नाव भंवर में, मल्लाह मौज में

Last Updated 07 Jul 2019 07:26:35 AM IST

हमारे मन में विचार भी उमड़ रहे थे और भाव भी उमड़ रहे थे, मगर हम उन्हें सही से पकड़ नहीं पा रहे थे। तभी झल्लन हमारे पास आकर खड़ा हो गया।


नाव भंवर में, मल्लाह मौज में

हमने उसका चेहरा पढ़ने की कोशिश की तो लगा वह थोड़ा-सा चिंतित भी लग रहा है, और थोड़ा-सा निश्चिंत भी लग रहा है। हमने पूछ ही लिया, ‘तू खुश हो रहा है, या दुखी हो रहा है?’ वह पहले मुस्कुराया फिर उदास हो गया और बोला, ‘क्या बताएं ददजू, पल्ले नहीं पड़ रहा कि दुख आ रहा है, या सुख आ रहा है पर कुछ न कुछ जरूर आ रहा है।’ हम समझ गये कि यह पक्का राहुल बाबा के पक्के इस्तीफे की पक्की खबर सुनकर आया है।
हमने कहा, ‘तेरे मोदी का सपना पूरा हो रहा है, भारत कांग्रेस मुक्त हो रहा है। तुझे तो खुश होना चाहिए।’  वह बोला, ‘कैसी बात करते हो ददजू, ये कोई खुश होने की बात है। इत्ती पुरानी पार्टी का ये हाल हो गया? जब से पैदा हुए हैं तब से नेहरू-गांधी, नेहरू-गांधी सुनते आये हैं, और देखिए आपके राहुल बाबा कांग्रेस को कहां ले आये हैं।’ झल्लन के चेहरे पर दुख की परत पसर गयी थी, उसकी आंख हमारे चेहरे पर गढ़ गयी थी। उसका दुख हमारे दिल को छू गया, हमारा मन भी थोड़ा भावुक हो गया। हम बोले, ‘बात तो तू सही कह रहा है, हमारा दिल भी दुखी हो रहा है।’ उसने फिर हमारी आंख में आंख डाली, अपने कुरते की जेब से सुरती निकाली और मुस्कुराते हुए बोला, ‘कैसी बात करते हो ददजू, इसमें दुख की कौन-सी बात है। जैसी करनी, वैसी भरनी। कील न कांटा, कांग्रेस ने जो बोया वही काटा।’ अब उसके चेहरे को खुशी की एक परत ढक रही थी जो हमें अजीब-सी लग रही थी।

हमने कहा, ‘राहुल बाबा ने अच्छा किया जो इस्तीफा दे दिया। हार के बाद नैतिकता का तकाजा यही था, यही होना चाहिए था, यही सही था।’ झल्लन झट से बोला, ‘कैसी बात करते हो ददजू, खाक नैतिकता का तकाजा था, खाक सही था। जिस पार्टी ने दाई-अम्मा की तरह गोद में खिलाया, हाथ पकड़ कर चलाया, पाल-पोसकर बड़ा किया, सर पे बिठाया उसी पार्टी को गुचिया दिये, मझधार में फंसा दिये।’ झल्लन के मुखमंडल पर गुस्सा झिलमिला रहा था। हमने भी सोचा पार्टी ने पप्पू से पार्टी प्रेसीडेंट गढ़ने में दिन, महीने, वर्ष ही नहीं अपनी निष्ठा, अपनी स्वामिभक्ति, अपनी चाटुकारिता, अपना अस्तित्व सब कुछ झोंक दिया। राहुल बाबा के विकास के लिए अपना विकास रोक दिया। दुनियाभर में राहुल बाबा का डंका बजवा दिया, उन्हें अपनी नाव का मल्लाह बनवा दिया। जब कांग्रेस अपने इस मल्लाह से उम्मीद कर रही थी कि वह भविष्य बना देगा, उसकी नैया पार लगा देगा तब मल्लाह ने क्या किया? नाव मंझधार में छोड़ कूद गया। अब नाव भंवर में हिचकोले खा रही है, पता नहीं लगता किधर जा रही है।
हमने झल्लन की बात का समर्थन किया, ‘तू सही कह रहा है झल्लन, राहुल बाबा को इस्तीफा देना था तो बंद कमरे में बड़ों-बुजुगरे से सलाह-मशविरा करके देते, पार्टी को इसके लिए तैयार करके देते, किसी नये नेता का नाम तय करवा के देते तब पार्टी की ऐसी थुक्का-फजीहत तो न होती, शहर-गांव ऐसी लई-दई तो न होती। राहुल बाबा को ऐसा नहीं करना चाहिए था और करना था तो थोड़ा सोच-समझकर करना चाहिए था।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददजू, कैसी बात करते हो? सोचते-समझते तो इस्तीफा ही क्यों देते? बेचारी पुरानी पार्टी को इतना सिर दर्द क्यों देते? वैसे अच्छा ही हुआ। पार्टी अब कोई भला-सा नेता चुनेगी जो घाट तक ले जावे, बीच धार में छलांग न लगावे।’ झल्लन की भावना ने फिर हमारा मन छुआ, हमारा मन फिर उसका समर्थन करने को हुआ, सो हमने कहा, ‘ठीक बात है झल्लन, पार्टी अपना नया नेता चुनेगी, परिवार के साये से निकल कर आगे बढ़ेगी।’
झल्लन मुस्कुराया, उसने सुरती-मसाला बनाया, थोड़ा हमारी ओर बढ़ाया और थोड़ा अपने होंठ के नीचे दबाया और हमारा मजाक सा उड़ाता हुआ बोला, ‘ददजू, सुरती-मसाला चबाते हो, कभी छोड़ने के बारे में भी सोचे हो?’ यह सुरती-मसाला बीच में कैसे आ गया, हमने सोचा। फिर भी जवाब दिया, ‘कई बार सोचा छोड़ा जाये, दो-एक बार छोड़ा भी पर छोड़ नहीं पाये।’ झल्लन की मुस्कान थोड़ी और चौड़ी हो गयी। बोला, ‘ददजू, साये की लत भी सुरती-मसाले की लत की तरह होती है। अगर एक बार किसी के साये में रहने की लत लग जाये तो आसानी से नहीं छूटती। अध्यक्ष कोई बन जाये, देख लेना छांव सब वहीं से मांगेंगे, साया वहीं तलाशेंगे।’
हमने झल्लन की बात का सार ग्रहण किया और हौले से पूछ लिया, ‘अच्छा अब बता झल्लन, इस हालत पर तुझे हंसना आ रहा है या रोना आ रहा है?’ झल्लन न मुस्कुराया न उदास हुआ, धीरे से बोला, ‘ददजू, आप भी क्या बात उठा रहे हैं। हमें हंसना आ रहा है या रोना आ रहा है, यही तो समझ नहीं पा रहे हैं।’ हमने चाहा उसकी बात पर मुस्कुराए पर लगा हम भी मुस्कुरा नहीं पा रहे हैं।

विभांशु दिव्याल


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment