धारा और सच के विरुद्ध सोच
किसी संगठन से मुक्त देश की कल्पना या आह्वान वही कर सकता है, जिसके मन में संकल्प हो कि वह अपना संपूर्ण जीवन इसके लिए लगा देगा और उसके पास इतनी क्षमता है कि लोगों को उसके विरुद्ध खड़ा ही नहीं करेगा, जिस संगठन को खत्म करना है.
धारा और सच के विरुद्ध सोच |
उसके लोगों को भी समझा सकेगा कि आप गलत जगह हैं, इसका परित्याग कर दीजिए. कोई संगठन केवल विरोध से खत्म नहीं हो सकता, जब तक उसके सदस्य उसका साथ नहीं छोड़ते वह बना रहेगा. प्रश्न है कि क्या नीतीश कुमार ने संघ-मुक्त भारत की जो बात की है, उसके लिए वे अपना पूरा जीवन संकल्प के साथ लगाने को तैयार हैं? क्या स्वयं उनको यह विश्वास है कि ऐसा हो सकेगा यानी एक दिन संघ का नामोनिशान देश से खत्म हो जाएगा? क्या उन्हें लगता है कि वो इस प्रकार का अभियान चला सकेंगे जिससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अंगभूत घटकों के सदस्य अपने संगठन का परित्याग कर देंगे? 1925 से आज तक की संघ की यात्रा किसी राजनीतिक समर्थन की मोहताज नहीं रही है. भाजपा तो केंद्र में दो बार सत्ता में आई है. हां, कुछ राज्यों में अवश्य उसकी सरकारें सालों से हैं. भाजपा के पूर्वज जन संघ ने जनता पार्टी में विलय कर लिया तो 1977 से ढाई साल वह शासन में रहा. क्या इन सरकारों की अवधि में संघ का ज्यादा विस्तार हुआ और इसके सत्ता में न रहने के काल में संघ कमजोर हुआ? इसका उत्तर है, नहीं.
राजनीति और संघ
अनावश्यक विरोध से परे होकर जिनने संघ का अध्ययन किया है, वे जानते हैं कि संघ ने जब अपनी शुरु आत की उसने राजनीति में आने की सोचा भी नहीं था. 1950 में जन संघ बनाने की कल्पना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की थी, जिनका संघ से संबंध ही नहीं था. हालांकि संघ में तब राजनीतिक दल बनाया जाए या नहीं, इस पर बहस चलने लगी थी, लेकिन उसका समर्थन ज्यादा नहीं था. जब डॉ. मुखर्जी ने संघ के तत्कालीन प्रमुख गुरु गोलवलकर से भेंट कर जन संघ का प्रस्ताव रखा एवं काम करने के लिए लोग मांगे तक जाकर इस पर गंभीरता से विचार हुआ और संघ के लोग जन संघ में गए. तब से लेकर आज तक जन संघ एवं भाजपा में संघ के लोग काम करते हैं, भाजपा के भारी संख्या में नेता और कार्यकर्ता हैं, जो संघ के स्वयंसेवक हैं, इसलिए कहना गलत होगा कि संघ का राजनीति से संबंध नहीं है, किंतु सच यही है कि संघ का डीएनए राजनीति का नहीं है. तो जब डीएनए राजनीति का नहीं है यानी उसके मूल चरित्र में राजनीति नहीं है, उसके विकास में राजनीति का योगदान नहीं है, तो फिर राजनीतिक संघर्ष या विरोध से उसका अंत हो ही नहीं सकता.
राजनीति की एक धारा में संघ का तीखा विरोध लंबे समय से है. कम्युनिस्ट पार्टयिों का तो सर्वप्रमुख निशाना ही संघ है. कम्युनिस्टों की ताकत भारत में अवश्य क्षरित हुई, संघ की शक्ति बढ़ती गई. कम्युनिस्टों की चर्चा इसलिए जरूरी है कि उनकी विचारधारा सीधे संघ-विरोधी है. जब एक विचारधारा वाली राजनीतिक धारा संघ को नहीं खत्म कर सकी, संघ तो छोड़िए ये भाजपा को खत्म नहीं कर सके तो फिर दूसरे दल ऐसा कर देंगे, यह कल्पना वैसी ही है, जैसे अबोध बालक आकाश से तारा तोड़ लेने की बात करे.
सच तो यह है कि नीतीश को ही, जो कुछ वो बोल रहे हैं, उसकी व्यावहारिकता की पूरी परिकल्पना नहीं है. नीतीश से यह भी पूछा जाना चाहिए कि आपके पास इसकी कोई कार्ययोजना है? उन्होंने यही कहा कि सभी गैर-भाजपा दलों को एकत्रित हो जाना चाहिए संघ-भाजपा मुक्त भारत के लिए. इसके आगे-पीछे कुछ नहीं है. वे एक प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, अपने दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं, हाल ही में बिहार चुनाव में उनने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा को बिहार विधान सभा चुनाव में विजित नहीं होने दिया, इसलिए मीडिया ने उनकी बातों को महत्व दे दिया..अन्यथा कोई और ऐसा बोलता तो समझदार लोग उस पर केवल हंसते.
हिंदुत्व को लेकर आक्रामत्कता का समय
इस समय संघ को खत्म करने की बात समाज की धारा के विपरीत भी है. पिछले कुछ वर्षो में समाज में हिंदुत्व की ध्वनि पहले से ज्यादा प्रखर हुई है. हिंदुत्व के मुद्दों पर लोगों को जितना आक्रामक इस समय देखा जा रहा है, वैसा कभी नहीं था. संघ-विरोधी या भाजपा-विरोधी समझ नहीं पा रहे हैं कि यह हिंदुत्व के नए सिरे से सामाजिक नवोन्मेष का दौर है. आप गोहत्या पर लोगों की प्रतिक्रियाएं देख लीजिए, इसके पूर्व ऐसी आक्रामकता नहीं देखी गई. जिनका संघ से कोई लेना-देना नहीं वो भी मरने-मारने को उतारू हो जाते हैं. उनमें ऐसे लोग भी हैं, जो भाजपा को वोट नहीं देते, लेकिन हिंदुत्व के मुद्दे पर उनमें मुखरता है. कुछ राज्यों के चुनाव परिणामों से आप इसे व्याख्यायित नहीं कर सकते. तो यह इस समय समाज की धारा है, और कुछ लोग जो असहजता महसूस कर रहे हैं तथा असहिष्णुता आदि शब्द से इसे व्याख्यायित कर रहे हैं, वे इस सूक्ष्म धारा को समझ नहीं पा रहे हैं. कहने का तात्पर्य यह कि जो समय की धारा है, वह संघ के अनुकूल है, उसकी विचारधारा को बल प्रदान करने वाली है.
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