पैरट फीवर : कहीं कोरोना का रूप न ले ले

Last Updated 20 Mar 2024 12:50:15 PM IST

विश्व चार वर्षों से कोरोना की मार से मुक्त भी नहीं हो पाया है; अभी भी इसके कारण आए दिन तरह-तरह के वेरिएंट पैदा होने से बीमारी पीछा नहीं छोड़ रही है, दिल्ली में पिछले महीने कोरोना ने तेजी पकड़ी तो दूसरी ओर चमगादड़ों की उपस्थिति ने एक नई बीमारी को जन्म दिया है; अब तोते से बीमारी फैलने के समाचार मिल रहे हैं। यह कैसे फैल रही है, इसकी जानकारी यूरोप के देशों से मिली है। इस बीमारी को ‘पैरट फीवर’ नाम दिया गया है।


पैरट फीवर : कहीं कोरोना का रूप न ले ले

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि पक्षियों को संक्रमित करने वाली यह बीमारी अब इंसानों को भी चपेट में ले रही है। 2023-24 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, स्वीडन और नीदरलैंड में असामान्य रूप से पैरट फीवर की बीमारी फैली है; इसके कारण अनेक लोगों की मौत हुई है और कई बीमार हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सी. सिटासी 450 से अधिक पक्षी प्रजातियों के साथ जुड़ी हुई बीमारी है; इसे कुत्ते, बिल्ली, घोड़े, सूअर और सरीसृपों-जैसी विभिन्न प्रजातियों में भी पाया गया है। पक्षी विशेष रूप से पालतू पक्षी अक्सर मानव साइटोसिस पैदा करने में शामिल होते हैं। यह ज्ञात हो चुका है कि पैरट फीवर क्लैमाइडिया सिटासी वैक्टीरिया के कारण होता है।  तोते, कबूतर और मुर्गी इस जीवाणु के शिकार हो रहे हैं, इन पक्षियों से रोग फैल रहा है, कबूतर हर घर में मिल जाता है; घर में बीट भी कर जाता हैं, बीट के संपर्क में आने से बैक्टीरिया व्यक्ति को प्रभावित कर रहे हैं।

यह भी पता चला है कि यह बीमारी सभी स्तनधारियों में फैल सकती है, जिनमें कुत्ते, बिल्ली और घोड़े शामिल हैं। वातावरण में क्लैमाइडोफिला सिटासी बैक्टीरिया की उपस्थिति के कारण सांस लेने पर सिटकोसिस से संक्रमित हो सकते हैं। यह पंखों और अंडों से भी फैल सकती है। सांस लेते समय यह जीवाणु व्यक्ति के शरीर यानी फेफड़ों में सीधे पहुंच जाता है। तनाव भी गंभीर लक्षण का कारक होता है, जिसके कारण मरीज की तेजी से स्थिति बिगड़ती है और मृत्यु भी हो जाती है। कोशिका विभाजन के दौरान यह बीमारी भी तेजी से बढ़ती है, इसमें 16एस-आर आरएनए जीन होते हैं, जो सभी मनुष्यों में फैलने में सहायक होते हैं। ज्यादातर लोग संक्रमित पक्षियों, विशेषकर तोते या पालतू जानवरों की सांस, मल या पंखों की धूल से निकलने वाले कणों को सांस के माध्यम से लेकर बीमारी के शिकार हो जाते हैं।

इस बीमारी की संभावना उन लोगों में होने की ज्यादा है, जो मुर्गीपालक, पशु चिकित्सक और पालतू पशु पालक हैं। बीमारी के लक्षण फ्लू-जैसे हैं बुखार, ठंड लगना, सिर दर्द और सूखी खांसी और किसी व्यक्ति के बैक्टीरिया के संपर्क में आने के पांच से 14 दिनों के भीतर दिखाई देते हैं। सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में 2010 के बाद हर वर्ष पैरट फीवर के करीब 10 मामले सामने आते रहे हैं। हालांकि कई मामलों के निदान के आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाए क्योंकि इस बीमारी के लक्षण अन्य बीमारियों की तरह नहीं दिखे। जैसा कि नाम से पता चल रहा है कि यह रोग पक्षियों से होता है। हालांकि तोते ही इस संक्रमण के कारक नहीं हैं; अन्य जंगली और पालतू पक्षी भी संक्रमण फैला सकते हैं। संक्रमित पक्षियों में जरूरी नहीं कि बीमारी के लक्षण दिखें। बिना किसी लक्षण के वे महीनों बैक्टीरिया के साथ रह जाते हैं, लेकिन इंसान में वे लक्षण खांसी, सांस लेने में कठिनाई और सीने में दर्द के साथ निमोनिया-जैसे लक्षणों से प्रकट होते हैं। कुछ लोगों में बुखार, मांसपेशियों में दर्द, सिर दर्द और पेट की तकलीफ के लक्षण होते हैं।

पैरेट फीवर के लक्षण और बचाव

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य जुकाम-जैसे लक्षणों के अलावा कुछ लोगों में पैरट फीवर की समस्या गंभीर हो जाती है। इसलिए इस रोग का समय पर निदान जरूरी है, गंभीर परिस्थितियों में सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता के लक्षण सामने आ जाते हैं। कई मामलों में मस्तिष्क, लिवर और दिल में सूजन भी आ जाती है। इससे फेफड़ों की कार्यक्षमता भी शिथिल हो जाती है; निमोनिया होने की स्थिति भी बन जाती है। पैरट फीवर के इलाज के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार निदान होने पर कुछ दवाओं को लिया जा सकता है। इसमें एंटीबायोटिक दवाएं ली जा सकती हैं लेकिन इनका इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए क्योंकि विभिन्न व्यक्तियों की शारीरिक परिस्थितियां भिन्न होती हैं। यदि आपके पास पालतू पक्षी हैं, तो जहां उन्हें रखा गया है, उस स्थान की साफ-सफाई नियमित करनी चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह है कि रोकथाम और नियंत्रण के लिए:  आरटीपीसीआर का उपयोग करके निदान के लिए सी. सिटासी रोग के संदिग्ध मामलों का परीक्षण करने के लिए चिकित्सकों में जागरूकता बढ़ाने का सभी लोग प्रयास करें, तभी बीमारी पर नियंत्रण पाने में सफलता मिल सकती है। पैरट फीवर कोरोना-जैसा रूप न ले ले, इसके लिए सभी देशों को सामूहिक जिम्मेदारी से प्रयास करने चाहिए। कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि अमेरिका को इस बीमारी का पता था और इसका प्रयोग वह जीवाणु युद्ध के लिए भी करना चाहता था लेकिन अंतरराष्ट्रीय संधि ने इसके प्रयोग को रोकने की पहल की जिससे अमेरिका ने इसका प्रयोग स्थगित कर दिया था।

भगवती प्रसाद डोभाल


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