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- शिल्प व अध्यात्म का अप्रतिम केन्द्र दिलवाड़ा

यहां के जैन मंदिरों में सबसे बड़े मंदिर विमल वासाही मंदिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य वंश के राजा भीमदेव के सेनापति विमल शाह ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूरी होने पर करवाया था. इस मंदिर में तीर्थकरों के साथ कई हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं. मंदिर का सबसे उत्कृष्ट कला का भाग इसका कलामंडप है जिसके बारह अलंकृत स्तम्भों और तोरणों पर टिका एक विशाल गोल गुम्बज है जिसमें हाथी, घोड़े, हंस, वाद्ययंत्रों सहित नर्तकों आदि की आकर्षक प्रतिमाएं उकेरी गयी हैं. इस मंदिर समूह के दूसरे प्रमुख मंदिर ‘‘लुन वासाही मंदिर’ का निर्माण वास्तुपाल और गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव के मंत्री व उनके भाई तेजपाल ने करवाया था. इसके अलावा मंदिर परिक्षेत्र में पीतल हर अर्देश्वर मंदिर, खारतशाही पाश्र्वनाथ मंदिर और भगवान महावीर स्वामी मंदिर स्थित हैं. इसमें महावीर स्वामी मंदिर सबसे छोटा और सादगीपूर्ण है. इसी प्रकार पीतल हर मंदिर का निर्माण गुजरात के भीमशाह ने करवाया था. बाद में सुंदर और गदा नामक व्यक्तियों ने इसका जीर्णोद्धार करवाया व इसमें ऋषभदेव की पंचधातु की मूर्ति स्थापित करवायी जिसका वजन एक मन माना जाता है. इसके अलावा यहां एक चौमुखी मंदिर भी दर्शनीय है. इसे खारतवासी मंदिर भी कहा जाता है. इसमें भगवान पार्श्वनाथ की सुंदर मूर्ति विराजमान है. भूरे पत्थर से बना यह तीन मंजिला मंदिर अपने शिखर सहित दिलवाड़ा समूह सभी मंदिर में सबसे ऊंचा है. समूह के पांचवें खेताम्बर मंदिर के साथ भगवान कुथुनाथ ने यहां काले पत्थर का एक ऊंचा स्तंभ बनाया था. संक्षेप में कहें तो विस्मयकारी सुकोमल, सुंदर पाषाण वास्तुशिल्प से अलंकृत दिलवाड़ा के जैन मंदिर भारतीय शिल्पकला का मानव जाति को एक अनूठा उपहार माना जा सकता है.