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भगवान शंकर को गंगा का जल अत्यंत प्रिय है. यदि यह जल उत्तरवाहिनी का हुआ तो अति उत्तम. पौराणिक कथा के अनुसार, यहां ऋषि जाहनु का आश्रम था. जब भगीरथ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर ला रहे थे, तो कोलाहल से क्रोधित होकर ऋषि जाहनु ने गंगा का आचमन कर पी लिया. किंतु बाद में भगीरथ के अनुनय-विनय करने पर अपनी जंघा से गंगा को प्रवाहित किया जिसके कारण पतित पावनी गंगा जाह्नवी कहलायी.
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