शिल्प व अध्यात्म का अप्रतिम केन्द्र दिलवाड़ा

Photos: दिलवाड़ा के जैन मंदिर: शिल्प व अध्यात्म का अप्रतिम केन्द्र

इन मंदिरों की भव्यता उनके वास्तुकारों की भवन-निर्माण में निपुणता, उनकी सूक्ष्म पैठ और छेनी पर उनके असाधारण अधिकार का परिचय देती है. इन मंदिर की प्रमुख विशेषता यह है की सभी की छतों, द्वारों, तोरण, सभा-मंडपों का उत्कृष्ट शिल्प एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है. पांच मंदिरों के इस समूह में दो विशाल मंदिर हैं और तीन उनके अनुपूरक. मंदिरों के प्रकोष्ठों की छतों के गुंबद व स्थान-स्थान पर उकेरी गयीं सरस्वती, अम्बिका, लक्ष्मी, सर्वेश्वरी, पद्मावती, शीतला आदि देवियों की दर्शनीय प्रतिमाएं इनके शिल्पकारों की छेनी की निपुणता के साक्ष्य खुद-ब-खुद प्रस्तुत कर देती हैं. यहां उत्कीर्ण मूर्तियों और कलाकृतियों में शायद ही कोई ऐसा अंश हो जहां कलात्मक पूर्णता के दर्शन न होते हों. शिलालेखों और ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार प्राचीन काल में यह स्थल अबू नागा जनजाति का प्रमुख केंद्र था. महाभारत में अबू पर्वत में महर्षि वशिष्ठ के आगमन का उल्लेख मिलता है. इसी तरह जैन शिलालेखों के अनुसार जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर ने भी यहां के निवासियों को उपदेश दिया था.

 
 
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