सो. मीडिया : ट्विटर पर राष्ट्रीय एकता

Last Updated 01 Oct 2016 05:55:57 AM IST

हिन्दुस्तान में बड़ी मुश्किल से कोई ऐसा मौका आता है, जब आम जनता से लेकर तेज-तर्रार नेता तक और पक्ष से लेकर विपक्ष तक सब एक ही सुर में बात कर रहे हों.


सो. मीडिया : ट्विटर पर राष्ट्रीय एकता

ट्विटर के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ होगा कि जब नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के ट्वीट के आशय एक जैसे हों. ट्विटर ने यह बहुत महत्त्वपूर्ण काम किया है कि हरेक को अपनी बात रखने का मौका दे दिया है. पहले आम तौर पर राजनेताओं की बात टीवी चैनलों और अखबारों के जरिए सामने आती थीं. अब तो हर व्यक्ति के पास अपना मंच है ट्विटर और फेसबुक की शक्ल में.

भारत में काम करने आए तमाम पाक कलाकारों से यह सवाल पूछा गया कि आपने उरी पर हुए हमले की आलोचना में ट्वीट क्यों नहीं किया. ट्वीट यानी प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी. यानी ट्विटर के चलते कोई यह नहीं कह सकता कि जी मुझे अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला. ट्विटर है आपके पास और आपको हर उस मसले पर राय देते हुए दिखना चाहिए, जिससे आपका दूर पास का रिश्ता है. खासकर कि सेलिब्रिटी कलाकारों, नेताओं से तो उम्मीद की ही जाती है कि वह हर महत्वपूर्ण घटना पर एक संतुलित और सामयिक प्रतिक्रिया रखेंगे.

देखने में यह आ रहा है कि भारत विरोधी ताकतें भी ट्विटर का बखूबी इस्तेमाल करती हैं. पर ट्विटर पर  भारतीयों की दमदार उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि भारत विरोधी किसी भी अभियान का सलीके से मुकाबला किया जा सके. इसलिए जब सर्जिकल स्ट्राइक के मसले पर पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर ने ऐसा ट्विट किया, जो तथ्यों से मेल नहीं खाता था तो तमाम भारतीयों ने उनके ट्वीट का विरोध किया. यानी कोई मनमाने तरीके से काम नहीं कर सकता. वह चाहे बड़ा पत्रकार हो या बड़ा नेता, सोशल मीडिया पर अगर आप तथ्यों से परे जाकर कुछ राय रख रहे हैं, तो आपको विरोध का सामना करना पड़ेगा.

उरी हमले के बाद से सोशल मीडिया पर भी रोज नए-नए बवाल देखने को मिल रहे थे. कोई मोदी और सुषमा स्वराज के वक्तव्यों पर अपनी एक्सपर्ट राय दे रहा था तो कोई देशभक्ति की परिभाषा समझाने के प्रयास में था. लेकिन सेना के सर्जिकल स्ट्राइक ने सभी के मतभेदों को भुला कर सबमे एक ही रंग भर दिया है.

हर कोई आज सरकार और सेना के साथ खड़ा है. मीडिया अब सिर्फ  न्यूज एंकर को ही यह मौका नहीं देती है कि वो किसी मुद्दे पर देश कि भावनाओं को अपने शब्दों में पिरो कर सबके सामने रखे. न्यू मीडिया या सोशल मीडिया ने अब हर एक को खुली छूट दे दी है कि वो अपनी बात सबके सामने रखे और अपने गुस्सा, खुशी, प्यार तकरार सब अपने शब्दों में कह सके और सोशल मीडिया में रखे गए शब्द सिर्फ  देश-प्रदेश तक सीमित न रह कर पूरे विश्व तक पहुंचते हैं. और बात जब पाकिस्तान के साथ किसी विवाद की हो तब तो मिजाज कुछ ज्यादा ही तल्ख नजर आते हैं.

हालांकि मौका जश्न का है, लेकिन जश्न के साथ साथ कुछ बातें हैं जिनका ध्यान रखना जरूरी है. सोशल मीडिया की पहुंच देश-प्रदेश की सीमा से आगे है. और जो सोशल मीडिया हमारे हर्ष में संदेशों को दूर देशों तक पहुंचा सकती है, वह ही सोशल मीडिया हमारे राज भी खोल सकती है. पिछले कुछ दिनों में यह देखने को आया है कि जन सामान्य और पारम्परिक मीडिया दोनों को ही हर पल की खबर को अपडेट करने की कुछ ज्यादा ही जल्दी रहती है. और इस जल्दी के चक्कर में हम कुछ ऐसी बातें भी अपडेट कर जाते हैं, जो सेना और सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर देती है. सेना का मूवमेंट कहां है या हमारी देश की सुरक्षा से जुड़ी बातें अपडेट करते समय हम अकसर इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं कि यह जानकारियां अराजक तत्वों के लिए फायदेमंद हो सकती हैं.

सोशल मीडिया हमें मौका देता है अपने देश के साथ खड़े होने का और अपनी भावनाएं व्यक्त करने का. लेकिन वह ही सोशल मीडिया हमें ये भी बताता है कि किसी भी सूचना को अपडेट करने से पहले हमें उसकी गंभीरता को परख लेना चाहिए और ऐसी किसी भी सूचना को अपडेट करने से बचना चाहिए. जश्न के साथ-साथ घटनाओं के दूरगामी परिणाम पर भी अपने विचार व्यक्त करें. क्या पता आपकी कौन-सी बात, किस समस्या का समाधान दे जाए.  सर्जिकल स्ट्राइक के बादव सैल्यूटटूदिआर्मी विषय भी ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा था. यानी कुल मिलाकर युद्ध सिर्फ मैदानों में ही नहीं लड़ा जाएगा, वह फेसबुक, ट्विटर पर भी लड़ा जाएगा और वह भी लगातार.

रेशू वर्मा
लेखक


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