टकराव की पटकथा

Last Updated 02 May 2016 05:27:51 AM IST

अरविंद केजरीवाल सरकार ने केंद्र से टकराव की एक और पटकथा लिख रखी है.




अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)

वह दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का एक प्रारूप तैयार किया है, जिसको वह सार्वजनिक बहस में रखना चाहते हैं. इसमें वे तीन मसले अव्वल हैं-कानून व्यवस्था का जिम्मा, दिल्ली विकास प्राधिकरण और तीनों नगर निगम. इनको वह पूर्व दिल्ली राज्य के दज्रे के साथ दिल्ली सरकार के मातहत रखना चाहते हैं. इनमें नई दिल्ली महानगरपालिका का क्षेत्र उन्होंने छोड़ कर दिया है.

मुख्यमंत्री का दावा है कि यह काम आम आदमी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में किये वादे के मुताबिक है. वास्तव में ऐसा है भी. आप सरकार को इस मसले पर भी जनादेश मिला था कि वह दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाएगी. पर यह वादा करके भाजपा सरकार आई थी और कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार भी. पर ऐसा हो नहीं सकता है.

नई दिल्ली की परिधि पर बसी दिल्ली का भूगोल ही पूर्ण राज्य को असंभव बनाता है. यह बात दिल्ली को विधानसभा देते वक्त ही विधान में स्पष्ट कर दिया गया था कि पुलिस राज्य सरकार को नहीं दी जा सकती. यह भी कि विधानसभा में कोई किसी ऐसे प्रस्ताव को पेश करने से पहले केंद्र से मंजूरी लेनी पड़ेगी. यहां तक कि बजट भी वहीं से पारित हो कर आएगा.

ऐसा नहीं है कि केजरीवाल को इस असंभव का थाह पहले से नहीं रहा है. उनके पूर्ववर्त्ती मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और शीला दीक्षित ने इसमें समय नष्ट करने के बदले केंद्र से तालमेल कर दिल्ली के विकास-कार्यों को प्राथमिकता दी. वह धरातल भी दिखा भी. पर केजरीवाल का सत्ता में आगमन इवेंट मैनेजमेंट से हुई है. उनमें प्रचार में बने रहने और इसका लाभ साधने की प्रबल उत्कंठा दिखाई देती है.

यह अब तक के उनके कामों से भी जाहिर होता है. एक प्रबल जनाकांक्षा व नूतन प्रयोग बतौर शुरू हुई उनकी सरकार के हिस्से में उतनी उपलब्धियां नहीं आई हैं, जितनी बिना प्रचार के उनके पूर्ववत्तिर्यों ने हासिल कीं. अलबत्ता, जनता में उन मसलों पर जाने में बुराई नहीं है, जिनसे उसका सीधा नाता है.

जनता को तो बस ईमानदार, पारदर्शी और नतीजे देने वाली सरकार से वास्ता है. पुलिस चाहे इनकी हो या उनकी. काम के बजाय केवल प्रचार में रहना जब ध्येय हो जाए तो गुड गवर्नेंस हाथ से छूट जाता है.  

 



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