सृष्टि का आंतरिक सौंदर्य

Last Updated 31 Jul 2014 12:19:19 AM IST

परमात्मा, ईश्वर, ब्रह्मा, परमपिता आदि कई नामों से पुकारी जाने वाली एक अनादि शक्ति का प्रकाश और उसकी प्रेरणा से ही इस जगत को और जगत के पदार्थों को स्फुरण मिल रहा है.


धर्माचार्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

उसी के प्रभाव से सृष्टि के विभिन्न पदार्थों का ज्ञान, कार्य एवं सौन्दर्य प्रतिभासित होता है.

वही अपने समग्र रूप में अवतीर्ण हो सत्य रूप में प्रतिष्ठित होता रहता है. साधक जब विराट जगत के रूप में परमात्मा का दर्शन करता है. उन्हीं की चेतना को सूर्य, पृथ्वी, चन्द्रमा, तारागण आदि में प्रकाशित होते देखता है, तो उसे सत्य का दर्शन होता है.

जगत और अध्यात्म का, स्थूल और सूक्ष्म का, दृश्य और तत्त्व का जहां परिपूर्ण सामंजस्य होता है, वहीं सत्य की परिभाषा पूर्ण होती है और यह सत्य जब जीवन साधना का आधार बनता है, तब जगत की प्रेरक और सर्जन शक्ति का परिचय प्राप्त होता है.

इसलिए शास्त्रकारों ने सत्य को ही जीवन का सहज दर्शन माना है. महर्षि विश्वामित्र ने कहा है- सत्य से ही सूर्य तप रहा है, सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है. सत्य सबसे बड़ा धर्म है और सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है.

समग्र अध्यात्म दर्शन का मूल आधार सत्य है. पूर्व और पश्चिम जिस प्रकार एक ही अखंड क्षितिज में स्थित हैं, उसी प्रकार जगत और अध्यात्म, दृश्य और अदृश्य सत्ता एक ही सत्य के दो पहलू हैं. उनमें से एक का भी त्याग करने पर सत्य के दर्शन असंभव हैं. सत्य के साथ शिव और सुन्दर भी जुड़े हैं.

शिव अर्थात आनन्द कल्याण और सुन्दर अर्थात् पुलक उत्पन्न करने वाली भावनात्मक विशेषता.

जब जगत की समस्त घटनाओं को केवल बाह्य घटनाएं समझकर उनका विश्लेषण किया जाता है, तो उनसे कोई आनन्द नहीं मिलता. पटरी पर रेल, सड़क पर मोटर, शिलाखंडों पर नदी की धारा के समान मन मानस पर भी जगत की धारा बहती रहती है.

चित्त पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता. सब कुछ निर्जीव, नीरस, अरुचिकर लगने लगता है, लेकिन जीवन में नवीनता, सरसता और अहोभाव का समावेश हो तो परमात्मा की सृष्टि सुन्दरतम प्रतीत होती है.

परमात्मा ने सृष्टि के निर्माण में अपनी पूरी कलात्मकता का परिचय दिया है और इसको इतना सुन्दर बनाया है कि उसे रस भाव से देखें तो यह उपवन असंख्य प्रकार के पुष्पों से महकता-पुलकता अनुभव होने लगे.
गायत्री तीर्थ शांतिकुंज



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