राष्ट्रीय पुरस्कारों में 'अलीगढ़' की अनदेखी से हंसल मेहता निराश
समीक्षकों द्वारा सराही गई फिल्म \'अलीगढ़\' के निर्देशक हंसल मेहता का कहना है कि उनकी फिल्म को 64वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में नजरअंदाज किया जाना निराशाजनक है.
अलीगढ़ (फाइल फोटो) |
लेकिन, उन्होंने आशा जताई कि समलैंगिकों के अधिकारों पर बहस को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा. \'अलीगढ़\' एक प्रोफेसर की कहानी है जिसे समलैंगिकता के कारण नौकरी से निकाल दिया जाता है.
इस किरदार को अभिनेता मनोज वाजपेयी ने निभाया है. एक युवा पत्रकार, प्रोफेसर की इस कहानी को दुनिया को बताता है. पत्रकार की भूमिका राजकुमार राव ने निभाई थी. समलैंगिकों के अधिकार पर बनी इस फिल्म को, विशेषकर इसमें मनोज वाजपेयी के अभिनय को सर्वत्र सराहा गया था.
शुक्रवार को नई दिल्ली में 64वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा के बाद मेहता ने टिव्टर पर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं.
उन्होंने लिखा, \'मुझसे फोन पर पूछा जा रहा है कि क्या \'अलीगढ़\' राष्ट्रीय पुरस्कारों में शामिल हुई थी और क्या मैं निर्णयों से निराश हूं? हां, \'अलीगढ़\' शामिल हुई थी और हम अन्य सहयोगियों की तरह निराश हुए हैं, लेकिन मैं सभी विजेताओं को बधाई देना चाहता हूं\'.
मेहता ने कहा कि पुरस्कार निर्णायक मंडल के लिए प्रत्येक वर्ष कठिन काम होता है. ऐसे में कई लोगों का निराश होना स्वाभाविक है.
फिल्मकार ने कहा, \'कुछ अच्छी फिल्में पुरस्कृत की गई हैं और कुछ के बेहतरीन काम को सम्मानित किया गया है. मेरे सभी साथी जिन्होंने अपना दिल \'अलीगढ़\' के लिए खोल दिया, उन सब से कहना चाहता हूं कि चलो प्यार और जिम्मेदारी के साथ अपनी फिल्में बनाते हैं. पुरस्कार मिले या न मिले. नतीजों पर सिर खपाने का कोई अर्थ नहीं है\'.
मेहता ने कहा, \'आगे बढ़ने में और लगातार काम करते रहने में ही खूबी है, उन फिल्मों को बनाने में जिनमें हम विश्वास रखते हैं\'. उन्होंने कहा कि अधिक जरूरी यह है कि समलैंगिकों के अधिकारों की लड़ाई जारी रहे.
उन्होंने कहा, \'यदि \'अलीगढ़\' ने इन विषयों पर प्रकाश डाला है और यदि भारत में उपेक्षित एलजीबीटीक्यू आबादी आत्मसम्मान के साथ आगे बढ़ती है और बिना शर्त मुख्यधारा का हिस्सा बनती है तो हम समझेंगे कि \'अलीगढ़\' अपने मकसद में कामयाब रही\'.
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