पर्यावरण : संभले नहीं तो खत्म हो जाएंगे
भारत लगभग उन दो सौ देशों के बेड़े में शामिल हो गया है, जो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का बीड़ा उठाए हुए हैं.
पर्यावरण : संभले नहीं तो खत्म हो जाएंगे |
जनवरी 2019 से कानून लागू हो जाएगा, जिसमें वातानुकूलन और रेफ्रिजिरेटर में उपयोग में लाई जाने वाली ग्रीन हाउस गैसें हैं. इसमें विकसित देश अमेरिका के अलावा विकासशील देश भी सम्मिलित हैं. भारत ने अपने संकल्प से रवांडा में इस डील में बढ़-चढ़ कर भाग लिया. इस समझौते के तहत सुपर ग्रीन हाउस गैसों हाइड्रो फ्लोरो कार्बन को इस शताब्दी के मध्य तक इस्तेमाल कम करने का संकल्प है. इस अभियान से पृथ्वी के तापक्रम को 0.5 डिग्री बढ़ने से रोकना है.
इसमें 196 देशों के साथ यूरोपीय देश भी शामिल हैं, जो एचएफसी के इस्तेमाल को कम करेंगे, क्योंकि एचएफसी गैसें कार्बन डाईऑक्साइड को वातावरण में एक हजार गुणा ज्यादा करने में सहायक होती हैं. इसके इस खतरनाक उत्सर्जन को सीमित करने का यही एक उपाय है कि एसी और फ्रिजों का कम से कम इस्तेमाल हो, ताकि हाइड्रो फ्लोरो कार्बन को वातावरण में फैलने से रोका जा सके. अभी भारत के पास एचएफसी गैसों को सीमित उत्सर्जन करने का ठोस कार्यक्रम नहीं है, जबकि 2047 तक 85 प्रतिश्त कम करने का लक्ष्य होना चाहिए, 2024-26 के स्तर तक का एचएफसी ही 2047 में उत्सर्जित हो सके. भारत ने पेरिस जलवायु परिवर्तन संधि की तरह ही 15 अक्टूबर को रवांडा की राजधानी किगली में अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया है.
भारत ऐसा नहीं करता तो कुछ देश जो पानी की किल्लत का सामना कर रहे हैं, और जलवायु एकदम बदली हुई है; न पीने का पानी और न ही खेती करने को पानी है. वही हाल इसका हो जाता. सब कुछ रेगिस्थान होने के कगार पर कुछ देश खड़े हैं, उन्हें बचाने की मुहिम बहुत जरूरी है. विश्व संसाधन संस्थान की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 2040 तक देशों में पानी की भारी किल्लतें होंगी. वे देश हैं-कजाकिस्तान. मध्य एश्यिा के देश में 50 प्रतिशत आबादी गंदे पानी का इस्तेमाल पीने के लिए करते हैं. पानी के अभाव में खेती कम होती जा रही है. देश की सबसे बड़ी झील लगातार सूख रही है. मोरक्को औद्योगिक और शहरी कूड़े से प्रदूषित हो रहा है. मांग और खपत में दिन-पर-दिन खाई बढ़ती जा रही है. अनुमान है कि अजरबैजान में 2021 से 2050 के बीच मौसम के बदलाव से 23 प्रतिशत पानी कम हो जाएगा. मैकडोनिया में जलवायु परिवर्तन से भू जल और नदियों में पानी कम होता जा रहा है. पूर्वी भाग लगातार सूखे की चपेट में है. 40 प्रतिशत जल का इस्तेमाल सिंचाई के लिए कर रहे हैं.
यमन की स्थिति सिविल युद्ध के कारण बिगड़ रही है. राजधानी सवा पानी की कमी से जूझ रही है. 40 प्रतिशत घर शहर की नगरपालिका से जुड़े हैं. सप्ताह में सिर्फ दो बार घरों को पानी दिया जा रहा है. इसी तरह, लीबिया का 90 प्रतिशत भाग रेगिस्थान में बदल चुका है और भू जल में भराव सिर्फ एक चौथाई खपत का है.
