भारत-नेपाल संबंध : तल्खी से दोस्ती की तरफ
नेपाल की सरकार और सियासत का मिजाज अब बदलने लगा है, भारत-नेपाल संबंधों में उपजे हालिया तनाव को कम करने की दिशा में नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पहल की है।
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भारत के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ओली की ओर से की गई बधाई कॉल ने दोस्ती और संवाद का एक नया सिलसिला कायम किया है। इस बातचीत के बाद नेपाल में नवनियुक्त भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा और नेपाली विदेश सचिव के बीच सौहार्दपूर्ण बैठक संपन्न हुई, जहां नेपाल में चल रहे विकास संबंधी प्रोजेक्टों को गति देने एवं समय-सीमा के अंदर पूरा कर लेने पर भी सहमति बनी। पर इन कोशिशों से इतर नफरत की आग को भड़काए रखने की कोशिश भी बदस्तूर जारी है। नफरत की इस आग में ईधन की भूमिका एक खास कॉकटेल की है, उस कॉकटेल की जिसके एक हिस्से में नेपाली प्रधानमंत्री ओली की भारत विरोधी पुरानी सियासत और फैसले हैं, तो वहीं दूसरे हिस्से में नेपाल स्थित चीनी दूतावास की विशेष रणनीतिक सक्रियता और उसके बरक्स भारतीय दूतावास की कमतर सक्रियता। भारत विरोधी आग को सुलगाने और भड़काने में कारक बन कर उभरे इस गठजोड़ को अलग-अलग करके समझने की जरूरत है। नेपाली पीएम ओली की भारत विरोधी बोली कोई नई बात नहीं है।
ओली की चुनावी शुरुआत ही भारत विरोध के नाम पर हुई थी। भारत विरोधी एजेंडे का लाभ प्रधानमंत्री के तौर पर ओली को लगातार मिलता रहा है। यही वजह है कि ओली ने अपनी सियासत और सरकार के फैसलों में भारत विरोध के एजेंडे को संजीवनी की तरह उपयोग में लाना शुरू किया। ओली जिस नफरत के जहर को संजीवनी समझ रहे थे, वही जहर अब उनकी सरकार और सियासत की सेहत बिगाड़ रहा है। नेपाल की सियासत में भी जबरदस्त उथल-पुथल देखी जा रही है। एक ओर जहां पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व में एक प्रचंड शक्ति ओली द्वारा अनावश्यक विषयों को तूल देने के नाम पर उठ खड़ी हुई है, वहीं नेपाल का प्रबुद्ध तबका भी नेपाल के दीर्घकालिक हितों को चोटिल करने वाली ओली की सियासत के खिलाफ मुखर होने लगा है। दुनिया को महामारी की चपेट में झोंकने वाले चीनी वायरस कोविड से निपटने के नेपाली शासन के तौर-तरीकों को लेकर भी नेपाली जनमानस में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ने लगी है। इन सबके बीच अमेरिका नेपाल के मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) समझौते की चर्चा ने भी एक नया ड्रामा खड़ा कर दिया है।
एमसीसी दरअसल दुनिया के कमजोर देशों की बेहतरी के लिए अमेरिका की एक खास संकल्पना है, जिसकी हालिया प्राथमिकता में एशिया इंडो पैसिफिक क्षेत्र है। इसी को ध्यान में रख कर अमेरिका ने पहले श्रीलंका में, फिर नेपाल में एमसीसी समझौते का प्रयास किया है। श्रीलंका में आई नई सरकार संभवत: राष्ट्रहित में इस पर पुनर्विचार करे वहीं नेपाल अभी तक हां-ना के बीच फंसा हुआ है। यूं तो नेपाल अमेरिका के बीच यह समझौता प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के कार्यकाल में ही संपन्न हो चुका था पर नेपाली संसद से अनुमोदन