अब तो संभल जाएं

Last Updated 13 Feb 2016 01:16:02 AM IST

बैंकिंग जगत में हाहाकार है, शेयर बाजार में चीत्कार है.


अब तो संभल जाएं

11 फरवरी, 2016 को मुंबई शेयर बाजार के सूचकांक सेंसेक्स में एक ही दिन  में 807.07 बिंदुओं की गिरावट दर्ज की गई यानी एक ही दिन में बाजार 3.40 प्रतिशत लुढ़क गया. इसके अगले दिन यानी 12 फरवरी, 2016 को मुंबई शेयर बाजार के सेंसेक्स ने कुछ उठने की कोशिश की, पर कामयाबी हाथ न लगी, कुल 34.29 बिंदु यानी दशमलव 15 प्रतिशत ही उठ पाया. बैंकिंग शेयरों को जमकर पिटाई हो रही है शेयर बाजार में. वजह यह है कि भारत का बैंकिंग जगत गहन संकट से गुजर रहा है.
बैंकों में हाहाकार की छाया शेयर बाजार पर पड़ना शुरू हो गई है. बैंकों और शेयर बाजार की हालत खराब है. बैंकों का कामकाज देखकर निवेशकों का भरोसा उनसे उठ रहा है. बैंकों का काम मूलत: भरोसे का काम है. भरोसा कम होने का आशय है कि, उनने अपने काम को कायदे से अंजाम नहीं दिया.

इसका मतलब है कि उनके प्रबंधन ने कायदे से काम न किया. भारत में बैंकों का बड़ा हिस्सा सरकार के ही हाथ में है. देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने हाल में जो नतीजे पेश किए हैं, वो डराने वाले हैं. सितम्बर-दिसम्बर, 2014 की तिमाही में स्टेट बैंक ने कुल 2910 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा दिखाया था, सितम्बर-दिसम्बर, 2015 की तिमाही में यह गिरकर 1115 करोड़ रुपये हो गया यानी करीब 62 प्रतिशत की गिरावट. इस परिणाम के बाद बाजार में हड़कंप मच गया. स्टेट बैंक सेंसेक्स का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. उसके शेयर में गिरावट का मतलब है कि सेंसेक्स में भी उस गिरावट का असर दिखाई दे. पिछले 52 हफ्तों में स्टेट बैंक का शेयर 315 रुपये का टॉप भाव देख चुका है, पर 11 फरवरी को यह गिरकर 154.25 रुपये पर आ गया यानी अपने सबसे ऊंचे भाव के मुकाबले 51 प्रतिशत की गिरावट.

स्टेट बैंक के नॉन परफार्मिग एसेट यानी एनपीए, यानी ऐसे कर्ज जिनकी हालत डांवाडोल है, में बढ़ोतरी हुई है. दिसम्बर, 2014 में एनपीए 4.9 प्रतिशत थे, ये बढ़कर 2015 में 5.10 प्रतिशत हो गए यानी कजरे की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है, बिगड़ने के आसार जरूर दिखाई दे रहे हैं. दूसरे बहुत बड़े सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक का हाल तो बहुत ही बुरा है. सितम्बर-दिसम्बर, 2014 की तिमाही में पंजाब नेशनल बैंक ने 774.56 करोड़ रु पये का शुद्ध मुनाफा कमाया था. यह सितम्बर-दिसम्बर, 2015 की तिमाही में गिरकर सिर्फ  51.01 करोड़ रु पये रह गया है यानी करीब 94 प्रतिशत की  गिरावट.

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन लगातार कह रहे हैं कि बैंकों की बैलेंस शीट साफ होनी चाहिए यानी बैंक अपने कई डूबत कजरे को भी अपने खातों में यह मानकर दिखा रहे हैं कि उनकी वापसी हो जाएगी, पर उन कजरे की वापसी अब होती दीख नहीं रही है. बैंकों की बैलेंस शीट साफ होने का मतलब कि संदिग्ध कजरे को पूरा डूबा हुआ मान लेना. इससे बैंकों के मुनाफे में कमी आना तय है. वही होता दिख रहा है. सरकारी बैंकों में तमाम कारणों से कर्ज ज्यादा संदिग्ध हुए हैं. कर्ज लेने वाले सरकारी बैंकों को राजनीतिक तरीके से प्रभावित कर सकते हैं. विजय माल्या जैसे कर्ज डुबाऊ लोग उदाहरण हैं. उनको दिए कर्ज की वजह से कई बैंक संकट में हैं. रिजर्व बैंक के गवर्नर ने माल्या पर परोक्ष कटाक्ष करते हुए कहा था कि लोगों की जीवन शैलियां नहीं बतातीं कि उन्होंने कितनी पूंजी डुबो दी है.

