गरीबों की सूची भी प्रकाशित करते
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित एक पत्रिका ने भारत के 100 अमीरों की सूची जारी की है. उनकी समृद्धि कुल भारतीय समृद्धि में जोड़ी जाती है तो भारत समृद्ध देश दिखाई पड़ता है.
हृदयनारायण दीक्षित (फाइल फोटो) |
वस्तुत: भारत गरीबों का देश है, जहां अकूत धन संपदा वाले मुट्ठी भर लोग ही रहते हैं. पूंजी बड़ी बेहया होती है. इसका न कोई देश होता है और न ही कोई चरित्र. अर्थशास्त्र और समाजविज्ञान के अनुसार श्रमशीलों को धनी होना चाहिए. सिद्धांतत: पूंजी का निर्माण श्रम से होना चाहिए, लेकिन वर्तमान आर्थिक विश्व में श्रम महत्त्वपूर्ण कारक नहीं है. पूंजी का निर्माण पूंजी से होता है. श्रम से नहीं.
भारत में अनेक भाषाओं में तमाम पत्रिकाएं व प्रतिष्ठित समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं. वे प्रभु वर्ग की भाषा अंग्रेजी में हनक-ठसक के साथ तथ्य देते हैं. पत्रकार मित्र काफी परिश्रम से टिप्पणियां या आलेख तैयार करते हैं. हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में भी तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं हैं. मेधावी पत्रकार हैं. प्रसन्नता है कि हिन्दी के अखबार प्रसार या पाठक संख्या में अंग्रेजी से बहुत आगे हैं. सभी अखबारों में परिश्रमी पत्रकार हैं.
मन में तड़प रहती है कि जैसे अंतरराष्ट्रीय कही जाने वाली अंग्रेजी पत्रिकाओं में तमाम अमीरों की सूची जब कब छपती है, वैसे ही भारत की किसी पत्रिका में देश के प्रथम 100 गरीबों की सूची क्यों नहीं छपती? अमीरों के लिए कहा जाता है कि उन्होंने बुद्धि, युक्ति लगाई, संघर्ष किया, मेहनत की; तब वे इस मुकाम पर पहुंचे आदि आदि. गरीब भी बुद्धि लगाते हैं. युक्ति काम नहीं करती. बच्चे बीमार होते हैं, अस्पताल से दवा नहीं मिलती. उस दिन गरीब मजदूरी नहीं कर पाता. आटा प्याज का पैसा नहीं होता. भूख तन तोड़ती है, मन तोड़ती है. गरीब का संघर्ष अमीर के संघर्ष से भिन्न प्रकार का है. राष्ट्र की जानकारी के लिए जरूरी है. राजनीति और राजव्यवस्था से जुड़े लोगों के लिए और भी जरूरी है.
गरीब जीने के लिए संघर्ष करते हैं और अमीर ज्यादा धन संग्रह, प्रतिष्ठा या यश प्राप्ति के लिए. गरीब का संघर्ष जिजीविषा की व्यथा कथा है. अमीर का संघर्ष पेज थ्री मार्का मनोरंजन है. बेशक दोनों वर्ग मनुष्य हैं, लेकिन गरीब के तन-मन में जिजीविषा का तत्व घनत्व ज्यादा होता है.
समृद्ध व्यक्ति की तुलना में गरीब में \'ज्यादा मनुष्य गुण\' होते हैं. उनके जीवन में कभी उत्सव नहीं आते. उदासी, हताशा के बावजूद श्रम सक्रियता की रहती है. अवकाश उनके लिए सुंदर कल्पना जैसा. वे अवकाश नहीं जानते. बच्चों के साथ बाजार नहीं जा सकते. बाजार का वातावरण क्रूर है. गरीब अपने बच्चों के साथ उपभोग सुख नहीं ले सकते. वे प्रसन्न रहने के सामान्य मानवीय अधिकार से वंचित हैं. संविधान प्रदत्त जीने के मौलिक अधिकार का उपभोग करने के लिए जरूरी वातावरण भी नहीं पाते.
भारत में गरीबों की कोई सूची नहीं है. यहां गरीबी की कोई परिभाषा नहीं है. तमाम आयोगों व समितियों ने गरीब की परिभाषा की भी लेकिन तथ्यपरक न होने के कारण उसका मजाक बना. गरीब, गरीबी और गरीबों के जीवन संघर्ष राष्ट्रीय बहस के बाहर हैं.
अमीरों का रहन, सहन और कुत्तों आदि को दुलार देने वाले प्रसंग भी चर्चा में रहते हैं. अमीरों के सामाजिक दायित्व निर्वहन की जानकारी भी पता नहीं चलती. गरीब हरेक सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हैं. देश के 100-150 गरीबों की पहचान होनी ही चाहिए.
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