भारत-इस्राइल : मुस्लिम कूटनीति से आगे

Last Updated 13 Jan 2018 02:37:03 AM IST

राजधानी के हुमायूं रोड स्थित यहूदी मंदिर (सिनोगॉग) के पुजारी (रब्बी) एजिकिल मलेकर को आशा है कि इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अपनी आगामी 14 जनवरी से शुरू हो रही भारत यात्रा के दौरान कुछ पलों के लिए सिनोगॉग में भी जरूर आएंगे.


भारत-इस्राइल : मुस्लिम कूटनीति से आगे

इधर इस्राइल के सभी प्रमुख नेता आते रहे हैं. दरअसल, पिछले वर्ष जुलाई में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्त्वपूर्ण इस्राइल यात्रा के लगभग छह माह के भीतर अब प्रधानमंत्री नेतन्याहू इस माह भारत आ रहे हैं.
उनका यह आगमन मकर संक्रांति के शुभ दिन हो रहा है. ये जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि दोनों देशों के साझेदारी के पांच मुख्य बिंदु हैं, जिनमें रक्षा क्षेत्र ज्यादा अहम है. भारत इस्राइली हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक है. साथ ही इस्राइल भारत के लिए हथियारों का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत भी है. भारत ने हॉर्टकिल्चर तकनीक, संरक्षित खेती, नर्सरी प्रबंधन और माइक्रो-इरीगेशन के मामले में इस्राइल से काफी लाभ उठाया है. हरियाणा और महाराष्ट्र ने इससे खास तौर से फायदा उठाया है. हर साल लगभग 20,000 से ज्यादा किसान हरियाणा के करनाल स्थित कृषि केंद्र पर पहुंचते हैं. यहां की नर्सरी में सब्जियों के हाइब्रिड बीज मिलते हैं. इंडो-इस्राइल एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट पर एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसके जरिये पांच से दस गुना तक उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है. साथ ही खेती में पानी, कीटनाशक और उर्वरकों के इस्तेमाल में भी गिरावट आई है. जलप्रबंधन पर भी इस्राइल से भारत को सहयोग मिल रहा है. इस्राइल ने जल प्रबंधन तकनीक में महारत हासिल की है. वहां पानी के बेहद कम स्रोत होने पर भी वह अपनी पानी की जरूरतें पूरी कर लेता है.

इस्राइल में पानी की भारी कमी है फिर भी वहां ‘ड्रिप सिंचाई’ पद्धति के विशेषज्ञ भरे पड़े हैं. अद्भुत प्रयोग किया है, इस्राइलियों ने. भारत और इस्राइल के बीच का व्यापार वित्तीय वर्ष 2016-17 में 5 अरब डॉलर तक पहुंच गया था. भारत इस्राइल को 1 अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य के खनिज इंधन और तेल निर्यात करता है. यह  तय था कि केंद्र में भाजपा की सरकार के आने के बाद दोनों देशों के संबंधों में पहली वाली स्थिति नहीं रहेगी. और यही हुआ भी. अब दोनों देशों के नेता मौजूदा आपसी रिश्तों के बारे में बात करने में कांग्रेसी शासकों की तरह कतई बचते नहीं हैं. कौन नहीं जानता कि अरब देशों और भारतीय मुसलमानों का कुछ जरूरत से ज्यादा ही ख्याल रखते हुए लंबे समय तक भारत ने इस्राइल से दूरी बनाई हुई थी. फिलीस्तीन मसले पर भारत अरब संसार के साथ विगत कई दशकों तक खड़ा रहा, पर बदले में भारत को वहां से अपेक्षित सहयोग और समर्थन तक नहीं मिला. भारत अरब देशों की वकालत करता रहा पर कश्मीर के सवाल पर अरब देशों ने हमेशा पाकिस्तान का ही साथ दिया. यह ठीक है कि अब वहां भी बदलाव आया है. और तो और सऊदी अरब भी पर्दे के पीछे इस्राइल से मधुर रिश्तों को स्थापित कर रहा है. इसी तरह से भारत खुलकर इस्राइल के साथ संबंधों को नई दिशा देने से बचता था. केंद्र में कांग्रेस सरकार के दौर में भारत के कूटनीतिक हितों की बलि दी जाती रही. माना जाता रहा कि इस्राइल से संबंध रखने के चलते देश के मुसलमान खफा हो जाएंगे.
इस कूटनीतिक विफलता के लिए कांग्रेस और लेफ्ट पार्टयिां ही उत्तरदायी हैं. दुर्भाग्यवश हमारे यहां सत्ता उनके हाथों में लंबे समय तक रही, जिन्हें ये भी लगता था कि इस्राइल से संबंध प्रगाढ़ करने से उन प्रवासी भारतीयों के हित प्रभावित हो जो खाड़ी के देशों में रहते हैं. इसके अलावा कच्चे तेल के आयात का भी सवाल था. पर देश के हितों की घोर अवहेलना हुई. हम उस अरब संसार के साथ खड़े रहे जो हमारे शत्रु पाकिस्तान को लगातार खाद-पानी देता रहा. आप कह सकते हैं कि हमेशा से ही भारत और इस्राइल के बीच सैन्य संबंध सबसे अहम रहे हैं. इस्राइल ने करगिल युद्ध के दौरान इस्तेमाल किए गए लेजर गाइडेड बम और मानवरहित हवाई वाहन भी हमें दिए थे. संकट के समय भारत के अनुरोध पर इस्राइल की त्वरित प्रतिक्रिया ने उसे भारत के लिए भरोसेमंद हथियार आपूर्ति करने वाले देश के तौर पर स्थापित किया और इससे दोनों देशों के रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं.  अब फिर से दोनों देशों के प्रधानमंत्री मिलेंगे. बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी परस्पर सहयोग के नये क्षेत्र तलाशे जाएंगे और जरूर मिलेंगे भी इस मकर-संक्रांति पर्व पर इस्राइल की महासंक्रमण यात्रा में.

आर.के. सिन्हा


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