पाठ्यपुस्तक : इस बदलाव के मायने
अब एक समाचार यह है कि कर्नाटक सरकार पाठय़पुस्तकों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और वीर विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी हटाने के फैसला को वापस ले सकती है।
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हालांकि उसकी पुष्टि नहीं हुई है। हटाने का फैसला मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया और शिक्षा मंत्री ने इसकी जानकारी दी। पुस्तकों से इनको हटाने का फैसला चुपचाप नहीं, बल्कि शोर मचा कर किया गया। पूरे देश में इसका संदेश देना सिद्धारमैया सरकार को राजनीति की दृष्टि से आवश्यक लगा। कांग्रेस ने नेहरू मेमोरियल एंड लाइब्रेरी सोसाइटी का नाम पीएम मेमोरियल एंड लाइब्रेरी सोसायटी करने पर नरेन्द्र मोदी सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि जिनका अपना इतिहास नहीं है, वो दूसरे का इतिहास मिटाने में लगे हैं।
सामान्य तौर पर लगेगा कि भाजपा कांग्रेस के प्रथम परिवार के लोगों का नाम हटा रही है, तो कांग्रेस संघ तथा हिन्दुत्व से जुड़े महापुरु षों को खलनायक बना रही है। आखिर, डॉ. हेडगेवार और सावरकर को पढ़ाने से परहेज क्यों? एक व्यक्ति, जिसने किसी ऐसे संगठन की नींव डाली जो दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में सक्रिय है और जिसके तीन दर्जन से ज्यादा अलग-अलग सहायक संगठन हैं, उसके लोगों द्वारा स्थापित राजनीतिक पार्टी भाजपा की केंद्र के साथ अनेक राज्यों में सरकारें हैं, इसने देश को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अनेक राज्यपाल, मुख्यमंत्री, शिक्षाविद्, वैज्ञानिक, वीर सिपाही, साहित्यकार..हर क्षेत्र में अपने कायरे से मानक स्थापित करने वाले दिए हैं, उनके बारे में विद्यार्थियों को जानकारी से वंचित रखना कैसी नीति है? वीर सावरकर ने इतिहास, राजनीति, साहित्य, व्याकरण, समाजशास्त्र, निबंध आदि अनेक क्षेत्रों के लेखन में अपना स्मरणीय योगदान दिया है।
मराठी साहित्यकारों में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। उनका सभी पार्टयिों और विचारधाराओं के अंदर सम्मान था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना करने के बाद जब जंगल सत्याग्रह में उनकी गिरफ्तारी हुई तो आज के महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के क्षेत्रों को मिलाने वाली सेंट्रल प्रोविंस की विधानसभा में एक स्वर में इसका विरोध हुआ। उनको देशभक्त कहा गया। इस पहलू को छोड़ दीजिए और जरा दूसरे दृष्टिकोण से विचार करिए। भारत की पाठय़पुस्तकों में देश का विभाजन कराने वाले मोहम्मद अली जिन्ना, मोहम्मद इकबाल के बारे में पढ़ाया जाता है। राजनीतिशास्त्र में इनकी विचारधारा पढ़ाई जाती रही है। नादिरशाह से लेकर अहमद शाह अब्दाली तक पाठय़पुस्तकों में हैं। हिटलर, मुसोलिनी, फ्रैंको तक को पाठय़क्रम में बनाए रखा गया। अंग्रेजों ने हमारे देश पर शासन किया। उनके वायसराय और गवर्नर जनरल तक को हमने पाठय़पुस्तकों में स्थान दिया है। किसी ने आवाज नहीं उठाई कि इन सबको पाठय़पुस्तकों से बाहर किया जाए।
