डार्क ज़ोन..बीमारी का खतरा

Last Updated 05 May 2016 07:43:04 AM IST

केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल 31 मार्च तक देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 39.651 अरब क्यूबिक पानी था.


डार्क ज़ोन..बीमारी का खतरा

यह मात्रा पिछले दस वर्षो के औसत से 25 फीसद कम है. इससे देश के दस राज्य तो बुरी तरह प्रभावित हो गए हैं, लेकिन यह हालत बाकी राज्यों के लिए भी चिंता का विषय है. बुंदेलखंड में हैंडपंप करीब-करीब सूख चुके हैं. इस क्षेत्र में इस साल सिर्फ20 फीसद ज़मीन पर ही बुवाई हुई थी. वह भी पानी के न रहने से बर्बाद हो गई. फसल न होने से कृषि मज़ूदरों के पास काम नहीं है, जिससे लाखों की संख्या में वे दूसरे क्षेत्रों में पलायन कर चुके हैं. गांवों में 25 निजी कुएं बोर सूख चुके हैं.

तालाब में पानी नहीं है. इंद्र देवता पिछले चार वर्षो से मौन साधे हुए हैं, जिससे यहां की वह भूमि पटती जा रही है, जहां कभी खेती हुआ करती थी. खुशहाली दिखाई देती थी. मगर अब पेड़-पौधे सूख चुके हैं. पालतू और दुधारू पशुओं को पालने के लिए चारा नहीं है, जिससे उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. इस इलाके में ज्यादातर लोगों ने पिछले कई महीनों से भरपेट भोजन तक नहीं किया है. इलाके के गांव भुखमरी की स्थिति में हैं. हालात इस कदर गंभीर हो चुके हैं कि अगर कहीं आग लग जाए तो उसे बुझाने के लिए पानी नहीं है. एक घर में आग लगने का मतलब होगा, उसकी लपटें दूसरे घर तक पहुंचना और फिर तीसरे और फिर चौथे..ऐसा बुंदेलखंड में हो चुका है, जहां पिछले दिनों कई घरों का सामान तक जलकर राख हो गया था.

करीब 15 साल पहले 150 से 200 फुट नीचे पानी मिल जाता था. आज इसके लिए 500 फुट तक ज़मीन खोदनी पड़ती है. किसानों को केंद्र सरकार से बिजली की सब्सिडी क्या मिली, उन्होंने खेतों के लिए ज़रूरत से ज्यादा पानी निकलने पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे समस्या और भी भयावह होती चली गई. किसानों ने भी ज्यादा पानी का इस्तेमाल होने वाली फसलों को लगाने पर ध्यान केंद्रित किया. मराठवाड़ा की समस्या इसीलिए गंभीर हुई क्योंकि वहां बहुत कम बारिश होने के बावजूद गन्ने की फसल में पानी जुटाने के लिए ज़मीन का अति दोहन किया गया. बुंदेलखंड के ललितपुर ज़िला मुख्यालय में तो महिलाओं को आधी रात को पानी की लंबी कतारों में देखा जा सकता है. दिन की तपन से बचने के लिए वे रात को घर से चार-पांच किलोमीटर दूर पानी भरने जाती हैं, जिनमें से कइयों को निराश भी लौटना पड़ता है.

आगरा में हालात बेहद निराशाजनक
उधर, आगरा में भी यमुना नदी के सूखने से गंभीर हालात बनते जा रहे हैं. धरती की कोख सूख चुकी है. यमुना में पानी निम्नतम स्तर पर बह रहा है. इलाके के 15 में से 11 ज़ोन डार्क ज़ोन यानी अति दोहन श्रेणी में घोषित किए जा चुके हैं. मथुरा के विश्राम घाट पर नदी के पानी में डिसाल्व ऑक्सीज़न लेवल 2.8 मिलीग्राम प्रति लीटर के स्तर पर पहुंच गया है. यह पानी जीव-जंतुओं के लिए भी उपयुक्त नहीं है. सबसे बड़ी परेशानी यह है कि ज़मीन के नीचे के जल के स्तर में गिरावट के अलावा पानी में फ्लोराइड की मात्रा घातक स्तर पर पहुंच गई है. इसे पीने से हाथ-पैर की हड्डियां टेढ़ी हो सकती हैं, जिसे फ्लोरोसिस नामक बीमारी कहा जाता है.

