मुद्दा : मनमानी पर उतर आया है इस्राइल

Last Updated 14 Dec 2023 01:00:57 PM IST

इस्राइल और हमास के बीच युद्ध को दो महीना हो गया है। पिछले महीने अमेरिका, मिस्र और कतर की सक्रिय मध्यस्थता के बीच दोनों देशों में संघर्ष विराम संधि समझौता हुआ।


मुद्दा : मनमानी पर उतर आया है इस्राइल

यह चार दिवसीय अस्थायी युद्ध विराम समझौता पिछले 24 नवम्बर से लागू हुआ। इस समझौते के तहत हमास को गाजा पट्टी में बंधक बनाए गए लगभग 240 इस्राइली बंधकों में से 50 बंधकों को रिहा करना था और इसके बदले में इस्राइल को अपनी जेलों में बंद 150 फिलिस्तीनी कैदियों को छोड़ना था।

इस्राइल ने समझौते के तहत बंधकों में शामिल महिलाएं और मासूम बच्चों के रिहा करने पर बल दिया था। इस्राइल सरकार ने समझौते में यह भी स्वीकार किया था कि यदि हमास एक दिन में 10 कैदियों की रिहाई जारी रखता है तो अगले 22 दिनों तक के लिए संघर्ष विराम की अवधि बढ़ सकती है। इस ऐलान को स्थायी युद्ध विराम हासिल करने की उम्मीद की किरण के रूप में देखा गया जबकि इस्राइली नागरिक इस समझौते को उनके ऊपर लगे एक कलंक के रूप में देख रहे हैं।

बहरहाल, अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देशों ने इस समझौते का स्वागत किया है। अमेरिका के अनुसार सीआईए और मोसाद प्रमुखों की अध्यक्षता में एक गुप्त सेल और राष्ट्रपति जो बाइडेन और इस्राइल, कतर और मिस्र के नेताओं के बीच कई संपकरे के कारण ‘कष्टदायी पांच सप्ताह’ का समय समाप्त होना माना गया। युद्ध विराम दो दिनों तक बढ़ा लेकिन अचानक से समझौते का उल्लंघन बता कर इस्राइल ने गाजा पट्टी पर हमले जारी कर दिए।

इस्राइल का दावा है कि समझौता भंग होने का कारण हमास ने 10 महिला बंधकों की रिहाई से इंकार कर दिया था। समझौते में गाजा में बंधक बनाई गई सभी महिलाओं और बच्चों को रिहा करने की बात थी लेकिन संघर्ष विराम के आठवे दिन से पहले हमास रिहाई के लिए निर्धारित बंधकों की सूची देने में फेल रहा।

इसकी जगह कतर और मिस्र के मध्यस्थों के जरिए पुरुष बंधकों को छोड़ने को तैयार था, जबकि इस्राइल कह रहा है कि हमास की कैद में अभी भी 17 महिलाएं और दो बच्चे शामिल हैं। माना जा रहा है कि संघर्ष विराम की समाप्ति के बाद इस्राइल और ज्यादा खतरनाक हो गया है। इस्राइल द्वारा दर्जनों इलाके खाली कराने के आदेश से जाहिर हो रहा है कि वह बड़े पैमाने पर जंग लड़ने के मूड में है। उसने न केवल जमीनी हमलों के क्षेत्रों का दायरा बढ़ाया है, बल्कि पूरी गाजा पट्टी पर भी बमबारी कर रहा है।

सुरक्षा के जानकारों का तर्क है कि अमेरिका की  पीठ पर बैठा इस्राइल हमास को खत्म करने के इरादे से युद्ध में आगे बढ़ता जा रहा है। ऐतिहासिक मजबूत संबंध, सुरक्षा संबंधी चिंताएं, आतंकवाद, राजनयिक समर्थन और साझा मूल्य जैसे विषयों के चलते अमेरिका हमेशा से इस्राइल के साथ मजबूती के साथ खड़ा है। प्रश्न उठता है कि इस संघर्ष विराम से किसको फायदा मिला? इसको लेकर तमाम तरह के तर्क हैं, पर एक बात तय मानी जा रही है कि युद्ध विराम से हमास रणनीतिक बढ़त में है।

इससे कई सप्ताह से चले भीषण युद्ध से उबरने में मोसाद को मदद मिलेगी। कोई शक नहीं कि हमास ने इस समय को अपनी कमान की श्रृंखला को फिर से स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया होगा। अपने लड़ाकों की रणनीतिक जगहों पर तैनाती करने के लिए भी यह उपयुक्त समय हुआ होगा। हालांकि इस युद्ध के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों की महिलाओं और बच्चों सहित बड़ी संख्या में नागरिकों की मौत हुई है। आंकड़ों के मुताबिक, दोनों देशों के सोलह हजार से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं। विस्थापन और विनाश की बात की जाए तो गाजा पट्टी की 23 लाख की आबादी में से तीन चौथाई से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं तथा इस्राइल के लगभग 2.5 लाख लोग अपना घर छोड़ने पर मजबूर हुए हैं।

इस युद्ध ने न केवल सोलह लाख से ज्यादा लोगों को दरबदर की ठोकरें खाने पर मजबूर किया है, बल्कि लाखों लोगों से सुरक्षित स्थान भी छीन चुका है। ये लोग भोजन, ईधन एवं दवाओं जैसे जरूरी सामानों की आपूर्ति से वंचित हो कर दम तोड़ रहे हैं। इस संघर्ष से न केवल आम लोग जूझ रहे हैं, बल्कि दोनों देशों के हजारों सैनिकों ने भी जान से हाथ धो दिए हैं। बात यहीं नहीं रुकती, संघर्ष ने इस्राइल और फिलिस्तीन के क्षेत्रों के साथ-साथ व्यापक अंतराष्ट्रीय समुदाय के पहले से ही नाजुक राजनीतिक और राजनयिक संबंधों को तो तनावपूर्ण बनाया ही है साथ ही अर्थव्यवस्थाओं पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।

व्यवसाय बाधित हो गए हैं, आजीविका नष्ट होने के साथ ही बुनियादी ढांचा भी क्षतिग्रस्त हो चुका है। हिंसा और अस्थिरता ने प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला है। इस कारण आघात और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का स्तर बढ़ गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन चेता रहा है कि स्वास्थ्य ढांचों की बहाली नहीं होती है तो युद्ध में मृत लोगों से कहीं ज्यादा लोग बीमारी से मरने वाले हैं।

शगुन चतुर्वेदी


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