सच तो यह है कि इनमें से ज्यादातर के बारे में पढ़ाना अनावश्यक और निर्थक है। आज तो जिस औरंगजेब ने अपने पिता को कैद किया, बहन को लाल किले से फेंक कर मारा दिया, तीनों भाइयों की हत्या की और एक भाई का सिर काट कर थाल में सजाकर पिता को भेज दिया ऐसे क्रूर शासक को भी महिमा मंडित कर पढ़ाने की होड़ लगी है। ऐसे में डॉ. हेडगेवार, सावरकर या उनकी श्रेणी के दूसरे व्यक्तित्वों को पाठय़पुस्तकों से बाहर करने का क्या संदेश निकलता है? विडंबना देखिए, एक ओर ये दूसरी विचारधारा के महापुरुषों को देशद्रोही, खलनायक, अंग्रेजों का दलाल कहते हैं, उन्हें पाठय़पुस्तकों से निकालते हैं, और उनसे उम्मीद रखते हैं कि इनकी धारा के इनके द्वारा घोषित महापुरु षों को पूजनीय और सम्माननीय मानें! वैसे सच यही है कि भाजपा की सरकारों ने नेहरू जी को पाठय़पुस्तकों से बाहर नहीं किया है। यह सही है कि नेहरू जी को स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आजादी के बाद पुनर्निर्माण तक अनेक महापुरुषों की तुलना में सर्वोच्च स्थान देने की जो बौद्धिक, राजनीतिक कोशिशें हुई थीं, उन्हें कम जरूर किया गया है। उनके समानांतर दूसरे महापुरु षों के योगदान को भी सामने लाया गया है। नेहरू मेमोरियल एंड लाइब्रेरी सोसाइटी को पीएम मेमोरियल एंड लाइब्रेरी सोसाइटी बनाने के पीछे यही सोच है।
आज तीन मूर्ति भवन में आपको भारत के सभी प्रधानमंत्रियों की स्मृतियां और उनके योगदान से संबंधित चीजें मिल जाएंगी। इनमें उसी परिवार की इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी शामिल हैं। लालबहादुर शास्त्री, नरसिंह राव तथा मनमोहन सिंह तक उनमें समाहित हैं। कांग्रेस नेतृत्व को इन सबको समान महत्त्व दिया जाना नागवार गुजरा है तो यह उनकी मानसिकता है। कांग्रेस ने अपने शासनकाल में कम्युनिस्ट विचारधारा के गैर-ईमानदार बुद्धिजीवियों, नेताओं, नौकरशाहों के प्रभाव में महापुरुषों एवं इतिहास का भयावह विकृतिकरण कर दिया। थोड़ी भी गहराई से देखिए तो पंडित नेहरू को इतना महाकाय बना दिया गया कि उनके सामने उनसे वरिष्ठ, समान और कनिष्ठ साथी बौने या विलुप्त हो गए। जितने स्थान, सम्मान, पुरस्कार, संस्थाएं इनके नाम पर रहे उनकी तुलना में अंग्रेजों के विरु द्ध स्वतंत्रता संघर्ष और आजादी के बाद भारत के पुनर्निर्माण में योगदान देने वाले नेताओं की सूची बना लीजिए और देखिए, क्या स्थिति है?
नेहरू जी और परिवार को महिमा मंडित करने के आवेग में स्वतंत्रता संघर्ष और आजादी के बाद के सच्चे इतिहास का दमन कर दिया गया। कांग्रेस के ही महान सपूत इतिहास और पाठय़पुस्तकों से बाहर हो गए।
कर्नाटक सरकार के निर्णय पर ताली पीटने वाले समाजवादी ठहर कर सोचें कि जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया, आचार्य कृपलानी सभी पहले कांग्रेस में ही थे। उनको नेहरू जी की तुलना में पाठय़पुस्तकों में कितनी जगह मिली? कृपलानी आजादी के समय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे। इस तरह देखें तो सिद्धारमैया सरकार ने उसी धारा को आगे बढ़ाया। वैसे भी भारत और दुनिया भर के जो एनजीओ, संगठन, राजनीतिक दल, नेता, बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा सरकारों के विरुद्ध सक्रिय हैं तथा राहुल गांधी को प्रमोट करने में हर तरह के संसाधन लगा रहे हैं, उन सबका अपना एजेंडा है। इस एजेंडे को पूरा करने के लिए कांग्रेस बाध्य है। न भूलिए, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कांग्रेस सरकार के गठित होते ही धर्म परिवर्तन कानूनों, गौ हत्या निषेध कानून, हिजाब पर शिक्षण संस्थानों में प्रतिबंध आदि हटाने की मांग की थी और कांग्रेस सरकार के निर्णय सामने आ रहे हैं।
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