कोख का कारोबार बंद

Last Updated 26 Aug 2016 05:54:29 AM IST

भारत सरकार ने सरोगेसी यानी किराये की कोख के देश में बढ़ रहे कारोबार पर नकेल कसने की पूरी तैयारी कर ली है.




कोख का कारोबार बंद होगा (फाइल फोटो)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में गठित केंद्रीय कैबिनेट ने सरोगेसी (नियमन) विधेयक-2016 को अपनी मंजूरी दे दी है. गौरतलब है कि इस बिल में किराये की कोख के कारोबारी इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगाने के कड़े प्रावधान किए गए हैं. साथ ही इसके उल्लंघन पर कड़े दंड की व्यवस्था भी की गई है. बच्चे को अस्वीकार करने जैसे मामलों में दस लाख रुपयों का जुर्माना और दस साल की सजा का प्रावधान किया गया है.

कई बार किराये की कोख से लड़की का जन्म होने अथवा बच्चे के दिव्यांग होने पर उसे महिला के पास ही छोड़ दिया जाता रहा है. इस बिल में साफ उल्लेख है कि इसका लाभ केवल भारतीयों को ही मिलेगा. अब विदेशी के साथ-साथ प्रवासी भारतीयों को भी इसका लाभ नहीं मिल सकेगा. पिछले दिनों देखने में आया है कि कुछ लोग शौक के लिए सरोगेसी का इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे थे. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने साफ कहा कि कुछ बॉलीबुड की नामी-गिरामी हस्तियां भी दो-दो बच्चे होने के बावजूद तीसरे बच्चे के लिए सरोगेसी का प्रयोग कर रहे हैं.

ध्यान रहे पिछले दिनों भारत के सरोगेसी में दुनिया की राजधानी बनने की खबरें तेजी से फैल रही थीं. इसलिए पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार के गृह, विधि और न्याय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और विदेश मंत्रालय के साथ में भारतीय चिकित्सा परिषद और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद से जबाव तलब किया था. इसी याचिका के तहत केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके शीर्ष अदालत से सरोगेसी पर आदेश जारी करने का आग्रह किया था. पिछले ही दिनों सीएसआर की निदेशक ने भी अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि किराये की कोख के कारोबार के जरिये  क्लिीनिक में लोगों से 45 से लेकर 50 लाख रुपये तक वसूले जा रहे हैं. परन्तु गरीब महिलाओं के हिस्से में केवल 3-4 लाख रुपये ही आ रहे हैं.

रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया था कि आर्थिक लाभ का लालच गरीब महिलाओं को सरोगेट मदर बनने को मजबूर कर रहा है. गृह मंत्रालय की रिपोर्ट भी बताती रही है कि कुछ विदेशी लोग टूरिस्ट वीजा पर भारत आकर सरोगेसी करा रहे हैं. सर्वेक्षण बताते हैं कि देश में अब तक दो हजार से भी अधिक बच्चे सरोगेट प्रक्रिया के माध्यम से जन्म ले चुके हैं. वर्तमान में केवल देश में ही नहीं बल्कि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के किराये की कोख के लिए \'एक बड़ा बाजार\' बनने की चर्चा जोरों पर थी. शायद यही वजह रही कि विधि आयोग को भी अपनी रिपोर्ट में सरोगेसी को उद्योग की संज्ञा देनी पड़ी थी.



अभी तक भारत में किराए की कोख से जन्म लेने वाले बच्चों, उनकी वास्तविक मां और उनके मातृत्व के विषय में कोई सार्थक कानून नहीं था. दरअसल, सरोगेसी में नि:सन्तान दंपति सरोगेट मदर का चयन करते हुए दोनों पक्ष आपस में कानूनी करार करते हैं. इस समझौते में धन के भुगतान का स्पष्ट विवरण अंकित होता है. तत्पश्चात दंपति के अंडाणु को क्लीनिक की प्रयोगशाला में निषेचित करते हुए भ्रूण को सरोगेट मदर के गर्भ में रोपित कर दिया जाता है. पारस्परिक समझौते के आधार पर इस पूरी प्रक्रिया में सरोगेट मदर को तीन से चार लाख रुपयों का भुगतान होता है. तथ्य बताते हैं कि सरोगेट मदर बनने की प्रक्रिया में अधिकांश निर्धन परिवारों की महिलाए आगे आ रही हैं. सामाजिक बहिष्कार के भय से ये महिलाएं अपने सरोगेट गर्भ धारण को गोपनीय रखने को मजबूर हैं.

भारत में सरोगेसी अब अनुमानत: 450 मिलियन वाषिर्क अमेरिकन डॉलर का कारोबार बन चुका है.  अनुमान है कि आगामी 2020 तक यह दो अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा. अवलोकन बताते हैं कि गुजरात में डेढ़ लाख की आबादी वाले आणंद में अब तक सैकड़ों गरीब परिवार की महिलाएं सरोगेट मदर बन चुकी हैं. जहां भारत में सरोगेट मदर बनने में 77 हजार अमेरिकन डॉलर (तकरीबन 43 लाख रुपये) का खर्च आता है, वहीं अमेरिका में 76 हजार अमेरिकन डॉलर (98 लाख रुपये) खर्च आता है.

अब उम्मीद है कि इस बिल के बाद जहां इस क्षेत्र की अराजकता समाप्त होगी, वहीं अनाथ बच्चों को गोद लेने के लिए भी लोग आगे आएंगे. इस संपूर्ण सरोगेसी प्रक्रिया में समाहित कानून के आने के बाद आशा है कि गरीब महिलाओं को शोषण से निजात मिलेगी.

 

 

डॉ. विशेष गुप्ता
लेखक


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