मुद्दा : फल-फूल रही है दूध की आर्थिकी

Last Updated 25 Jan 2024 01:33:19 PM IST

पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने देश में दुग्ध उत्पादन और उसकी खपत की अर्थव्यवस्था के फलने-फूलने की रिपोर्ट जारी की है।


मुद्दा : फल-फूल रही है दूध की आर्थिकी

भारत दुग्ध उत्पादन में पहले से ही दुनिया में पहले सोपान पर है। वैश्विक दुग्ध उत्पादन में 24 फीसद का योगदान दे रहा है। बीते एक दशक में दुग्ध उत्पादन एवं उत्पादकता में आजादी के बाद से सर्वाधिक वृद्धि हुई है। दूध की उपलब्धता बढ़ी तो भारतीयों के खान-पान की आदत में दूध और दुग्ध उत्पादों का सेवन व खपत भी बढ़ गई। अब आम भारतीय हर दिन औसतन 65 ग्राम अधिक दूध पीने लगा है। वैश्विक औसत 394 ग्राम है।

ब्रिटिश शासनकाल में सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में श्वेत या दुग्ध क्रांति ने जन्म लिया। जिस कैरा क्षेत्र से श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई, वही आजादी के बाद खेड़ा जिला बना और वर्तमान में इसे आणंद के नाम से जाना जाता है। फिरंगी हुकूमत के दौरान पॉल्सन नाम की ब्रिटिश कंपनी का इस क्षेत्र का दूध खरीदने पर एकाधिकार था। कंपनी दुग्ध उत्पादकों का लगातार शोषण कर रही थी जिसकी शिकायत किसानों ने सरदार पटेल से की। पटेल गोधन, गोरस और गोदान की हिन्दू जीवन शैली के अनुयायी थे। उन्होंने किसानों को तत्काल कंपनी को दूध बेचने से मना कर दिया। उनका मानना था कि जब कंपनी को दूध मिलेगा ही नहीं, तो उसे किसानों की शत्रे मानने पर मजबूर होना पड़ेगा।

उन्होंने किसानों को सहकारी संस्था बनाकर स्वयं दूध और दुग्ध उत्पाद बेचने की भी सलाह दी। बाद में 1946 में पटेल ने मोरारजी देसाई और त्रिभुवन दास पटेल की सहायता से भारत की पहली दुग्ध सहकारी संस्था की स्थापना की। इसे बाद में जिला सहकारी दुग्ध उत्पादन संघ के नाम से जाना गया। 250 लीटर दूध का प्रति दिन कारोबार करने वाली इसी संस्था को आज विव्यापी संस्था ‘अमूल’ के नाम से जाना जाता है। मिशिगन स्टेट विवि से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करके भारत लौटे वर्गीज कुरियन ने सरकारी नौकरी छोड़कर इस संस्था में काम शुरू किया और भारत का पहला दूध प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किया। इसके बाद किसानों की ज्ञान परंपरा और कुरियन के यांत्रिक गठबंधन से इस संस्था ने उपलब्धि का शिखर चूम लिया। बिना किसी सरकारी मदद के देश में दूध का 70 फीसद कारोबार असंगठित ढांचा संभाल रहा है। दूध का 30 फीसद कारोबार संगठित ढांचा मसलन, डेयरियों के माध्यम से होता है। देश में दूध उत्पादन में 96 हजार सहकारी संस्थाएं जुड़ी हैं, और 14 राज्यों की अपनी दुग्ध सहकारी संस्थाएं हैं।  

दुग्ध कारोबार की सबसे बड़ी खूबी है कि इससे आठ करोड़ से ज्यादा लोगों की आजीविका जुड़ी है। रोजाना दो लाख से अधिक गांवों से दूध एकत्रित करके डेयरियों में पहुंचाया जाता है। बड़े पैमाने पर ग्रामीण सीधे शहरी एवं कस्बाई ग्राहकों को भी दूध बेचते हैं। 2013-14 में देश में 1463 लाख टन दूध उत्पादन हुआ था, जो 2022-23 में बढ़कर 2306 लाख टन हो गया। स्वतंत्रता के बाद दूध उत्पादन में यह सबसे अधिक वृद्धि है। भारत में दुग्ध उत्पादन सालाना 5.9 फीसद से ज्यादा की दर से बढ़ रहा है। दुनिया में दूध की औसत वृद्धि दर्ज प्रति वर्ष मात्र दो फीसद  है। लगभग 150 देशों में भारत के दुग्ध उत्पादों की मांग है। पिछले वर्ष 65 लाख टन दुग्ध उत्पादन का निर्यात हुआ था।

केंद्रीय पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री संजीव बालियान का कहना है, ‘देश की अर्थव्यवस्था में डेयरी सेक्टर का योगदान पांच फीसद है, और यह लगभग आठ करोड़ लोगों के रोजगार का बारहमासी मजबूत साधन है।’ दूध की अर्थव्यवस्था में समृद्धि का रास्ता राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अस्तित्व में आने के बाद खुला है, जिसकी शुरुआत दिसम्बर, 2014 में हुई थी। इसका लक्ष्य था, वैज्ञानिक तरीके से देसी गो-जातीय प्रजातियों का विकास और संवर्धन। इसके नतीजे कारगर निकले। इसके पहले देश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के नजरिए से वर्ण-संकर पद्धति पर जोर दिया जाता था। इससे वृद्धि तो हुई लेकिन गति अत्यंत धीमी रही। अतएव गोवंश वृद्धि के नये वैज्ञानिक तरीके अपनाए गए।

दूध की बढ़ती खपत के चलते दुनिया के देशों की निगाहें भी इस व्यापार को हड़पने पर लगी हैं। दुनिया में दूध का कारोबार करने वाली सबसे बड़ी कंपनी फ्रांस की लैक्टेल ने भारत की सबसे बड़ी ‘तिरुमाला डेयरी’ (हैदराबाद) को 1750 करोड़ रुपये में खरीद लिया है। तेल कंपनी ऑयल इंडिया भी इस क्षेत्र में प्रवेश कर रही है। अमेरिका भी अपनी पनीर भारत में बेचना चाहता है। इसे बनाने की प्रक्रिया में बछड़े की आंत से बने एक पदार्थ का इस्तेमाल होता है। इसलिए शाकाहारियों के लिए यह पनीर वर्जित है। अमेरिका में गायों को मांसयुक्त चारा खिलाया जाता है, ताकि वे ज्यादा दूध दें। हमारे यहां दुधारू पशुओं को मांस खिलाने की बात कोई सपने में भी नहीं सोच सकता? लिहाजा, अमेरिका को चीज बेचने की इजाजत अभी तक नहीं मिली है। लेकिन इतना तय है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की निगाहें हमारे देसी दूध के कारोबार को हड़पने पर हैं।

प्रमोद भार्गव


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