जुनून बेचते चैनल
अगर हम उड़ी क्षेत्र में पाक-पालित जैशे मोहम्मद के हमलों में 18 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद के चैनलों के कवरेज देखें तो कुछ बातें लगभग समान हैं:
सुधीश पचौरी (फाइल फोटो) |
1- जैश के हमले के लक्ष्य बने उड़ी के सीन सब चैनलों पर एक से नजर आए. सैनिक कैंपों के सीन, घटना के बाद पहरा देते सैनिक, आतंकियों से चलती मुठभेड़ें. 2- हर चैनल ने इसे \'भारत पर हमला\' माना और \'बदला लेना होगा\' वाली लाईन को आगे रखा. 3- देश गुस्से में है, उसकी जनता बेहद गुस्से में है और शहीद सैनिकों के बदला चाहते हैं. 4- पीएम ने मीटिंग ली है, रणनीति के बारे में विचार किया है और \'नो सॉफ्टलाइन\' की लाइन है. \'हमलावर दंडित हुए बिना नहीं रहेंगे\'.
5- यूएन की आम सभा में शरीफ के भाषण के वे अंश बार-बार दिखें, जिनमें बुरहान बानी को कश्मीर का \'इंत्तिफादा\' हीरो बताया. जवाब में राम माधव का कथन कि \'नवाज हिजबुल के सुप्रीम कमांडर की तरह बोले हैं\' भी आता रहा. 6- बहसों के कुछ रक्षा विशेषज्ञों के साथ कुछ रिटार्यड फौजी अफसर अक्सर गरजते रहे. 7- इसी तरह \'पीएम ने वार रूम में जायजा लिया\' की खबर आई तो कई चैनलों ने कल्पित वार रूम बना डाले और पीएम को विचार करते जैसा दिखाया. 8- यूएन में नवाज शरीफ का बुरहान बानी को कश्मीर का इंत्तिफादा हीरो बताना बार-बार दिखाया गया और इसके जबाव में भारतीय प्रतिनिधि का तक्षशिला की जमीन आज आतंकवाद की \'आईवी लीग\' है, आता रहा. 9- एक कॉमन आइटम वह गीत रहा जिसे हिमाचल के एक पुलिसवाले ने लिखा था-\'सुन ले ओ पाकिस्तान कश्मीर तो होगा, लेकिन पकिस्तान नहीं होगा.\' यह गीत चैनलों ने बार-बार दिखाया.
सच है कि पाक पालित जैश के आतंकवादियों ने भारतीय सैनिक कैम्पों पर प्लान करके हमला किया था. इसे सरकार तक भौंचक रह गई. चैनलों ने इसे लक्षित किया, लेकिन इसके लिए सरकार से जबावदेही न मांगी, ज़ब रक्षामंत्री ने कहा कि संभव चूकों पर ध्यान दिया जाएगा, तब भी चैनलों ने इस बाबत चरचाएं नहीं चलाई. अगर ऐसा करते तो शायद पाकिस्तान की धुलाई का काम ढीला हो जाता. जाहिर है कि चैनलों को युद्ध की संभावनाओं को बेचना था.
पिछले दो-ढाई साल में सरकार और पीएम की \'माचो\' छवि के बावजूद पाकिस्तान की ऐसी हरकत जनता को नागवार ही गुजर सकती थी. सो वह गुस्सा थी. सोशल मीडिया पर काफी गरमा-गरमी रही लेकिन किसी चैनल ने सर्वे कर नहीं बताया कि जनता अगर गुस्सा है तो वह पाकिस्तान पर कितना है और अपनी कमियों के लिए कितना? हैदराबाद के एकाध प्रदर्शन की खबरें छोड़ दें तो दिल्ली में न पाकिस्तान के दूतावास पर किसी ने प्रदर्शन किया न \'राजदूत बसित को वापस भेजने की मांग\' ही खबर बनी. अगर जनता वाकई बेहद गुस्से में होती तो पाक दूतावास के सामने बड़े प्रदर्शनों की खबर जरूर होती. न सरकार ने कहा कि बसित वापस जाएं, लेकिन चैनल और एंकर गुस्सा बेचते रहे.
माना कि जनता गुस्से में रही होगी, लेकिन उतने गुस्से में तो नहीं दिखी जितने कि हमारे चैनलों के सज-धजे एंकर दिखे जो स्टूडियो में बैठकर तय करते-कराते थे कि एक मोरचा खोला जाय कि दो खोले जाएं. पाक को सबक सिखाने के लिए भारत के पास कितने विकल्प हैं? सर्जिकल एक्शन किया जाय या युद्ध किया जाय? आतंकवादियों के कैम्पों को ध्वस्त किया जाय या कि पाकिस्तान एटमी केंद्रों को तबाह किया जाय? पाकिस्तान की एटम बम की धमकी में न आया जाय और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग किया जाए. इसके तुरंत बाद ही चैनल गाल बजाने लगे कि पाक अलग-थलग पड़ा.
अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस और अफगानिस्तान आदि ने पाक को आतंकवाद बंद करने को कहा. यूएनए के महासचिव ने पाक को लिफ्ट नहीं दी..एकाध ने कहा भी कि अमेरिका पर यकीन न करना. लेकिन एंकरों को तो दौरा पड़ा था. सो हर जगह \'अमेरिका-अमेरिका\' होता रहा! एक अंग्रेजी चैनल ने अपनी देशभक्ति की ताल ठोक कर अपने कल्पित \'शांतिवादियों\' और \'संवाद के पक्षधरों\' को \'पाक-परस्त\' और \'गद्दार\' कह कर ललाकरना शुरू कर दिया. वह अल्टीमेटम-सा देते हुए कहता कि आप शरीफ को कंडम करते हैं कि नहीं? ज़ब मनसे ने बॉलीवुड में काम करने वाले कुछ पाकिस्तानी कलाकारों को 48 घंटे में पाक भेजने का ऐलान कर दिया तो एंकर पर जनून सवार हो गया. वह अल्टीमेटम सा देने लगा कि या तो ये पाक कलाकार पाक-हमलावरों की निंदा करें नहीं तो उनको रहने का हक नहीं है.
मीडिया ने इतना युद्धोन्माद फैला दिया है कि अगर उसका शमन न हुआ तो यह गुस्सा बना रहेगा और सरकार तक को विचलित करेगा. क्या यह बेहतर न होता कि तथ्य दिए जाते अपेक्षित आक्रोश भी प्रसारित होता, लेकिन इतना गुस्सा नहीं बनाना था, जिसे झेला न जा सके. एंकरों तो लड़ने जाना नहीं है, जाएंगे तो वे ही सिपाही, तब उनकी \'शहादत की सेल\' लगाना कहां का इंसाफ है भाई?
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