है, वह स्वयं की चेतना के खेल का ही प्रदर्शन है.
लोगों को महत्वाकांक्षी होने पर गर्व होता है परंतु एक ज्ञानी व्यक्ति उन पर मुस्कुराता है. महत्वाकांक्षा कभी भी उन चीजों के प्रति नहीं होती जिन्हें तुम बिना किसी प्रयास के प्राप्त कर सकते हो. जिस चीज के लिए तुम्हें कुछ प्रयास करना पड़ता है, जिसको पूर्ण करने में कोई चुनौती स्वीकार करनी पड़ती है और जिसमें तुम्हें कोई संशय होता है कि तुम प्राप्त करने में समर्थ हो या नहीं, केवल उसी के लिए तुम्हारी महत्वाकांक्षा होती है. साथ ही महत्वाकांक्षा उस पल के आनन्द को भी समाप्त कर देती है.
आत्मज्ञान होने पर तुम्हारे लिए न ही किसी चुनौती का कोई महत्व होता है और न ही तुम्हें कोई प्रयास करने की जरूरत पड़ती है. प्रकृति तुम्हारे सभी मन्तव्यों को उठने से पहले ही पूर्ण करने के लिए तैयार रहती है. जिससे तुम्हारे अन्दर कोई इच्छा या महत्वाकांक्षा रहने ही नहीं देती और न ही अज्ञानी की इच्छाओं को पूर्ण होने देती है या उनसे मुक्त होने देती है. क्या तुम अब भी महत्वाकांक्षी होना चाहते हो या कि तुम्हारी महत्वाकांक्षा केवल महत्वाकांक्षा से मुक्त होना है.
संपादित अंश ‘सच्चे साधक के लिए एक अंतरंग वार्ता’ से साभार
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