हॉकी : पुरुष टीम के लिए राह नहीं आसान

Last Updated 24 Jan 2024 01:38:28 PM IST

भारतीय महिला हॉकी टीम इस साल होने वाले पेरिस ओलंपिक का टिकट कटाने में असफल रही। वह रांची में हुए ओलंपिक क्वालिफायर में तीसरे स्थान के मुकाबले में जापान से हार कर लगातार तीसरे ओलंपिक में खेलने का सपना तुड़वा बैठी।


हॉकी : पुरुष टीम के लिए राह नहीं आसान

वहीं हांगझू एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत कर सीधे क्वालिफाई करने वाली भारतीय पुरुष टीम को पेरिस ओलंपिक में बहुत ही टफ पूल मिला है, इसलिए उसे भी टोक्यो ओलंपिक में जीते कांस्य पदक जीतने वाले प्रदर्शन को दोहराने में खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है।

एफआईएच रैंकिंग में तीसरे स्थान पर काबिज भारतीय पुरुष हॉकी टीम को ओलंपिक में पिछली चैंपियन बेल्जियम, रियो ओलंपिक की चैंपियन अज्रेटीना, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और आयरलैंड के साथ ग्रुप बी में रखा गया है। वहीं ग्रुप ए में विश्व की नम्बर एक टीम नीदरलैंड, मौजूदा विश्व चैंपियन जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, स्पेन, मेजवान फ्रांस और दक्षिण अफ्रीका को रखा गया है। ओलंपिक हॉकी के फॉम्रेट के हिसाब से भारत को क्वार्टरफाइनल में स्थान बनाने के लिए पूल में कम से कम दो मैच जीतने होंगे। यह काम वह विश्व दसवीं रैंकिंग की न्यूजीलैंड, 11वीं रैंकिंग की आयरलैंड को हराकर कर सकती है। पर जब आप पदक जीतने के इरादे से जाते हैं, तो आप में ग्रुप की हर टीम को फतह करने का माद्दा होना चाहिए। जहां तक महिला हॉकी टीम की बात है, तो उसने एशियाई खेलों के बाद एक बार फिर निराश कर दिया है।

भारतीय टीम की ओलंपिक क्वालिफायर में प्रमुख कमी प्रदर्शन में एकरूपता नहीं होना रही। टोक्यो ओलंपिक में चौथा स्थान पाने के दौरान भारतीय टीम ने जिस तरह का प्रदर्शन किया था, उसकी झलक न तो एशियाई खेलों में देखने को मिली थी और न ही इस ओलंपिक क्वालिफायर में। इससे एक बात तो यह लगती है कि भारतीय टीम महत्त्वपूर्ण मुकाबलों में जिस जज्बे की जरूरत होती है, उसे टीम में भरने में सफल नहीं रहीं। यह इस बात से भी झलकता है कि एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में जब कोई दवाब नहीं था, तो टीम ने शानदार प्रदर्शन किया था। लेकिन एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने का दवाब और ओलंपिक क्वालिफायर में टॉप तीन में रहने का दवाब बनने पर टीम में जीत के जज्बे की कमी दिखी।

टोक्यो ओलंपिक के दौरान भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच रहे शॉर्ड मारिने का मानना है कि टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने वाली टीम की 5-6 खिलाड़ी ओलंपिक क्वालिफायर में खेली टीम में शामिल नहीं थीं। इसकी वजह मुख्य प्रशिक्षक शोपमैन का युवा खिलाड़ियों पर भरोसा करना था। पर इन युवाओं के पास इस तरह के महत्त्वपूर्ण मैचों को खेलने का अनुभव नहीं था। सही है कि युवाओं ने अच्छा प्रदर्शन किया पर टोक्यो में खेली टीम ज्यादा अनुभवी थी और दोनों टीमों में यही प्रमुख अंतर रहा है। सही मायनों में शोपमैन ने एक तो अनुभवी खिलाड़ियों की जगह लेने के लिए युवाओं को अनुभवी खिलाड़ियों के साथ खिला कर तैयार नहीं किया।

वहीं वंदना कटारिया और सुशीला चानू के चोटिल हो जाने ने भारत की स्थिति को और कमजोर कर दिया। भारत के पेरिस ओलंपिक का टिकट नहीं कटा पाने में अहम भूमिका पेनल्टी कॉर्नरों को गोल में नहीं बदल पाने की कमजोरी ने निभाई है। मौजूदा समय में पेनल्टी कॉर्नरों पर गोल जमाना अहम हो गया है। भारत इस कमजोरी की वजह से अमेरिका से पहला मैच हारा। असल में टीम में ड्रेग फ्लिकर गुरजीत कौर के नहीं चुने जाने की वजह से टीम के पास कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं था, जिससे गोल जमाने का भरोसा किया जा सकता। गुरजीत की जगह दीपिका को आजमाया गया पर उनके प्रदर्शन में पैनेपन की कमी साफ दिखी। ऐसा नहीं है कि दीपिका में प्रतिभा की कमी है। वह जूनियर से सीनियर वर्ग में ग्रेजुएट हुई और उनमें अनुभव की कमी दिखी। मौजूदा समय में टीमें दो-तीन ड्रेग फ्लिकर रखती हैं पर भारत के पास कोई नहीं था। भारत ने जापान के खिलाफ नौ पेनल्टी कॉर्नर बर्बाद किए।

अगर कोई इन्हें गोल में बदलने वाला होता तो टीम पेरिस ओलंपिक की तैयारी कर रही होती। वंदना कटारिया के चोटिल हो जाने के कारण कुछ महत्वपूर्ण मैचों में उनकी सेवाएं नहीं मिलने से भारतीय टीम के पास अच्छे स्ट्राइकर की कमी खेल गई। भारतीय टीम टोक्यो ओलंपिक की स्टार फॉर्वड रानी रामपाल की पहले ही अनदेखी की जा रही थी। इस स्थिति में भारतीय युवाओं लालरेमीसेमी, संगीता कुमारी आदि ने जान तो बहुत लगाई लेकिन उनके हमलों में फिनिश की कमी की वजह से भारतीय प्रदर्शन उम्मीदों के अनुरूप नहीं हो सका। प्रदर्शन को सही समय पर ऊंचाइयां देने की क्षमता होती तो भारत जर्मनी को फतह कर फाइनल भी खेल सकता था और जापान को हराकर पेरिस भी जा सकता था। समय आ गया है कि शोपमैन के भाग्य का फैसला करने में देरी करने की बजाय जल्दी फैसला लिया जाए। बेहतर हो तो नये कोच को लाकर टीम को अगले विश्व कप, कॉमनवेल्थ गेम्स और 2026 के एशियाई खेलों पर फोकस बनाया जाए, तब ही टीम उम्मीदों पर खरी उतरती हुई नजर आ सकती है।

मनोज चतुर्वेदी


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