सेना में अधिकारियों की कमी चिंताजनक

Last Updated 01 Jul 2016 04:35:49 AM IST

आज भारतीय सेना अधिकारियों की कमी के संकट से जूझ रही है. दरअसल सेना में अधिकारियों की कमी का यह सिलसिला पिछले तकरीब दस-बारह सालों से जारी है.


सेना में अधिकारियों की कमी (फाइल फोटो)

 यह समस्या इसलिए और विकट हो गई है कि आने वाले पांच सालों में बड़े पैमाने पर अफसर और सैन्यकर्मी सेना से रिटायर हो रहे हैं. इस दौरान रिटायर होने वालों की तादाद बीते सालों की तुलना में बहुत ज्यादा है. इन पांच सालों में तकरीब आठ हजार अफसर और ढाई लाख जवान सेना से अवकाश ले रहे हैं. उस दशा में जबकि अभी तकरीब दस हजार से ज्यादा पद अफसरों के सेना में खाली पड़े हैं जो हर साल सेना के तीनों अंगों की अकादमियों, आफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी मेंस और आफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी वीमेंस द्वारा कमीशन प्राप्त नए अधिकारियों की भर्ती और लाख कोशिशों के बावजूद भरे नहीं जा सके हैं.

गौरतलब है कि भूमंडलीकरण के दौर में सेना की नौकरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाखों के वेतनमान, अनगिनत सुविधाओं के मुकाबले उपेक्षा का कारण बन गई है. उसी मानसिकता के चलते आज समूची दुनिया में वीरता, आत्मसम्मान, विशालता और देश की सुरक्षा की खातिर अकथनीय कष्टों को सहने तथा नियंत्रण रेखा और सीमा पर व उग्रवाद विरोधी अभियानों में बिना बुलेट प्रूफ जैकेट के अपनी जान हथेली पर लेकर लड़ने में माहिर भारतीय सेना आज अधिकारियों की कमी, उनकी दक्षता में लगातार आ रही गिरावट तथा अधिकारियों व जवानों के सेना से बढ़ते पलायन के कारण गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है.

रक्षा मंत्रालय और सेना के कमांडरों की चिंता का कारण भी यही है. यही वह अहम वजह है जिसके कारण आने वाले दिनों में आईएएस, आईपीएस सहित राजपत्रित पदों पर भर्ती होने वाले केंद्र व राज्य सरकारों के सभी अफसरों के लिए अपने सेवाकाल के दौरान पांच साल की मिलिट्री सेवा करना अनिवार्य हो सकता है. सेना में अधिकारियों की कमी से निपटने के लिए इस तरह का प्रस्ताव केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय के पास पिछले एक साल से विचाराधीन है.

एक साल पहले संसद की एक समिति ने यह सुझाव दिया था कि केंद्र एवं राज्य सरकारों के राजपत्रित पदों पर जहां अधिकारियों की सीधी भर्ती होती है, वहां पर उन अधिकारियों के लिए पांच साल की मिलिट्री सेवा अनिवार्य कर दी जाए. चूंकि यह एक अहम नीतिगत मसला है और इस बारे में कई एक पक्षों से सलाह-मिरा लिया जाना बाकी है, इसलिए इस पर अंतिम फैसला अभी तक नहीं लिया जा सका है. इस बारे में रक्षा मंत्रालय का मानना है कि यह फैसला लेना इतना आसान नहीं है. सैन्यबल लाख कोशिशों के बावजूद अधिकारियों की कमी दूर कर पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं.

देखा जाए तो भारतीय सेना के तीनों अंगों में 72,824 पद अफसरों के लिए स्वीकृत हैं. इनमें तकरीब साढ़े दस हजार अफसरों के पद खाली पड़े हैं. बीते दिनों इन 10,500 अफसरों के खाली पड़े पदों की कमी को दूर करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने सैन्य बलों को अतिरिक्त प्रशिक्षण सुविधाओं का विस्तार करने को कहा है.



असलियत यह है कि जवानों की भर्ती प्रक्रिया में उतनी दिक्कत नहीं है, लेकिन असल दिक्कत प्रशिक्षण सुविधाओं में कमी के कारण अफसरों की भर्ती में आती है. होता यह है कि सैन्य बल कंबाइंड डिफेंस सर्विसेज के जरिये 400-500 अफसरों की ही भर्ती कर पाते हैं. फिर तकनीकी पदों पर प्रमोशन के जरिये जो भर्ती होती है, वह भी ज्यादा नहीं है.

 इस समय करीब थल सेना में 8455, नौसेना में 1672 और वायु सेना में 523 अफसरों की कमी है. यदि तीनों सेनाओं में अफसरों से नीचे के जवानों और जूनियर कमीशंड अफसरों की बात करें तो हालात और खराब हैं. वहां करीब 33 हजार पद खाली पड़े हैं. यह चिंता वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के कार्यकाल से संसदीय सलाहकार समिति बराबर व्यक्त करती रही है कि अन्य क्षेत्रों में आकषर्क अवसरों के कारण अब रक्षा क्षेत्र में कॅरियर बनाने में युवा वर्ग की रुचि कम हो रही है.

अधिकारियों की कमी को पूरा करने के मामले में सेना द्वारा आंतरिक रूप से कराए अध्ययन के मुताबिक खाली पड़े पद आने वाले दो दशक में उस हालत में भरे जा सकते हैं जबकि अकादमियों की प्रशिक्षण क्षमता बढ़ाई जाए और समय से पहले अधिकारियों की सेवानिवृत्ति पर रोक लगे. इस अध्ययन के आधार पर सैन्य अकादमियों की भर्ती क्षमता बढ़ाने के लिए अकादमियों को तीन साल का समय चाहिए. वर्तमान समय में कॅरियर के लिहाज से सबसे बड़ी जरूरत सेना को आकषर्क विकल्प बनाने की है.

 

 

ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक


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