पलटवार : इसी की जरूरत थी

Last Updated 01 Oct 2016 06:04:05 AM IST

भारत में अचानक गर्वीले राष्ट्रवाद का स्फुलिंग प्रभाव देखा जा रहा है. हो भी क्यों न? 1971 में निर्धारित पाकिस्तान के साथ 775 कि. मी. की नियंत्रण रेखा को लांघकर हमारी सेना के जांबाजों ने कम से 7 आतंकवादी शिविरों को ध्वस्त किया.


पलटवार : इसी की जरूरत थी

35-40 आतंकवादी मारे तथा पाकिस्तानी सेना के जवान भी मारे गए. पिछले वर्ष म्यांमार में एनएसजी ने ऐसी ही सर्जिकल कार्रवाई की थी, लेकिन उसमें वहां की सरकार का सहयोग था. पाकिस्तान में विरोधी सेना और सरकार के बीच ऐसी कार्रवाई का महत्त्व बढ़ जाता है. देश लंबे समय से व्यावहारिक आक्रामक पाकिस्तान नीति के लिए छटपटा रहा था. सरकार ने वह नीति अख्तियार कर लिया है. एक ओर कूटनीति के माध्यम से पाकिस्तान को अलग-थलग करना और दूसरी ओर आतंकवादी हमला रोकने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक. पाकिस्तान इसे जिस तरीके से ले लेकिन हमारे डीजीएमओ रणवीर ने साफ किया कि उनकी कार्रवाई आतंकवादियों के खिलाफ थी, पाकिस्तान या उसकी सेना के खिलाफ नहीं और तत्काल हम ऐसा कोई अन्य ऑपरेशन करने नहीं जा रहे, यह ऑपरेशन समाप्त हो गया.

सीमा पार से होने वाले आतंकवादी हमलों में अब तक भारत की लकवाग्रस्त भूमिका के अतीत के आलोक में निश्चय ही दुनिया आंखें फाड़कर देख रही है कि यह क्या हुआ. एक दिन में अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन कैरी ने दो बार हमारे विदेश मंत्री से बात की. किसी को इसकी उम्मीद नहीं थी. पाकिस्तान ने तो मान लिया था कि नरेन्द्र मोदी सरकार भी पूर्व सरकारों की तरह गरमी दिखाएगी और फिर किसी तरह बातचीत की मेज पर आ जाएगी..हम आतंकवादी भेजकर हमला करते रहेंगे, फिर थोड़ा तनाव होगा और फिर वार्ता की मेज. निश्चय ही भारत के तेवर, उसके व्यवहार और उसकी सक्रियता देखकर पाकिस्तान की यह गलतफहमी दूर हो गई होगी. यह कोई छोटा-मोटा ऑपरेशन नहीं था. 12.30 रात्रि से चार घंटे तक नियंत्रण रेखा से 2-3 कि. मी. अंदर घुसकर लगातार कार्रवाई करने का मतलब यह बहुत बड़ा ऑपरेशन था.

वहां से सुरक्षित जवानों का लौट आना भी सामान्य बात नहीं है. हमारा जो एक जवान उन्होंने पकड़ा है, उसका इस ऑपरेशन से कोई लेना-देना नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि सैनिकों पर हमले नहीं हुए, लेकिन आक्रमण इतना सटीक था कि पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी कुछ न कर सके.

हालांकि डीजीएमओ ने यह अवश्य कहा कि तुरंत कोई ऐसा ऑपरेशन चलाने का हमारा इरादा नहीं, लेकिन एक बार यह नीति बन गई कि आतंकवादी हमलों के बाद उसके परिणामों का प्रबंधन के बजाए उसकी जानकारी मिलते ही हमले के पूर्व ही उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए तो फिर आगे कभी भी ऐसा ऑपरेशन हो सकता है. अगर फिर जानकारी मिलेगी कि आतंकवादी नियंत्रण रेखा के साथ लॉन्च पैड्स या उसके पहले ही हमले के लिए घुसने की तैयारी कर रहे हैं तो उनका काम तमाम किया जाएगा. वह नियंत्रण रेखा के अंदर घुसकर हो या फिर अपनी सीमा में रहते हुए सटीक हमले करके. डीजीएमओ ने साफ कहा कि हम किसी भी सूरत में आतंकवादियों को एलओसी के पार बेझिझक हरकत नहीं करने दे सकते.

हालांकि पाकिस्तान ऐसे सर्जिकल कार्रवाई से ही इनकार कर रहा है. वैसे पाकिस्तान इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन्स ने माना है कि भारत ने एलओसी पर पाकिस्तान की तरफ भिम्बेर, हॉटस्प्रिंग, केल और लिपा सेक्टर में हमला किया. उसके अनुसार भारतीय कमांडो का जवाब देने पाक सेना आगे आई, जिसमें दो जवान मारे गए. नकारना पाकिस्तान का चरित्र है. उसने 1999 में करगिल घुसपैठ को नकारा. अपनी सेना का शव तक लेने से इनकार किया. माना ही नहीं कि हमारे सैनिक हैं. पूरी दुनिया ने मान लिया कि उसमें पाकिस्तानी सेना थी. मुंबई हमले के बाद पकड़े गए अजमल कसाब तक को उसने पाकिस्तानी नागरिक होने से इनकार किया. अभी बहादुर अली और दूसरे पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादियों को अपना नागरिक होने से वह इनकार करता है. यहां तक कि 1971 के युद्ध में उसके 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया. आज वह उसे भी गलत बताता है. इसके विपरीत पाकिस्तान ने एक भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को पकड़ा और हमने स्वीकार किया कि वह हमारा नागरिक है, उस तक हमारे दूतावास के लोगों को जाने दीजिए. इसलिए पाकिस्तान की नकार से आश्चर्य का कोई कारण नहीं है. वैसे भी मार खाने के बाद कोई जल्दी स्वीकारता नहीं.

अगर कुछ हुआ ही नहीं तो प्रधानमंत्री नवाज शरीफ क्यों कह रहे हैं कि भारत की कार्रवाई हम पर हमला है? वैसे पाकिस्तान जो भी कहे, अमेरिका, चीन, रूस आदि को पता है कि क्या हुआ है. भारत ने यों ही सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के साथ दो दर्जन से ज्यादा देशों को इसकी जानकारी नहीं दी. नकारने के बावजूद पाकिस्तान में मची खलबली को आसानी से देखा जा सकता है.

वर्तमान एवं भविष्य की चुनौतियों का पूरा आकलन कर उसकी तैयारी करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ पहला सर्जिकल ऑपरेशन किया गया है. जब एक बार ओखली में सिर डाल दिया तो परिणाम जो होना होगा उसका सामना किया जाएगा. नाभिकीय हमले की धमकी से सहम कर कब तक एकपक्षीय हमले का दंश झेला जाएगा? तो यह भारत का नया अवतार है. अब भारत कार्रवाई की झिझक, परिणामों की चिंता में नीतिगत लकवा की निष्क्रियता से बाहर आ चुका है. यहीं से भारत पाकिस्तान संबंधों में नए मोड़ की शुरु आत हो गई है.  वास्तव में सेना के पास शौर्य के प्रदर्शन की पूरी क्षमता है. समस्या राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति में थी. राजनीतिक नेतृत्व ने इच्छाशक्ति दिखाई और सेना ने अपनी क्षमता को सही साबित कर दिया.

अवधेश कुमार
लेखक


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