माल्या जैसे कई उद्योगपतियों की जीवन शैलियां नहीं बदली हैं, बैंकों की हालत बदल गई हैं, जो ज्यादातर सरकारी बैंकों के हिस्से में आई है. निजी क्षेत्र के बैंकों की हालत उतनी खराब नहीं है. निजी क्षेत्र के बड़े बैंक एचडीएफसी बैंक के शेयर का भाव पिछले 52 हफ्तों में उच्चतम स्तर पर 1,128 रु पये तक गया था, 11 फरवरी की गिरावट में यह 975.30 रु पये पर पहुंच गया यानी 52 हफ्तों के उच्चतम स्तर के मुकाबले 14 प्रतिशत कम. आईसीआईसीआई बैंक के शेयर ने पिछले 52 हफ्तों के दौरान अपने भावों का उच्चतम स्तर 315 रु पये पर देखा है, 11 फरवरी की गिरावट में यह गिरकर 154.25 रु पये पर पहुंच गया यानी अपने उच्चतम स्तर के मुकाबले  45 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की  है इस शेयर में.

बैंकों के कजरे की खराब हालत दो वजहों से हुई है. एक तो कई कर्ज दिए ही गलत कारणों से गए थे. माल्या जैसे डुबाने वाले कारोबारियों को लगातार कर्ज देने में कई बैंक क्यों उदार बने रहे? सवाल पूछा जाना चाहिए. दूसरी वजह यह है कि कई परियोजनाएं अटकी हुई हैं. नई परियोजनाओं का माहौल नहीं बन रहा है. तो मुनाफे के नये स्रोत आएंगे कहां से? यहीं से दूसरा सवाल खड़ा हो जाता है कि अर्थव्यवस्था का समग्र आंकड़ा ठीक-ठाक काम करता दिखता यानी उम्मीद की जा रही है कि 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद का विकास 7.6 प्रतिशत की दर से होगा. यह दर कम नहीं है. दरअसल, पूरे विश्व में इस विकास दर को सबसे तेज माना जा सकता है. इस रफ्तार से विकसित होती अर्थव्यवस्था को लेकर आशंकाएं ज्यादा नहीं होनी चाहिए थीं, पर आशंकाएं बहुत हैं. इतनी अधिक आशंकाएं हैं कि मुंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक निफ्टी करीब एक साल में बीस प्रतिशत गिर चुके हैं.

कुल मिलाकर बैंकिंग सेक्टर समेत पूरी अर्थव्यवस्था में नया विश्वास जगाने की जरूरत है. यह काम सरकार बखूबी कर सकती है क्योंकि वही देश की बैंकिंग व्यवस्था कि बड़ी मालिक है. सरकारी बैंकों की बैलेंस शीट एक बार एक झटके में साफ कर दी जाए ताकि उनकी सेहत को लेकर किसी के मन में शंका नहीं बचे. अभी सरकारी बैंकों की स्थिति यह है कि उन्हें लेकर यह पक्का नहीं हो पा रहा है कि गड्ढा आखिर है कितना गहरा. एक बार पूरी मुस्तैदी से संदिग्ध कजरे का निपटारा हो जाए तो फिर सरकारी बैंकिंग को नये सिरे से जमाया जाए. और यह सुनिश्चित किया जाए कि पुरानी गलतियां दोबारा ना हों.

विजय माल्या जैसे प्रमोटर अपने राजनीतिक रसूख के बूते कर्ज ना ले जाएं क्योंकि अगर सरकारी बैंक डूबते हैं, तो अंतत: पब्लिक का पैसा ही डूबता है. पब्लिक द्वारा दिए गए टैक्स ही इन बैंकों को उबारने के काम में लगता है. तो सरकारी बैंकों के कर्ज का डूबना, उनके पुनरोद्धार में लगी रकम मूलत: पब्लिक के साथ अन्याय है. उस रकम का इस्तेमाल किसी अस्पताल या किसी स्कूल या सड़क को बनाने में किया जा सकता  था, पर वह डूबे बैंक को उबारने के काम में लग रहा है. मोदी सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति से यह सुनिश्चित करना होगा कि स्वच्छ भारत के उसके अभियान में स्वच्छ बैंकिंग भी शामिल है.

आलोक पुराणिक
एसएनबी


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