मुद्दा : जोशीमठ से निकले संकेत समझें

Last Updated 05 Jan 2023 01:43:21 PM IST

धार्मिंक, सामरिक, पर्यटन और पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भारत चीन सीमा पर बसे देश के अंतिम शहर जोशीमठ का अस्तित्व गंभीर खतरे में है।


मुद्दा : जोशीमठ से निकले संकेत समझें

अलकनंदा नदी की ओर खिसक रहे इस ऐतिहासिक और पौराणिक नगर की जमीन धंसने के कारण सैकड़ों मकानों में दरारें आ गई हैं। संकट की जद में सेना की ब्रिगेड, गढ़वाल स्काउट्स और भारत तिब्बत सीमा पुलिस की बटालियन भी हैं। अपनी ही इमारतों के असह्य बोझ तले दबा यह शहर अपने ही घरों से निकलने वाले पानी के दलदल में धंस रहा है। यह संकट 1970 के दशक से अनुभव किया जा रहा है। मगर न तो तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार और न ही वर्तमान उत्तराखंड सरकार ने इसे बचाने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना बनाई।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल में सीमांत गांव माणा को देश का पहला गांव घोषित किया है। उस लिहाज से जोशीमठ देश का पहला शहर हुआ। जोशीमठ आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश के चार कोनों में धर्म घ्वजवाहक चार सर्वोच्च धार्मिंक पीठों में से एक ज्योतिर्पीठ है। यह उत्तराखंड की प्राचीन राजधानी है, जहां से कत्यूरी वंश ने शुरू में अपनी सत्ता चलाई थी। यहीं से सर्वोच्च तीर्थ बदरीनाथ की तीर्थ यात्रा की औपचारिकताएं पूरी होती हैं क्योंकि शंकराचार्य की गद्दी यहीं विराजमान रहती है।

फूलों की घाटी और नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व का बेस भी यही नगर है। हेमकुंड यात्रा भी यहीं से नियंत्रित होती है। नीती-माणा दरे और बाड़ाहोती पठार पर चीनी हरकतों पर इसी नगर से नजर रखी जाती है। विदित है कि चीनी सेना बाड़ाहोती की ओर से घुसपैठ करने का प्रयास करती रहती है। उस पर नजर रखने के लिए भारत तिब्बत पुलिस की बटालियन और उसका माउंटेंन ट्रेनिंग सेंटर यहीं है।

गढ़वाल स्काउट्स और 9 माउंटेंन ब्रिगेड के मुख्यालय भी यहीं हैं। 20 से 25 हजार की आबादी वाला यह नगर अनियंत्रित अदूरदर्शी विकास की भेंट चढ़ रहा है। एक तरफ तपोवन विष्णुगाड परियोजना की एनटीपीसी की सुरंग ने जमीन को भीतर से खोखला कर दिया है, दूसरी तरफ बाइपास सड़क जोशीमठ की जड़ पर खुदाई करके पूरे शहर को नीचे से हिला रही है।
भूवैज्ञानिकों के अनुसार जोशीमठ शहर मुख्यत: पुराने भूस्खलन क्षेत्र के ऊपर बसा है, और इस प्रकार के क्षेत्रों में जल निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने पर जमीन में अंदर जाने वाले पानी के साथ मिट्टी के बह जाने से भू-धंसाव की स्थिति उत्पन्न हो रही है। फरवरी, 2021 में धौलीगंगा में आई बाढ़ से अलकनंदा के तट के कटाव के उपरांत समस्या ने गंभीर रूप ले लिया है। भू-धंसाव व भू-स्खलन के अध्ययन और तत्संबंधी संस्तुति करने के उद्देश्य से राज्य आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक एवं भूविज्ञानी डॉ. पियूष रौतेला के नेतृत्व में जुलाई, 2022 में  विशेषज्ञ दल का गठन किया गया था।

इस दल ने भी शहर की जलोत्सारण व्यवस्था सुधारने, जोशीमठ के नीचे अलकनंदा द्वारा किए जा कटाव तथा भारी निर्माण रोकने का सुझाव दिया था। दरअसल, 1970 की अलकनंदा की बाढ़ के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर महेशचंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में वैज्ञानिकों की कमेटी का गठन कर जोशीमठ की संवेदनशीलता का अध्ययन कराया था। कमेटी में सिंचाई एवं लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर, रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज (अब आईआईटी) तथा भूगर्भ विभाग के विशेषज्ञों के साथ पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट को भी शामिल किया गया था। इस कमेटी ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में कहा था कि जोशीमठ स्वयं ही एक भूस्खलन पर बसा हुआ है, और इसके आसपास किसी भी तरह का भारी निर्माण करना बेहद जोखिमपूर्ण है। कमेटी ने ओली की ढलानों पर भी छेड़छाड़ न करने का सुझाव दिया था ताकि जोशीमठ के ऊपर कोई भूस्खलन या नालों में त्वरित बाढ़ न आ सके।

जोशीमठ के ऊपर औली की तरफ से 5 नाले आते हैं। ये नाले भूक्षरण और भूस्खलन से विकराल रूप लेकर जोशीमठ के ऊपर 2013 की केदारनाथ जैसी आपदा ला सकते हैं। जोशीमठ का समुचित मास्टर प्लान न होने के कारण उसकी ढलानों पर विशालकाय इमारतों का जंगल बेरोकटोक उगता जा रहा है। हजारों की संख्या में बनी इमारतों के भारी बोझ के अलावा लगभग 25 हजार शहरियों के घरों से उपयोग किया गया पानी स्वयं एक बड़े नाले के बराबर होता है, जो जोशीमठ की जमीन के नीचे दलदल पैदा कर रहा है। उसके ऊपर सेना और आइटीबीपी की छावनियों का निस्तारित पानी भी जमीन के नीचे ही जा रहा है। निरंतर खतरे के सायरन के बावजूद वहां आइटीबीपी ने भारी भरकम भवन बनाने के साथ ही मल जल शोधन संयंत्र नहीं लगाया। कई क्यूसेक यह अशोधित मल जल भी जोशीमठ के गर्भ में समा रहा है। यही स्थिति सेना के शिविरों की भी है। जोशीमठ के बचाव के बारे में अब सोचा जा रहा है, जबकि इस शहर का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया।

जयसिंह रावत


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