की बाट जोह रहा है क्योंकि नेपाली संविधान के अनुसार तभी इसकी वैधानिकता होगी। इसी को लेकर विपक्षी दल कांग्रेस के नेता पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और ओली, दोनों मिले थे। नेपाल में एक ओर जहां इसके पक्ष में देउबा से ओली तक हैं, वहीं प्रचंड मौन हैं और कम्युनिस्ट धड़े के दूसरे प्रभावी नेता झालनाथ खनाल, भीम रावल, बामदेव गौतम और माधव नेपाल इसके सख्त खिलाफ हैं, जबकि नेपाल के राजावादी और हिन्दूवादी संगठनों के लोग इसे नेपाल की संप्रभुता पर कुठाराघात मानकर इसका विरोध कर रहे हैं। कुल मिलाकर यह नेपाल में चीन के बोरिया बिस्तर समेटने और चीन की सीमाओं पर अमेरिका की नजर और उपस्थिति का मामला है। इसी दौर में चीन द्वारा नेपाल स्थित माउंट एवरेस्ट को चीनी भूभाग का हिस्सा बताया गया है, वहीं दूसरी ओर नेपाल-चीन सीमा के 10 स्थानों पर करीब 33 हेक्टेयर नेपाली भूमि पर इस विवाद की आड़ में कब्जा भी कर लिया गया है। वहीं पिछले दिनों से लगातार चीनी अतिक्रमण पर रिपोर्टिग कर रहे, इसका रहस्योद्घाटन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार बलराम बनिया की संदेहास्पद मृत्यु जहां एक ओर चीन पर सवालिया निशान खड़ा कर रही है, वहीं नेपाल के लोग इसे खुले तौर पर हत्या मान रहे हैं। इस पूरे मसले पर नेपाल सरकार की रहस्यमय चुप्पी और स्टैंड, दोनों ही अबूझ, आश्चर्यजनक और संदेहास्पद हैं।
माओ के अधूरे सपने को साकार करने में जुटे चीन की जिन पिंग सरकार के कारण आज पूरा हिमालय असुरक्षित है। चीन की इस विस्तारवादी मंशा से भलीभांति वाकिफ होने के बाद भी ओली के जेहन और जुबान में भरपूर नफरत केवल भारत के लिए है। वैसे नेपाल की फिजां में भारत विरोध के ‘लाल रसायन’ को घोलने की चीनी कोशिश भी इस दौर में ज्यादा प्रभावी और असरकारी साबित हो रही है। इसकी बड़ी वजह नेपाल स्थित चीनी दूतावास की विशेष सक्रियता है। चीनी दूतावास की सक्रियता के मुकाबले में फिसड्डी साबित हो रहे काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास की कार्यशैली भी सवालों के दायरे में है, भारतीय दूतावास की लुंजपुंज कार्यप्रणाली का खमियाजा सीधे तौर पर भारत-नेपाल संबंधों पर है। भारतीय न्यूज चैनलों की अपरिपक्वता, गैर-जिम्मेदाराना तरीके से दिखाई जाने वाली रिपोर्ट, गल्पकथा, डीएनए बताने वाले कार्यक्रम ने भी भारत-नेपाल संबंधों को सुलगाने में कोई कमी, कोई कसर नहीं रखी है।
इसी महीने की 17 तारीख से सीमा खुल जाएगी और आवागमन पहले की तरह ही सहज होने वाला है। रिश्तों पर अविश्वास की पड़ी बर्फ त्योहारों का मौसम शुरू होते-होते पिघलने वाली है। आवागमन पहले की तरह ही सुचारू होने वाला है। दोनों देश के लोग मिलकर त्योहारों का आनंद लेने वाले हैं। कार्तिक पूर्णिमा में गंगा स्नान करने सीमा के इस पार और अगहन महीने में राम विवाह पर जनकपुर जाने वाले हैं। इस बीच अयोध्या में हुए राम मंदिर शिलान्यास से नेपाल में भी हर्ष का वातावरण है वहीं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस कार्यक्रम में जयसियाराम के उद्घोष ने भी नेपाल-भारत संबंधों में पुन: मिठास घोलना शुरू कर दिया है।
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