जॉर्डन में पानी का मूल्य 30 प्रतिशत अधिक हो गया है. भू जल की कमी के कारण जॉर्डन दुनिया में तीसरा देश है, जो सूखे की मार झेल रहा है. सीरिया से आए शरणार्थियों के कारण स्थिति और बिगड़ चुकी है. ईरान भी सूखे की चपेट में पीछे नहीं है. बढ़ती आबादी और रेगिस्थान के कारण पानी की कमी बढ़ती जा रही है.
सूखे के कारण पानी का भंडारण भी नहीं हो पा रहा है. प्रदूषण भी अपनी सीमाएं लांघ रहा है. इस क्षेत्र की सबसे बड़ी झील उर्मिया का पानी दस प्रतिशत तक घट गया है.
किर्गिस्थान जहां पर 6500 ग्लेशियर और 2 हजार झीले हैं और ग्रामीण आबादी शहरी आबादी से अधिक है, वहां कृषि कार्यों में पानी की खपत बढ़ी हुई है. यहां भी पानी का अकाल पड़ने की संभावनाएं हैं. लेबनान में कुछ घंटों के लिए पानी मिलता है. दैनिक जीवन बोतलों और टैंकर्स के सहारे जिंदा है. अपनी बढ़ती अबादी की जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पा रहा है. ओमन में भी बढ़ती आबादी और भू जल की कमी से परेशान है,समस्याएं दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही हैं. सऊदी अरब दुनिया में प्रति व्यक्ति सबसे अधिक पानी की खपत करनेवाला देश है, जबकि पानी के स्रोत खत्म होते जा रहे हैं. इस्रइल में जलवायु में बदलाव की वजह, संसाधनों की खराब व्यवस्था के कारण गलिली सागर का जल स्तर कम हो रहा है, यह देश के पानी का मुख्य स्रोत है.फिलिस्तीन भी जलाभाव का शिकार है. संयुक्त अरब अमीरात में दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले प्रति व्यक्ति जल की खपत अधिक है. अनुमान है कि आने वाले पचास वर्षो में ताजा प्राकृतिक जल यहां से समाप्त हो जाएगा. डीजल मिश्रित पानी पर जीवन चलेगा. अभी कृत्रिम वष्रा पर खर्च किया जा रहा है.
सिंगापुर सबसे अधिक पानी के अभाव के तनाव को झेल रहा है. प्राकृतिक पानी की मांग अधिक है. इसके लिए वह मलयेशिया पर निर्भर है. आनेवाले समय में शायद तकनीकी व्यवस्था में खर्च करने से आत्मनिर्भर हो सकता है. कतर दुनिया का सबसे कम वष्रा पाने वाला देश है. ताजे जल पाने के विकल्प ढूंढ़ रहा है.
यूरोपियन यूनियन से दो गुना प्रति व्यक्ति पानी की इसकी खपत है. 2050 तक इसकी जनसंख्या आठ गुनी हो जाएगी. कुवैत एक रेगिस्थानी देश होने के कारण नदी और झीलों के न होने से डीजल युक्त पानी पर निर्भर है. कम वष्रा होती है. भू जल पर ही जीवनचर्या है. बहरीन 89 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है. आबादी भी तेजी से बढ़ रही है, पर वष्रा अच्छी नहीं होती. 2015 में यहां पानी की प्रति व्यक्ति दर दुनिया के अन्य देशों से अधिक थी. इन देशों के आंकड़े बताते हैं कि आने वाले समय में हमने मौसम परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया तो मानव जाति ही नहीं, संपूर्णप्राणी जगत खतरे में पड़ जाएगा. मौसम का बदलता मिजाज भविष्य की भयावहता का संकेत दे रहा है. अत: गंभीरतापूर्वक क्लोरो फ्लोरो कार्बन को वातावरण में जाने से रोकना होगा.
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