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- ऐसा दशहरा जिसमें रावण नहीं मारा जाता

विजयादशमी के दिन जब पूरा देश रावण वध करने में जुटा रहता है. उस दिन बस्तर में भितर रैनी बनाई जाती है जिसमें आठ पहियों वाले विशाल रथ से प्ररिक्रमा होती है. इस रथ को खींचने का विशेषाधिकर किलेपाल के माडियां जनजाति का है. इसी दिन आधी रात को माडिया जाति के लोग रथ को चुराकर नगर सीमा से लगे तीन किलोमीटर दूर कुम्हाकोट ले जाते हैं. अगले दिन पूजा विधानों के अलावा कुम्हडाकोट में राजपरिवार के सदस्य आम जनता के साथ नवाखाई में शामिल होकर नया अन्न ग्रहण करते हैं. इसके बाद रथ की वापसी यात्रा शुरू होती है. दो व्यक्ति रथ के ऊपर सफेद कपड़ा फेंककर वापस खींचते रहते हैं. इसे वीरता प्रतीक माना जाता है. बस्तर महाराजा दिग्पाल देव के समय रथ के आगे धुरधारी ग्रामीण जिन्हें धुनकांडिया कहा जाता है, वानरों की तरह व्यवाहर करते जाते थे और किसी भी दुकान से कोई भी वस्तु उठा लेते थे जिसकी भरपाई राजा के द्वारा की जाती थी. जिस दुकान से जो चीज उठाते थे वह दुकानदार यह मानता था की अगले साल उस वस्तु का व्यवसाय और अच्छा होगा.