वैश्विकी : दो शिखर वार्ताओं में मोदी

Last Updated 19 Sep 2021 02:21:40 AM IST

पिछले एक महीने के दौरान सैनिक और कूटनीतिक दृष्टि से दुनिया की भू राजनीति में बड़ा बदलाव आया है। यह बदलाव आगे जाकर क्या रूप लेंगे यह भविष्य के गर्भ में है। जहां तक अमेरिका का सवाल है, उसने अफगानिस्तान से पल्ला झाड़कर नये सिरे से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर ध्यान केंद्रित किया है।


वैश्विकी : दो शिखर वार्ताओं में मोदी

भारत की स्थिति इससे ठीक विपरीत है। हिंद-प्रशांत और पूर्व एशिया की बजाय आने वाले दिनों में भारत का ध्यान हिंदूकुश क्षेत्र से आने वाले चुनौतयों पर केंद्रित होगा। इस लिहाज से समकालीन विश्व के दो महत्त्वपूर्ण संगठनों-शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और क्वाड (चतुर्गट) की भूमिका में भी बदलाव आया है। यह संयोग है कि एससीओ और क्वाड की शिखर वार्ताएं इसी महीने में आयोजित हुई हैं या होने वाली हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एकमात्र नेता हैं जो इन शिखर वार्ताओं में भाग लेंगे।
ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में संपन्न एससीओ शिखर वार्ता अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों के कब्जे की छाया में संपन्न हुई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर भारत का दृष्टिकोण साफ किया। तालिबान का नाम लिये बिना उन्होंने दो-टूक शब्दों में आतंकवादियों की नई हुकूमत को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि नई हुकूमत समावेशी नहीं है तथा विचार-विमर्श के बजाय हिंसा का सहारा लेकर बनी है। उन्होंने नई हुकूमत को मान्यता देने के बारे में भी विश्व समुदाय को आगाह किया। भारत का मानना है कि बहुत सोच-विचार कर सामूहिक रूप से मान्यता के बारे में फैसला करना चाहिए। इसमें संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को भी स्वीकार किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री का यह कथन बहुत साहसिक है और आदर्श अंतरराष्ट्रीय राजनीति और नैतिकता के अनुरूप है।

वास्तव में तालिबान हुकूमत से सबसे अधिक खतरा भारत को है। चीन के लिए अफगानिस्तान से आतंकवाद का खतरा केवल मामूली सिरदर्द है। रूस के प्रभाव वाले मध्य एशिया के देशों के लिए भी यह खतरा बहुत घातक नहीं है। इन देशों के साथ सुरक्षा गठबंधन के बलबूते रूस सीमा पर किसी भी आतंकवादी गतिविधि को रोकने में सक्षम है। भारत के लिए दोहरी समस्या है। तालिबान के साथ ही इस आतंकवादी संगठन के हैंडलर पाकिस्तान की गिद्ध दृष्टि जम्मू-कश्मीर पर है। जैसे ही तालिबान शासक अफगानिस्तान में अपनी स्थिति को पुख्ता बनाएंगे वहां की सरजमीं से और पाकिस्तान की सीमावर्ती क्षेत्रों से आतंकवादी हलचल शुरू हो जाएगी। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई बांग्लादेश की स्थापना का बदला लेने के लिए भारत के विरुद्ध हर कुचक्र रचेगी। जम्मू-कश्मीर ही नहीं बल्कि पंजाब सहित सीमावर्ती राज्यों में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की जाएगी। भारत के लिए यह अस्तित्व का संकट होगा। भारत के लिए संतोष की बात यह है कि एससीओ शिखर वार्ता में आतंकवाद के विरुद्ध सभी देशों ने सख्त रवैया अपनाया।
 इस महीने के अंत में प्रधानमंत्री मोदी क्वाड शिखर वार्ता में भाग लेने के लिए वाशिंगटन जा रहे हैं। क्वाड का एजेंडा अमेरिका के भू राजनीतिकंिहतों पर आधारित है। बैठक में सारा ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की चुनौती पर केंद्रित होगा। कहने के लिए क्वाड शिखर वार्ता में आतंकवाद का विरोध करने की औपचारिकता निभाई जाएगी, लेकिन अमेरिका और अन्य सदस्य देशों की ओर से भारत को कोई विशेष मदद मिलेगी इसमें संदेह है।
क्वाड शिखर वार्ता के ठीक पहले अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने एक त्रिपक्षीय सैन्य गठबंधन ‘ऑकस’ बनाया है। इस गठबंधन की स्थापना से ही स्पष्ट है कि अमेरिका को क्वाड पर ज्यादा भरोसा नहीं है। उसे ऐसे सहयोगी चाहिए जो चीन के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई होने की परिस्थिति में उसका साथ दें। जाहिर है भारत इस खेल में शामिल नहीं होना चाहता। प्रधानमंत्री मोदी अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन को भी संबोधित करेंगे। वह आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में पूरी दुनिया को एकजुट करना चाहते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति का यथार्थ है कि हर देश को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होती है।

डॉ. दिलीप चौबे


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