‘सिट काम’ या ‘लटक कॉम’?

Last Updated 07 Feb 2016 01:43:51 AM IST

हास्य कलाकार कीकू शारदा के हंसने ने बताया कि इन दिनों हंसना मर जाने के बराबर है.


सुधीश पचौरी

कीकू शारदा कपिल शर्मा के कॉमेडी कार्यक्रम में एक बाबा जी की नकल मार बैठे. वे दर्शकों को हंसाने के लिए ऐसा कर रहे थे. दर्शक हंसे भी होंगे, लेकिन बाबा जी के भक्त कीकू शारदा की नकल मारने की हरकत को इस कदर सीरियसली ले लिये कि उन पर ‘भावना आहत’ करने वाला केस कर दिया. कीकू जी को पुलिस ले गई. जमानत पर बाहर आए. उसके बाद वे एक चैनल पर आए, तो उनकी बातों में डर-सा समा गया था, वे बेहद सावधानी से बोल रहे थे, हंसी कहीं खो गई थी.

कोई दस बरस पहले की बात है. इन्हीं चैनलों में लॉफ्टर चैलेंज आयोजित किए गए थे, जो जमकर हिट हुए. एकाध चैनल पर पाकिस्तान के कॉमेडियन भी कंपीटिशन में बुलाए जाने लगे और कुछ बेहद उम्दा नकलें, कुछ बेहतरीन पैरोडीज नजर आई थीं. उन्हीं में एक राजू श्रीवास्तव थे, जिन्होंने बिहारियों की और उनमें लालू की ऐसी नकल मारी थी कि देखने वालों के पेट में बल पड़ गए थे. एक कंपीटिशन में जीते भी थे. उसके बाद सेलीब्रिटी बन गए, वे अपने मजाकों से, अपनी नकल मारने की दक्षता से, पेरौडी करने की क्षमता से. बड़े-बड़ों की खिल्ली उड़ाते थे और तालियां पाते थे.

कई बार जिन हीरो-हीरोइनों का वे मजाक उड़ाते थे, वे सामने बैठे होते थे और वे राजू को अपने संवादों की नकल करते देख हंसा करते थे. बिहारी लोग जब ट्रेन में किसी को छोड़ने आते हों तो कैसे सीन बनते हैं या जब शहर में गाय भैंस सड़कों के बीच बैठती है और जुगाली करते हुए आपस में बतियाती है तो कैसी-कैसी अनूठी बातें करती हैं, इसी तरह शादी की दावतों में ‘खड़े खाने’ यानी बुफे के खाने पर होने वाले अत्याचार की कहानी सुनते-सुनते या शादी में बारात के आने और विदा हाने के बीच के कांडों का वर्णन वे जिस मजाकिया तरीके से किया करते थे वो देखते ही बनता था. उनके ऐसे कार्यक्रमों के कई वीडियो अब भी यूट्यूब पर पड़े हैं.

जाहिर है कि इन कॉमेडियनों ने जो कॉमेडी दी, वह जिदंगी में ही मौजूद थी और अब भी है. फर्क इतना ही है कि अब कॉमेडियनों का एक वर्ग और बन गया है, जिसे ‘भड़कती भावना’ के नाम से जाना जाता है. इस वर्ग को बिना हास्य के महत्त्व मिलता है, वरना तो कोरी तालियां मिला करती थी. इससे यह भी स्पष्ट होता है, जिस समाज में हास्य तक को खतरनाक माना जाने लगा, वह जरूर ऐसी गंभीरता के रोग का शिकार है, जिसका इलाज हकीम सुलेमान के पास तक नहीं है. मनहूस और मस्त लोग हर समय रहे हैं और जब तक एक भी मनहूस रहेगा, तब तक मस्त लोग रहेंगे; जो हंसने का कारोबार करते रहेंगे. मुझे लगता है, जब से मुकरी, सुंदर, जॉनी वाकर, महमूद, मोहन चोटी, जॉनी लीवर, कादर खान आदि की कॉमेडी फिल्मों से गायब हुई है, तबसे वह कॉमेडी टीवी की खबरों में और शाम की बहसों में आ कर बैठने लगी है. इस कॉमेडी का नाम है: डिबेट, बहस, महा बहस, आज की सबसे बड़ी बहस! हमारे टीवी का मिजाज जबसे धंधई हुआ है, उसके लिए कॉमेडी भी धंधई हो गई है, और एंकरों की टोका-टोकी में समा गई है.

