दम तोड़ रही सहरी जगाने की परम्परा

Photos: सिमटती जा रही है सहरी जगाने की परम्परा

उन्होंने बताया कि पुराने जमाने में सम्पन्न लोग कमजोर तबके के लोगों की अच्छे अंदाज से खिदमत करते थे और फेरी के बदले बख्शीश भी इसी का हिस्सा हुआ करती थी. अमीर लोग इन फेरी वालों के त्यौहार की जरूरतें पूरी कर देते थे, मगर अब वह फिक्र अपना नूर खो चुकी है.

 
 
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