बाल विकास : जागरूकता ही बदलेगी दृष्टि

Last Updated 30 Jul 2016 05:50:32 AM IST

इस सदी के महानायक कहलाने वाले अमिताभ बच्चन के संदेश को गांव की औरतें आज तक नहीं भूली हैं.


बाल विकास : जागरूकता ही बदलेगी दृष्टि

\'दो बूंद जिंदगी के\' यह अलफाज बेशक अब टीवी, रेडियो आदि पर नहीं सुनाई पड़ते, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो मुक्त मुल्क घोषित कर दिया है, पर आज भी आंखों के सामने अमिताभ बच्चन व पोलियो का शक्तिशाली बिंब अपनी जगह बना लेता है, यह सब सहज होता है.

इस सदी के महानायक कहलाने वाले अमिताभ बच्चन के संदेश को गांव की औरतें आज तक नहीं भूली हैं. नायक/नायिकाएं/खिलाड़ी यानी सेलिब्रिटिज सिर्फ सिनेमा के पर्दे या टीवी स्क्रीन या खेल के मैदान पर ही अपना जादू नहीं दिखाते, बल्कि लोगों के जेहन में बनी उनकी लोकप्रिय छवि का जादू उसके पार भी अपना असर दिखाता है.

यह एक मनोवैज्ञानिक रिश्ता है, जिसकी कई परतें हो सकती हैं. पूरी दुनिया सेलिब्रेटिज के प्रभामंडल से चकाचौंध है. लैंगिक विषमता का मुद्दा हो या समता का या जन स्वास्थ्य का या अन्य कोई महत्त्वपूर्ण मुद्दा हो, इनकी आवाज उठाने व जागरूकता फैलाने के लिए सेलिब्रिटिज को जोड़ने वाला ट्रेंड जारी है.

बीते दिनों देश की राजधानी दिल्ली में फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा आई और उनकी यह यात्रा किसी फिल्म की शूटिंग के लिए नहीं थी, बल्कि वह फेयर स्टार्ट यानी समुचित शुरुआत अभियान को अपना पुरजोर समर्थन देने आई थीं. यूनिसेफ की गुडविल एंबेसडर प्रियंका चोपड़ा ने इस मौके पर जिला पत्रकारों और किशोर लड़कियों के सवालों के जवाब डिजिटल कांफ्रेंसिंग के जरिये दिए. क्यों अधिकतर लड़कियों को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी किए बिना ही अपनी पढ़ाई बीच में बंद करनी पड़ती है, जबकि उनके भाई पढ़ाई जारी रखते हैं? यह सवाल हरियाणा की 14 साल की तमन्ना ने फरीदाबाद से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये प्रियंका चोपड़ा से पूछा तो जवाब मिला-जागरूकता के जरिए लोगों के दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है.

प्रियंका चोपड़ा का मानना है कि अगर एक लड़की को बराबरी के मौके दिए जाएं, तो वह अपनी जिंदगी में छाप छोड़ सकती है. फरीदाबाद से 12 किशोर लड़कियों ने फेयर स्टार्ट विमर्श में हिस्सा लिया और इस प्रकार लड़कियों को लैंगिक विषमता के मुद्दे पर उनकी चिंता जाहिर करने का मंच प्रदान किया गया. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर और हरियाणा के करनाल, अंबाला, भिवानी, सोनीपत और फरीदाबाद से आए पत्रकारों ने बाल लिंगानुपात सरीखे मुद्दों पर सवाल किए. दरअसल बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ समता व जन स्वास्थ्य सरीखे मुद्दों पर सरकार, प्रशासन, नीति निर्माताओं व आम जनता का अधिक से अधिक ध्यानाकषर्ण के लिए सेलिब्रिटिज को अपने साथ जोड़ रही है.

साथ ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी कर रही है. स्थानीय मीडिया के जरिए आम जनता तक संदेश पहुंचाया जा रहा है. दुनियाभर के आंकड़ें ‘हमें आगाह करते हैं कि अगर गरीब, साधनहीन बच्चों को आगे बढ़ने के मौके देने के लिए खास पहल नहीं की गई तो हमारा सामना और अधिक बिखरे हुए विश्व और अधिक गैरबराबरी से होगा. सतत विकास लक्ष्य की शुरुआत बीते साल 2015 में हुई व इसके तहत निधरारित किए गए 17 लक्ष्यों को पाने की समय-सीमा 2030 है.

सतत विकास लक्ष्य में मुख्य बल समता, बराबरी पर दिया गया है. अगर प्रगति की रफ्तार को नहीं तेज किया गया तो 2030 तक दुनिया में  करीब 7 करोड़ बच्चे अपना पांचवां जन्मदिन मनाने से पहले मर सकते हैं. साढ़े सात करोड़ लड़कियों की शादी बचपन में हो चुकी होगी. प्राइमरी स्कूल की उम्र के 6 करोड़ से ज्यादा बच्चे स्कूल से बाहर होंगे. करीब 61 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. लगभग 1 करोड़ बच्चे काम में लगे हुए हैं, लगभग रोजाना 3500 बच्चे पांच वर्ष की आयु पूरा करने से पहले ही मर जाते हैं.

अगस्त की पांच तारीख को माधुरी दीक्षित दिल्ली में विश्व स्तनपान सप्ताह के मौके पर सरकारी कार्यक्रम को लांच करने आएंगी. बालीवुड की धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित लाखों महिलाओं को स्तनपान के महत्व बताएगीं. गौरतलब है कि अपने मुल्क में शिशु मृत्युदर बहुत अधिक है और स्तनपान उन सस्ते व निश्चित साधनों में से एक है, जो बच्चे की जिंदगी के सबसे महत्त्वपूर्ण पहले 28 दिनों में उसके अस्तित्व को बचाए रखने को सुनिश्चित करता है.

दरअसल भारत पर नवजात शिशु मृत्यु दर व मातृत्व मृत्यु दर को कम करने का बहुत दबाव है, वह इसे कम करने के लिए हर कोशिश कर रहा है. संसद के चालू सत्र में स्वास्थ्य राज्य मंत्री फगन सिंह ने बताया कि सरकार नवजातों के लिए विश्व बैंक से वित्तीय मदद लेने की तैयारी कर रही है.

अलका आर्य
लेखक


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