पहले एंकर सीरियस, वक्ता सुपर सीरियस और सोशलाइट उनके भी बाप नजर आते हैं, फिर वे छुट्टी के दिन ‘एआइबीरोस्ट’ वाली कॉमेडियां देखने जाते हैं, और उसका एक अंश दिखाकर उसका बाजार बनाते हैं, लेकिन जब चर्चा में आते हैं, तो किसी बीमार की मानिंद सीरियस हो जाते हैं. पाखंड अपने यहां एक परमानेंट कॉमेडी है, जो हर शाम बहसों में होती दिखती है, और बहसों में हंसी के क्षण तब बनते हैं, जब हम देखते हैं कि किसी प्राइमरी स्कूल के अनुशासित बच्चे की तरह कुछ बेहद पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी टाइप लोग बात-बात पर, एक अदना एंकर से ‘मे आई’ ‘मे आई’ और ‘प्लीज गिव मी फिफ्टीन सेकेंड्स’ और ‘लेट मी कंप्लीट’ आदि की चिरौरी करते नजर आते हैं और एंकर मजे ले रहा होता है कि देखा अब बताइए विचारक जी, मैं आपका मास्टर हूं कि आप मेरे मास्टर हैं?

बहस में वो वक्त सबसे मजेदार होता है, जब चार-पांच जन एक साथ बोलने लगते हैं और फिर थक कर बीच में चुप हो जाते हैं कि फिर किसी बात पर चीखने लगते हैं. ऐसे विद्वान किसी जोकर से कम नहीं लगते. बताइए, जब राजू के काम को, कपिल शर्मा के काम को, कोई बड़ा पत्रकार, कोई बड़ा बद्धिजीवी खुद करने लगे तो कॉमेडियन क्या करे? यही हंसी का सुंदर क्षण होता है, जो दर्शकों के लिए अक्सर बनता रहता है, लेकिन जिससे एंकर खुद अनजान रहता है. जरा सोचिए सीन को और अपनी हंसी को रोक कर दिखाइए. वे नामी-गिरामी विचारक चेहरे एक-एक घंटे लटके रहते हैं. एंकर किसी भी मुद्दे को एब्सर्डिटी की हद तक खींचे ले जाते हैं और दस-दस विचारकों को लटका कर एक घंटे तक झुलाते हैं. यह अपने आप में लाइव कॉमेडी होती है.

जनता भी समझती है कि, जब इतने पढ़े-लिखे लोग हर शाम चिल्ला-चिल्ला कर भी इस देश का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं, तय मानिए कि यह देश कहीं नहीं जा रहा है. सारी बकवास के बाद वहीं का वहीं रह रहा है. क्या यह हंसी की बात नहीं? पुराने कॉमडियन गए, उनकी जगह नए आ गए हैं. वे स्क्रिप्ट लिखकर काम करते थे, ये बिना स्क्रिप्ट के ही चालू रहते हैं और मजा मानते हैं कि देश को लाइन दे रहे हैं. हुआ इतना भर है कि प्रोफेशनल कलाकारों के हाथ से निकल कर कॉमेडी टीवी के एंकरों और कुछ बुद्धिजीवियों के हाथ लग गई है और हर शाम हर खबर चैनल पर एक दो घंटे होती है. उनको झेलना है तो हमारी नजर से झेलिए, आपको नया हास्य मिलेगा, जो उसके करने वालों को नहीं मालूम होता. यह नए ‘सिटकॉम’ हैं जिन्हें ‘लटक कॉम’ भी कहा जा सकता है!



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