इस मंदिर को औरंगजेब भी नहीं कर पाया खंडित

PICS: जीण माता मंदिर को औरंगजेब भी नहीं कर पाया खंडित

अपनी भूल के लिए बहन से क्षमा-याचना की और वापस घर चलने का आग्रह किया. जब जीण ने हर्ष की बात नहीं मानी तो हर्ष भी घर नहीं लौटा और दूसरे पहाड़ की चोटी पर भैरव की साधना करने लगा. कालांतर में यह चोटी ‘हर्षनाथ पहाड़’ नाम से प्रसिद्ध हुई. वहीं रहकर जीण ने नवदुर्गा माताओं की कठोर तपस्या की और सिद्धि के बल पर दुर्गा बन गई. हर्ष भी भैरव की साधना कर हर्षनाथ भैरव बन गया. इस प्रकार यह स्थान जीण और हर्ष की कठोर तपस्या के बल पर आस्था का केंद्र बन गया. इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई. आज भी श्रद्धालु इनकी पूजा करने के लिए देश के कोने- कोने से पहुंचते हैं.

 
 
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