भगवती बाबू ’भूले बिसरे चित्र’
उपन्यास लेखन को नयी दिशा देने वाले रचनाकार भगवती चरण वर्मा को हिन्दी साहित्य ने ’भूले बिसरे चित्र’ बना दिया।
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भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले भगवती बाबू की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं लेकिन साहित्य जगत में आज वह लगभग बिसर से गए हैं।
भगवती चरण वर्मा हिन्दी के महत्वपूर्ण उपन्यासकार हैं। मगर हिन्दी ने उन्हें लगभग भुला सा दिया और यह कुछ उनके उपन्यास ’भूले बिसरे चित्र’ के जैसा ही हुआ।
जन्मदिन 30 अगस्त पर विशेष
भगवतीचरण वर्मा, यशपाल और अमृतलाल नागर की त्रयी के बेहद अहम रचनाकार थे, जिनके लेखन का प्रभाव आने वाली पीढ़ियों पर काफी दूर तक दिखाई देता है।
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के सफीपुर में 30 अगस्त 1903 को जन्में बाबू जी ने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं के लिए लेखन करने के बाद 1957 से स्वतंत्र लेखन शुरू किया। वर्ष 1961 में उन्हें पांच खंडों में लिखे गए उनके उपन्यास ’’भूले बिसरे चित्र’’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1971 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान प्रदान किया गया और 1978 में वह राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए। पांच अक्तूबर 1981 को उनका निधन हो गया। भगवती चरण वर्मा ने ’चित्रलेखा’ लिखा था, तब प्रेमचंद का साहित्य लोगों के जेहन में था। समसामयिक जीवन की वास्तविकताओं से इतर उस दौर में इतिहास को आधार बनाते हुए संस्कृत के शब्दों का इस्तेमाल कर चित्रलेखा की रचना करने का साहस सिर्फ वही दिखा सकते थे।
हालांकि चित्रलेखा में पाप और पुण्य को लेकर सवाल उठाए गए थे, लेकिन आध्यात्मिक और नैतिकता की दृष्टि से यह एक उत्तम उपन्यास था। आज भी यह बेहद महत्वपूर्ण है। ’’चित्रलेखा’’ पर 1941 में और 1964 में इसी नाम से दो फिल्में बनाई गई।
’’टेढ़े मेढ़े रास्ते’’ उपन्यास में आजादी के ठीक पहले और बाद के हालात का जिक्र है। इस उपन्यास में एक लय है और वास्तविकता का सटीक चित्रण भी है। इसकी भाषा आधुनिक है।
’भूले बिसरे चित्र’ और ’चित्रलेखा’ के अलावा उनके अन्य प्रमुख उपन्यास ’कहीं ना जाए का कहिये’, ’रेखा’, ’सबहीं नचावत राम गोसाई’’,’सामर्थ्य और सीमा’, ’संपूर्ण नाटक’, ’सीधी सच्ची बातें’, ’टेढ़े मेढ़े रास्ते’ और ’वह फिर नहीं आई’ हैं।
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