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मान्यता है कि यह मंदिर महाभारतकाल का है पर प्राचीन मंदिर वर्षों पहले नष्ट हो गया था. भक्तों की श्रद्धा देखते हुए इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया मगर मंदिर की प्राचीन प्रतिमा में कोई बदलाव नहीं किया गया. यह प्राचीन मूर्ति किस कालखंड की है, इसका सही जानकारी अब तक नहीं हो पायी है. मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है. सामने बलि स्थल है जहां रोजाना बकरों की बलि चढ़ाई जाती है. यहां शादियां भी कराई जाती हैं. यहां मुंडन और जनेऊ आदि संस्कार होते हैं. यहां एक ऐसा कुंड है जिसका नाम पापहरण कुंड है जो रोगग्रस्त भक्तों के रोगों से छुटकारा दिलाता है.
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