सपनो को सजाने में लगे योगी के शिष्य

Last Updated 05 Feb 2009 10:54:49 AM IST


महर्षि महेश योगी की पुण्यतिथि पांच फरवरी पर विशेष विश्व में भावातीत ध्यान के माध्यम से भारतीय अध्यात्म और वैदिक धर्म की पताका फहराने वाले महर्षि महेश योगी के महाप्रयाण के बाद निश्चित तौर पर उनके शिष्यों के बीच एक महती शून्यता आ गयी थी लेकिन महर्षि के अनुयायी उनके स्वप्न प्रकल्पों को साकार करने के लिए तेज गति से काम कर रहे हैं। महर्षि के जन्मस्थान पांडुका ‘छत्तीसगढ़' स्थित आश्रम के सूत्रों का कहना है कि महर्षि महेश योगी के अनेक प्रकल्पों और परियोजनाओं पर तेज गति से काम हो रहा है और उनके विश्व शांति के स्वप्न को साकार करने की दिशा में कई योजनायें चल रहीं हैं। महर्षि आश्रम पांडुका के व्यवस्थापक मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि हालांकि महर्षि का जाना निश्चित तौर पर हम सभी के बीच एक शून्यता जैसा था। वह अपने कई सपनों को छोड़ गये जिन्हें साकार करने के लिए हम सभी लगे हुए हैं। महर्षि के जन्मस्थान को लेकर विरोधाभास है। पांडुका के अलावा कुछ लोग मध्य प्रदेश के जबलपुर में उनका जन्मस्थान मानते हैं। लेकिन पांडुका आश्रम के सूत्रों का दावा है कि पांडुका ही महर्षि का जन्मस्थल है और यहां जिस कच्चे मकान में आश्रम है वही महर्षि का घर हुआ करता था। उनके जन्म के बाद उनके पिताजी जबलपुर चले गये थे। श्रीवास्तव के अनुसार पांडुका आश्रम के सामने लगी प्राचीन पट्टिका भी इस बात की पुष्टि करती है कि महर्षि महेश योगी का जन्म छत्तीसगढ़ के पांडुका में ही हुआ था। महर्षि महेश योगी ने गत वर्ष पांच फरवरी को नीदरलैंड में एम्सटर्डम के पास व्लाड्राप में अंतिम सांसें लीं थीं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 75 किलोमीटर दूर पांडुका में 12 जनवरी 1917 को जन्मे महेश प्रसाद वर्मा जबलपुर के एक रक्षा प्रतिष्ठान गन कैरेज फैक्टरी में द्वितीय श्रेणी कर्मचारी थे। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से साक्षात्कार के बाद महेश प्रसाद ने वैदिक धर्म की राह अपना ली और महर्षि महेश योगी बन गये। महर्षि अपने गुरू स्वामी ब्रह्मानंद के सचिव भी रहे और उनके निधन के बाद 1953 में उत्तरकाशी आ गये। उन्होंने अपने गुरू द्वारा दी गयी भावातीत ध्यान की सीख वर्ष 1955 के बाद पूरे विश्व को देना शुरू कर दिया। महर्षि महेश योगी ने 1958 में विश्व का पहला दौरा किया। महर्षि महेश योगी के प्रमुख शिष्यों में बीटल्स संगीत समूह भी शामिल रहा। महर्षि के भावातीत ध्यान में ऐसी विशेषता थी कि पूरी दुनिया ने इसके प्रभाव को माना था। उस समय पूरी दुनिया जिस बीटल्स की दीवानी हुआ करती थी वही संगीत समूह महर्षि के प्रति समर्पित हो गया था। अपने निधन से करीब एक माह पूर्व 11 जनवरी 2008 को महर्षि ने अपनी गतिविधियों से अवकाश लेकर मौन धारण कर लिया था। महर्षि ने भागवद गीता को योग की धर्म पुस्तक कहा और वह कहते थे गीता ज्ञान को ठीक से नहीं समझ पाने के कारण हम योग को नहीं समझ पाते जिससे हमारे भीतर विचारों की कमी रहती है। छत्तीसगढ़ के पांडुका और जगदलपुर स्थित उनके आश्रमों में भारत के कई प्रदेशों के अलावा नेपाल आदि से आये बच्चे भी दीक्षा ग्रहण करते हैं। महर्षि ने 1974 में षिकेश के अपने निर्माणाधीन आश्रम में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामा चरण शुक्ल की ध्यान योग संबंधी जिज्ञासा पर कहा था धर्म सुनकर नहीं जाना जाता। वह तो सिर्फ साक्षात्कार है। ध्यान योग उसकी अनुभूति है। इसलिए मैं जब नीलगगन में शून्य समाधि की बात करता हूं तब उसका अर्थ स्पष्ट है कि अपने अंतर में झांको।



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