आज़ादी के समय देश भर में करीब 24 लाख तालाब थे, लेकिन आज इनकी संख्या 80 हज़ार तक सिमट तक रह गई है. प्रधानमंत्री मन की बात कार्यक्रम में और एक लाख तालाब बनाने का ऐलान कर चुके हैं. मैं प्रधानमंत्री जी की बात का सम्मान करता हूं लेकिन साथ ही मैं उनकी बात में एक और बात जोड़ना चाहता हूं कि देश भर में आज हज़ारों की संख्या में नदियां और झीलें हैं, लेकिन वहां का पानी पूरी तरह से सूख चुका है. कुछ नदियां ऐसी भी हैं, जहां बहुत कम पानी बचा है. वक्त रहते उन पर ध्यान नहीं दिया गया तो इन नदियों केविलीन होने का खतरा पैदा हो जाएगा. मेरे संसदीय क्षेत्र कैसरगंज और उसके आसपास टेढ़ी, सरयू, मनोवर और रावती नदियां बहती हैं. साथ ही, यहां आरंगा-पार्वती, कोणर और पथरी नाम की झीलें थीं. सरयू नदी का स्थानीय संगम मेला काफी मशहूर हुआ करता था. इसी तरह विशाल पोखरा के उद्गम स्थल से निकल कर मनोवर नदी बस्ती जनपद के भखौला स्थान तक पहुंचती है.

कभी अयोध्या के राजा दशरथ ने इसी मनोवर नदी के तट पर पुत्रेश यज्ञ किया था, लेकिन आज ये नदियां और झीलें बुरी तरह से पट चुकी हैं. इनमें अब नाम मात्र का जल बचा है, वह भी काफी गंदा. इनकी खुदाई करके इन्हें और गहरा किया जा सकता है. आसपास वृक्षारोपण करने से इस इलाके को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जा सकता है, लेकिन अभी तक यह इलाका हाशिये पर ही रहा है. देश में कई तालाबों पर कब्ज़े की घटनाएं सामने आई हैं. कहीं गंदगी है, तो कहीं तकनीकी ज्ञान की कमी से वे सिमटते जा रहे हैं. ये तालाब आम आदमी की प्यास बुझाने के अलावा मछली पालन, सिंघाड़ा, कुम्हार के लिए चिकनी मिट्टी आदि क्षेत्रों में भी सक्रिय थे, और देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देते थे. देश में कितनी ही नदियों और झीलों में यही स्थिति है, जिसे भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता.

महाराष्ट्र में बाहर से लाए गए पानी का वितरण करने के बजाय उसे पहले कुओं में डाला गया. फिर बच्चों ने कुएं में घुस कर पानी निकाला. साढ़े तीन सौ रु पये का टैंकर 1500 रु पये तक बिका. यह उस राज्य की हालत है, जहां देश में सबसे ज्यादा 1853 बांध हैं. अकेले लातूर की आबादी 25 लाख के आसपास है. अगर 50 लाख लीटर पानी टैंकरों से वहां पहुंचता है, तो प्रति व्यक्ति दो लीटर पानी ही नसीब हो पाता है. यानी टैंकरों की नियमित आवाजाही होते रहना ज़रूरी है. इन समस्याओं से निपटने में स्थानीय प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा है. इस राज्य में सिंचाई और बांध के नाम पर करोड़ों की लूट देखने को मिली है. बुंदेलखंड में राज्य सरकार किस दिशा में काम कर रही है, वही जाने. अगर भविष्य में पानी के संचय पर ध्यान नहीं दिया गया तो बुंदेलखंड को लातूर बनते देर नहीं लगेगी.

बृजभूषण शरण सिंह
सांसद, लोकसभा, भाजपा


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