ऐसा दशहरा जिसमें रावण नहीं मारा जाता

PICS: यहां 75 दिन तक मनाते हैं दशहरा लेकिन नहीं होता रावण वध

बस्तर दशहरे की शुरुआत होती है श्रावण मास की अमावस्या के दिन पाठजात्रा विधान से. इसमें भव्य रथ निर्माण के लिए जंगल से काट कर लाई गई पहली लकड़ी की पूजन रस्म निभाई जाती है. इस विधान के मूल में स्थानीय आदिवासियों की वनों और वृक्षों के प्रति श्रद्धा व आभार की अभिव्यति की भावना शामिल है. पर्व के दूसरे चरण में इसके संचालन के लिए जनप्रतिनिधियों की सभा की ओर से विभिन्न समितियों का गठन किया जाता है, जो लोकतंत्र के प्रति गहरी आस्था का उदहारण है. चयनित प्रतिनिधियों की ओर से बस्तर जिले के 3618 गांव के देवी देवताओं, पुजारियों और ग्राम वासियों को इस वार्षिकोत्सव मे भाग लेने का निमंत्रण दिया जाता है.

 
 
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