सत्संग : आजादी और अनुशासन

Last Updated 29 Jul 2015 12:50:59 AM IST

स्वाधीनता और अनुशासन एक दूसरे के विपरीत हैं और पूरक भी. रक्षा का उद्देश्य है स्वाधीनता का बचाव. पर क्या सुरक्षा में स्वाधीनता है?


धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर

क्या सैनिकों को स्वाधीनता है? नहीं. सभी सैनिक नियमों में बिल्कुल बंधे हैं. उन्हें यदि बायां कदम उठाने का आदेश मिले तो वे दाहिना कदम नहीं उठा सकते. उनके कदम नपे-तुले होते हैं. यहां तक कि वे स्वाभाविक चाल भी नहीं चल सकते. इस रक्षा में बिल्कुल भी स्वाधीनता नहीं है.

जिनको स्वयं बिल्कुल भी आजादी नहीं है, वे ही देश की स्वाधीनता की रक्षा करते हैं. अनुशासनहीन स्वाधीनता सेनाविहीन राष्ट्र के समान है. अनुशासन स्वाधीनता की रक्षा करता है. ये दोनों साथ-साथ चलते हैं. इसे समझो और जीवन में आगे बढ़ो. कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है और यही संयम स्वाधीनता देता है. यह तुम पर निर्भर है कि तुम अपना ध्यान स्वाधीनता पर देते हो या अनुशासन पर. यही तुम्हें सुखी और दुखी बनाता है.

प्रेम और भय दो संभावनाएं हैं जो तुम्हें सही रास्ते पर लाती हैं. जीवन उन्नति के लिए धर्मो ने भय को विशेष स्थान दिया है. शिशु के जीवन में एक विशेष समय पर प्रकृति भय की भावना जगाती है. बच्चा जब बिल्कुल छोटा होता है, उसे मां का शत-प्रतिशत समय और प्यार मिलता है. तब शिशु के मन में भय नहीं होता. जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, और आत्मनिर्भर होता है, तब सावधान हो जाता है. प्रकृति उस समय उसके मन में भय की भावना जगा देती है. आजादी के साथ बच्चा अपने कदम सावधानी से बढ़ाता है. 

एक परम आनंद की पूर्ण स्वतंत्रता की अवस्था है जिसका वर्णन अद्वैतवाद में है. लेकिन अद्वैत ज्ञान का बड़ा दुरुपयोग हुआ है. लोगों ने अपनी सुविधा और गलत धारणाओं के आधार पर इसकी व्याख्या की है. मन में सजगता, हृदय में प्रेम और कर्मो में पवित्रता होनी चाहिए. स्वाधीनता खोने का भय प्रतिरक्षा को जन्म देता है. प्रतिरक्षा का उद्देश्य है भय को दूर करना. इस पथ पर ज्ञान ही तुम्हारी स्वाधीनता है और तुम्हारा रक्षक भी.

संपादित अंश ‘सच्चे साधक के लिए अंतरंग वार्ता’ से साभार



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