बीसवीं सदी के महान शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी

Last Updated 03 Feb 2012 04:46:03 PM IST

बीसवीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत को नयी दिशा और अलहदा आयाम देने वालों में भीमसेन जोशी का नाम प्रमुख है.


चार फरवरी को जयंती पर विशेष

1985 में तो वह ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के जरिये घर-घर में पहचाने जाने लगे थे. तब से लेकर 26 साल बाद आज भी इस गाने के बोल और धुन पंडित
जी की पहचान बने हुए हैं.

पंडित भीमसेन जोशी को बुलंद आवाज, सांसों पर बेजोड़ नियंत्रण, संगीत के प्रति संवेदनशीलता, जुनून और समझ के लिए जाना जाता था. उन्होंने सुधा
कल्याण, मियां की तोड़ी, भीमपलासी, दरबारी, मुल्तानी और रामकली जैसे अनगिनत राग छेड़ संगीत के हर मंच पर संगीतप्रमियों का दिल जीता.

पंडित मोहनदेव ने कहा, ‘उनकी गायिकी पर केसरबाई केरकर, उस्ताद आमिर खान, बेगम अख्तर का गहरा प्रभाव था. वह अपनी गायिकी में सरगम और तिहाईयों का जमकर प्रयोग करते थे. उन्होंने हिन्दी, कन्नड़ और मराठी में ढेरों भजन गाए.’

चार फरवरी, 1922 को कर्नाटक के गडग में जन्मे किराना घराने के प्रसिद्ध गायक भीमसेन जोशी का पिछले साल 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. इन
88 वर्षों में वह आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने संगीत की अनमोल विरासत की रचना करते रहे.

1933 में जोशी ने अपने संगीत गुरू की तलाश में बीजापुर का अपना घर छोड़ दिया. वह तीन साल तक उत्तर भारत के दिल्ली, कोलकाता, ग्वालियर, लखनऊ और रामपुर जैसे शहरों में घूमते रहे. जल्द ही उनके पिता ने जालंधर में उन्हें ढूंढ़ निकाला और उन्हें वापस घर ले गए.

1941 में जोशी ने 19 साल की उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी. इसके दो साल बाद वह रेडियो कलाकार के तौर पर मुंबई में काम करने लगे.

‘हिन्दुस्तानी म्यूजिक टुडे’ किताब में लेखक दीपक एस राजा ने जोशी के लिए लिखा है कि जोशी 20वीं सदी के सबसे महान शास्त्रीय गायकों में से एक थे. उन्होंने हिन्दी, कन्नड़ और मराठी में खयाल, ठुमरी और भजन गायन से तीन पीढ़ियों को आनंदित किया. उनकी अपनी अलग गायन शैली थी.

राजा के अनुसार, ‘जोशी ने सवाई गंधर्व से गायिकी का प्रशिक्षण लिया था. उनके संगीत करियर में एक से बढ़कर एक बेजोड़ उपलब्धियां शामिल हैं. जोशी ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया (एचएमवी) का प्लैटिनम पुरस्कार पाने वाले एकमात्र भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे.’

जोशी ने कई फिल्मों के लिए भी गाने गाए. उन्होंने ‘तानसेन’, ‘सुर संगम’, ‘बसंत बहार’ और ‘अनकही’ जैसी कई फिल्मों के लिए गायिकी की. पंडितजी शराब पीने के शौकीन थे लेकिन संगीत करियर पर इसका प्रभाव पड़ने पर 1979 में उन्होंने शराब का पूरी तरह से त्याग कर दिया.

भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में दिए गए अविस्मरणीय योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारतरत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक
सम्मानों से सम्मानित किया गया.
 



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