अब अस्पतालों की होगी रेटिंग
आम आदमी अस्पतालों में मर्ज से छुटकारा पाने जाता है. मगर वहां इलाज के नाम पर अक्सर उसके साथ ऐसे-ऐसे हादसे पेश आते हैं, जिनके बारे में देख-सुनकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
अब अस्पतालों की होगी रेटिंग |
कहीं कोई मरीज गलत इंजेक्शन लगाने से मर जाता है, तो कहीं गलत ऑपरेशन मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ बन जाता है. ऐसी घटनाओं से साबित हुआ है कि खुद को लोक-कल्याणकारी कहने वाली हमारी व्यवस्था आम आदमी के जीवन को लेकर किस कदर लापरवाह और संवेदनहीन रही है. यह तब है, जब संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में ही स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है.
इस अधिकार की रक्षा के नाम पर लीपापोती करने के लिए मामलों की जांच-पड़ताल के लिए जांच कमेटियां गठित कर दी जाती हैं. लेकिन यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ऐसी कमेटियां जांच के नाम पर अब तक क्या करती रही हैं और क्या नतीजे निकालती रही हैं. ऐसे मामलों में आज तक शायद ही कभी किसी डॉक्टर या कर्मचारी को सख्त सजा हुई है. पर मुमकिन है कि इस स्थिति में थोड़ा फर्क आए, खास तौर से सरकारी अस्पतालों के मामले में.
असल में सरकार ने अब सरकारी अस्पतालों की स्टार रेटिंग करने का फैसला लिया है. यह रेटिंग ठीक उसी तरह की जाएगी, जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामानों के बारे में की जाती है. यानी अगर अस्पताल में मरीज को बेहतर सुविधाएं मिल रही हैं. दवा का अच्छा इंतजाम है, साफ-सफाई है और डॉक्टर-नर्स मरीजों और उनके तीमारदारों से सभ्यता से पेश आते हैं तो इस आधार पर अस्पताल को ऊंची स्टार रेटिंग दी जाएगी. जिस अस्पताल के जितने स्टार, उसे उतना ही भरोसेमंद माना जाएगा. शुरुआत में देश के 79 अस्पतालों में यह योजना लागू की जाएगी, जिसके तहत मरीज और उनके तीमारदार अस्पताल की सर्विस क्वॉलिटी, इंफ्रास्ट्रक्चर, साफ-सफाई और डॉक्टर-नर्स समेत बाकी स्टाफ की उपलब्धता और उनके व्यवहार के बारे में फीडबैक दे सकेंगे.
यह फीडबैक स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजा जाएगा, जिसके आधार पर अस्पताल की रेटिंग की जाएगी. कुछ समयांतराल में देश के सभी जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज भी इस योजना के तहत लाए जाएंगे. वैसे तो सरकारी अस्पतालों में होने वाली अराजकता की फेहरिस्त काफी लंबी है, ड्यूटी से डॉक्टर-नसरे का नदारद रहना, चिकित्सकीय लापरवाही के अनवरत किस्से और नवजात शिशुओं की चोरी से लेकर बलात्कार तक की घटनाओं से उन पर कालिख तक पुती है. पर तकरीबन यही हाल प्राइवेट अस्पतालों में भी देखने को मिलता है. कोई घटना हो जाने या लापरवाही पकड़ में आ जाने के बावजूद अस्पताल प्रबंधन पीड़ितों के साथ सहयोग नहीं करता और उनका मनोबल तोड़ने की कोशिश करता है. जांच के लिए गठित मेडिकल बोर्ड भी मामलों को रफा-दफा करवाने में भरपूर सहयोग करते आए हैं. इसी वजह से इलाज में लापरवाही होने के बावजूद मरीजों को अक्सर इंसाफ नहीं मिल पाता. अगर वे मुआवजे की मांग करते हैं तो उन्हें कानूनी जाल में उलझा दिया जाता है. हालांकि अदालतें आम तौर पर अस्पताल प्रबंधनों की पक्षधर नहीं होती हैं और वहां मरीजों के हितों की फिक्र नजर आती है, पर न्याय में होने वाली देरी मरीजों को हताश करती है.
असल में, भारत में जितनी तेजी से डॉक्टरी के पेशे का व्यापारीकरण हो रहा है, उसे देखते हुए स्टार रेटिंग जैसी व्यवस्थाओं को सरकारी और निजी-दोनों तरह के अस्पतालों पर पूरी कड़ाई से लागू करने, मानकों को उन्नत बनाने और मुआवजे की प्रक्रिया आसान करने की जरूरत है. यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि अब तक आम आदमी को बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं कराई जा सकी हैं. अव्वल तो सस्ती और उन्नत स्वास्थ्य सेवाएं सबको हासिल नहीं हैं और दूसरे, इस क्षेत्र में जारी धांधली और अराजकता को रोकने के लिए सक्षम तंत्र का भी अभाव बना हुआ है.
कहने को तो पिछले दो दशकों में इलाज में लापरवाही के मामले में कानूनों को काफी सख्त बनाया गया है, लेकिन ज्यादातर लोगों को इसके प्रावधानों का पता नहीं है. बहुत से लोग कागजी कार्रवाइयों के जाल में उलझने से कतराते हैं. फिर इन मामलों में निर्णय होने में भी काफी विलंब होता है. बड़े शहरों में तो मीडिया के दबाव में अस्पताल दोषियों के खिलाफ कार्रवाई कर भी देते हैं पर छोटे शहरों और कस्बों में तो मरीज पूरी तरह लाचार रहते हैं.
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