इसरो ने लगाई एक और छलांग

Last Updated 30 Aug 2016 12:54:06 AM IST

वायुमंडल से आक्सीजन लेकर चलने वाले आधुनिक इंजनों की डिजाइन और विकास की दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने अपने अत्याधुनिक स्क्रैमजेट राकेट इंजन का सफल परीक्षण कर दिया.


इसरो ने लगाई एक और छलांग

इसरो ने वायुमंडल की ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हुए इस इंजन का प्रक्षेपण किया. इससे उपग्रह प्रक्षेपण की लागत कई गुना कम हो जाएगी. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से स्क्रैमजेट इंजन के पहले प्रायोगिक मिशन का सफलतापूर्वक संचालन किया जिसमें  इस प्रक्षेपण के पांच महत्त्वपूर्ण चरण योजना के मुताबिक संपन्न हुए.

अमेरिका, रूस और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद स्क्रैमजेट इंजन के प्रक्षेपण परीक्षण का प्रदशर्न करने वाला भारत चौथा देश है. इसरो ने कहा कि उसके डिजाइन किए गए स्क्रैमजेट इंजनों में ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है. ये इंजन आक्सीकारक के रूप में वायुमंडल की वायु से आक्सीजन लेते हैं. इसमें लगाया गया इंजन एडवांस्ड टेक्नोलॉजी से लैस है और इसकी मदद से भारत सेटेलाइट प्रक्षेपण के खर्च में कमी कर पाएगा.

इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि यह इंजन रियूजेबल लॉन्च  व्हीकल को हॉयपरसोनिक स्पीड पर उपयोग करने में मदद देगा. परीक्षण के दौरान स्क्रैमजेट इंजन को 1970 में तैयार किए गए आरएच-560 साउंड रॉकेट में लगाया गया. इसे 20 किलोमीटर ऊपर ले जाया गया और इसी उड़ान के दौरान पांच सेकेंड के लिए इंजन में दहन पैदा कर इस परीक्षण को पूरा किया गया.
परंपरागत रॉकेट इंजन जहां फ्यूल और ऑक्सिडाइजर दोनों लेकर जाते हैं, वहीं स्क्रैमजेट इंजन ‘एयर ब्रीदिंग प्रोपल्सजन सिस्टम’ के चलते सुपरसोनिक स्पीड के दौरान वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन को दबा देता है. इसके चलते यह ऑक्सीजन ईंधन को जलाने के लिए ऑक्सी डाइजर का काम करेगा. हाइपरसोनिक स्पीड से जाने वाले व्हीकल्स के लिए यह इंजन उपयुक्त है. इस टेस्ट के बाद इस इंजन को फुल स्केल आरएलवी में इस्तेमाल किया जाएगा. खास बात यह है कि ये इंजन वायुमंडल से ऑक्सीजन लेकर ऐसी गति से अंतरिक्ष में प्रवेश करता है, जो ध्वनि की गति से छह गुना ज्यादा है. जापान, चीन, रूस और यूरोपीय संघ सुपरसोनिक कॉमबस्टलर तकनीक के टेस्टिंग फेज में हैं.

वहीं नासा ने 2004 में स्क्रैमजेट इंजन का प्रदर्शन किया था. इसरो ने भी साल 2006 में स्क्रैमजेट का ग्राउंड टेस्ट किया था. फिलहाल इसरो ने स्वदेश निर्मिंत पुन: प्रयोग योग्य प्रक्षेपण यान-प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल- टेक्नोलॉजी डेमोनस्ट्रेटर यानी आरएलवी-टीडी) का सफल परीक्षण कर दुनिया के स्पेस मार्केट में हलचल जरूर पैदा कर दी है. परीक्षण के दौरान प्रयोग किए गए आरएच-560 रॉकेट का मतलब 560 मिलीमीटर व्यास वाला रोहिणी साउंडिंग रॉकेट. इसके दूसरे चरण में थोड़ा सुधार किया गया है, ताकि उसमें स्क्रैमजेट इंजन को फिट किया जा सके. इसे एडवांस्ड टेक्नोलॉजी व्हीकल (एटीवी) नाम दिया गया है. एक तरह से इसे आरएलवी का छोटा स्वरूप कहा जा रहा है.

रॉकेट में इस प्रणाली को लागू किए जाने के बाद रॉकेट भी सन प्रक्रिया की तरह वायुमंडल से स्वत: ऑक्सीजन प्राप्त करने लगेंगे. इससे रॉकटों के इंजन में दहन पैदा करने के लिए अलग से तरल ऑक्सीजन (ऑक्सीडाइजर) भेजने की जरूरत नहीं रह जाएगी और प्रक्षेपण यानों का वजन काफी कम हो जाएगा. सामान्य इंजन में फ्यूल और ऑक्सीडाइजर (ऑक्सीजन को फ्यूल में बदलने वाला सिस्टम) के दो चेंबर होते हैं. लेकिन स्क्रैमजेट में ऑक्सीडाइजर वाला चैम्बर नहीं होगा.

स्क्रैमजेट में एयर-ब्रीदिंग प्रपल्शन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. यानी इसमें लिक्विड हाइड्रोजन फ्यूल को जलाने के लिए ऑक्सीजन एटमॉस्फियर से ली जाती है. स्क्रैमजेट इंजन रॉकेट में यूज किए जाने वाले बाकी इंजनों के मुकाबले हल्का होता है. स्क्रैमजेट इंजन का सफल परीक्षण को अंतरिक्ष विशेषज्ञों ने बड़ी सफलता बताया है. उनके अनुसार इस नई प्रणाली के अपनाने से उपग्रह प्रक्षेपण की लागत में काफी कमी आ जाएगी और छोटे प्रक्षेपण यानों से बड़े उपग्रह भी अंतरिक्ष में छोड़े जा सकेंगे. कुल मिलाकर स्क्रैमजेट इंजन की सफलता भविष्य में देश की अंतरिक्ष यात्राओं को एक नई शुरुआत देगी.

शशांक द्विवेदी
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment