स्मार्ट सिटी के लिए बदलिए सोच

Last Updated 01 Sep 2015 02:12:19 AM IST

सोलहवीं लोकसभा के पहले सत्र में नई सरकार की ओर से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में बदलते भारत का नक्शा पेश किया गया था.


स्मार्ट सिटी के लिए बदलिए सोच

नरेंद्र मोदी के आलोचकों ने तब भी कहा था और आज भी कह रहे हैं कि यह एक राजनेता का सपना है. इसमें परिकल्पना है, पूरा करने की तजबीज नहीं. देश में सौ स्मार्ट सिटी का निर्माण, अगले आठ साल में हर परिवार को पक्का मकान, डिजिटल इंडिया, गांव-गांव ब्रॉडबैंड का वादा और हाई स्पीड ट्रेनों के हीरक चतुर्भुज तथा राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज के अधूरे पड़े काम पूरे करने का वादा वगैरह. सरकार की योजनाएं कितनी व्यावहारिक या अव्यावहारिक हैं, इनका पता तो कुछ समय बाद लगेगा पर तीन योजनाएं ऐसी हैं, जिनकी सफलता या विफलता हम अपनी आंखों से देख पाएंगे. ये हैं- आदर्श ग्राम योजना, डिजिटल इंडिया और सौ स्मार्ट सिटी.

पिछले हफ्ते सरकार ने सौ में से 98 स्मार्ट सिटी की सूची घोषित की है. जम्मू कश्मीर ने अपने राज्य के दो शहरों के नाम की घोषणा के लिए कुछ समय मांगा है. सवाल है कि सौ शहर वास्तव में स्मार्ट बन पाएंगे या नहीं? दूसरा सवाल, बाकी शहर क्या स्मार्ट नहीं बनेंगे? भारत के 28 राज्यों और सात केन्द्र शासित क्षेत्रों में 638 जिले हैं. हर जिले में तीन-चार शहर या कस्बे मान लें तो देशभर में ढाई से तीन हजार शहर हैं. इस बीच कुछ बड़े गांव छोटे कस्बों के रूप में उभर कर सामने आएंगे. इनमें सुविधाओं की दशा क्या है,  हम सब जानते हैं. ज्यादातर शहरों की पहचान कूड़े के ढेर और गंदी बस्तियों के रूप में है. अगले दस से बीस वर्षो में देश इस विस्तार को और तेजी से होते देखेगा, क्योंकि अगले दो-तीन दशक तक जनसंख्या विस्तार होगा.

एक तरफ भारत का खेतिहर समाज से औद्योगिक समाज में रूपांतरण और दूसरी तरफ आसन्न पर्यावरण के खतरे. नागरिक सेवाओं का विस्तार और नई तकनीक के साथ कदम मिलाने की चुनौतियां सब एक साथ हमारे सामने हैं. इनसे घबराने के बजाय इनका सामना करने की जरूरत है. इस लिहाज से स्मार्ट सिटी की पहल का स्वागत होना चाहिए. पर उसके पहले समझना चाहिए कि यह योजना क्या है! पिछले साल जब पहली बार इस योजना का नाम सामने आया, तब देश में शौचालय क्रांति लाने वाले बिंदेर पाठक ने एक इंटरव्यू में कहा कि पहले सरकार को शौचालय बनवाने चाहिए और फिर पैसे बचे तो स्मार्ट सिटी. सवाल है कि क्या शौचालय बना लेने के बाद स्मार्ट सिटी बनाने का काम शुरू किया जाए? क्या विकास के कार्यक्रमों को तैयार करते समय हमें सीढ़ियां बनाकर चढ़ना होगा? देश में 11 करोड़ से ज्यादा घरों में शौचालय नहीं हैं. क्यों नहीं हैं? इसके दो कारण हैं. एक साधन नहीं हैं, दूसरे समझ नहीं है. इसके लिए जिस सामाजिक जागरूकता की जरूरत है, उसे विकसित करने के लिए भी कोई मॉडल हमारे पास होना चाहिए.

भारत सरकार की निगाह में स्मार्ट सिटी क्या है? शहरी विकास मंत्रालय के अवधारणा पत्र के अनुसार देश में शहरी आबादी 31 फीसद है, जिसकी देश की जीडीपी में हिस्सेदारी 60 फीसद से ज्यादा है. अगले 15 सालों में शहरी आबादी की जीडीपी में हिस्सेदारी 75 फीसद होगी. सरकार की परियोजना तीन बुनियादी बातों पर केंद्रित है. एक, जीवन स्तर, दो, निवेश और तीन, रोजगार. किफायती घर हो, जिसमें पानी-बिजली चौबीसों घंटे मिले. आसपास शिक्षा और चिकित्सा की सुविधा हो. मनोरंजन और खेल की व्यवस्था हो. सुरक्षा का पूरा इंतजाम हो. आसपास के इलाकों से अच्छी और तेज कनेक्टिविटी हो, परिवहन व्यवस्था ठीक हो. अच्छे स्कूल और अस्पताल भी मौजूद हों.

इनके मानक भी सोचे गए हैं. मसलन स्मार्ट सिटी के अंदर एक जगह से दूसरी जगह तक जाने में यात्रा की अवधि 45 मिनट से ज्यादा न हो. सड़कों के साथ कम से कम 2 मीटर चौड़े फुटपाथ हों. रिहायशी इलाकों से 800 मीटर की दूरी या 10 मिनट पैदल चलने पर सार्वजनिक परिवहन सुविधा हो. 95 फीसद रिहायशी इलाके ऐसे हों जहां 400 मीटर से भी कम दूरी पर स्कूल, और पार्क मौजूद हों. साथ ही 20 फीसद मकान आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए हों. झुग्गी बस्तियों को रोकने के लिए यह व्यवस्था बेहद जरूरी है. 100 फीसद घरों में बिजली कनेक्शन हों. शहर की बिजली का कम से कम 10 फीसद वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत से हो. अस्सी फीसद मकान ग्रीन यानी पर्यावरण मित्र हों. लागत में नुकसान न हो.

यानी कोई बिजली-पानी चोरी न कर पाए. ये शहर तकनीक के लिहाज से अत्याधुनिक होंगे. सौ फीसद घरों तक वाई फाई कनेक्टिविटी हो. हर 15 हजार लोगों पर एक डिस्पेंसरी हो. एक लाख की आबादी पर 30 बिस्तरों वाला छोटा अस्पताल, 80 बिस्तरों वाला मीडियम अस्पताल और 200 बिस्तरों वाला बड़ा अस्पताल हो. हर 2500 लोगों पर एक प्री-प्राइमरी, 5000 पर एक प्राइमरी, हर 7500 पर एक सीनियर सेकंडरी और हर एक लाख की आबादी पर पहली से 12वीं क्लास तक का एक इंटीग्रेटेड स्कूल हो. सवा लाख की आबादी पर एक कॉलेज हो. दस लाख की आबादी पर एक यूनिर्वसटिी, एक इंजीनियरिंग कॉलेज, एक मेडिकल कॉलेज, एक प्रोफेशनल कॉलेज और एक पैरामेडिकल कॉलेज हो.

केंद्र सरकार ने 98 स्मार्ट सिटी की जो लिस्ट जारी की है, उसमें सबसे पहले राज्यों ने अपने शहर चुने. राज्यों की सूची एक विशेषज्ञ समिति के पास भेजी गई, जिसने सूची को अंतिम रूप दिया. जिन 98 शहरों के नामों का ऐलान हुआ है, उनमें 20 शहरों का विकास पहले दौर में होगा. बाकी का दूसरे और तीसरे दौर में. स्मार्ट सिटी के लिए चुने गए हर शहर को पहले साल 200 करोड़ और उसके बाद चार साल तक हर साल सौ-सौ करोड़ रु पये मिलेंगे. अक्टूबर तक इन शहरों के प्रस्ताव पेश किए जाएंगे. आशा है इनमें से 20 शहरों का काम उसके बाद शुरू हो जाएगा. इसके बाद 2016 और 2017 में दूसरी और तीसरी सूची जारी की जाएगी. इस प्रोजेक्ट पर 48 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे. इसके लिए एक विशेष उद्देश्य निगम बनाया गया है.

भारत का यह प्रयोग अपने किस्म का अनोखा है. शायद दुनिया में अपने किस्म का सबसे बड़ा प्रयोग भी. घोषणा के बावजूद इन शहरों के शक्ल लेने का इंतजार करना होगा. चीन में पिछले तीन दशक में बढ़े औद्योगिक शहरों का विकास किया गया है. उनका अनुभव हमारे पास है. देखना है कि यह योजना कितनी व्यावहारिक सिद्ध होती है. भविष्य के शहर में बिजली के ग्रिड से लेकर सीवर पाइप, सड़कें, कारें और इमारतें हर चीज नेटवर्क से जुड़ी होगी. इमारत अपने आप बिजली बंद करेगी, कारें खुद पार्किंग ढूंढेंगी. यहां तक कि कूड़ादान भी स्मार्ट होगा. ये शहर पर्यावरण के लिहाज से भी सुरक्षित होंगे. कहना मुश्किल है कि हम किस स्तर की तकनीक को इन शहरों में शामिल करने जा रहे हैं.

आशा है ये शहर संस्कृति विहीन नहीं होंगे, इनमें कला दीर्घाएं होंगी, थिएटर होंगे, पुस्तकालय होंगे, जो तकनीक के जरिए सीधे नागरिक से जुड़े होंगे. भारत जैसे देश में जहां शहरीकरण शुरु आती दैर में है, इसका मतलब है नई तकनीक और सुविधाओं से लैस आधुनिक शहर. एक शहर, जो पूरी सहूलियत, सुविधाएं और अवसर दे पाए, वही सिटी स्मार्ट है. सिद्धांतत: इनमें समावेशी विकास के अवसर भी होंगे. झुग्गी-झोपड़ियां नहीं होंगी. अक्षय ऊर्जा, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होगा.

दुनिया में एम्स्र्टडम (हॉलैंड), बार्सलिोना (स्पेन), स्टॉकहोम (स्वीडन), सुवान और सोल (द कोरिया), वॉटरलू, ओंटारियो और कैलगैरी (कनाडा), न्यूयॉर्क, ला ग्रेंज और जॉर्जिया (यूएसए), ग्लासगो ( स्कॉटलैंड, यूके), ताइपेह (ताइवान), मिताका (जापान) और सिंगापुर जैसे शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की कोशिशें हों रही हैं. स्मार्ट शहर सड़कों के कुशल इस्तेमाल को बढ़ा सकते हैं. व्यक्तिगत वाहनों को हतोत्साहित करके दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल ने सड़कों के विस्तार पर रोक लगाई है. बार्सलिोना में ऐसी एकीकृत प्रणाली बनाई गई है ताकि यात्रा की दूरी कम से कम हो.

प्रमोद जोशी
लेखक


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