..जिन पर तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे

Last Updated 05 Jul 2015 02:23:40 AM IST

केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा की दूरियां इन दिनों बढ़ गई हैं. उसके मंत्रियों के आचरण और आरोपों के चलते राजनीतिक तपिश बढ़ गई है.


..जिन पर तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे

उसके सुशासन और ‘मिनिमम गवर्मेंट-मैक्सिमम गवर्नेंस’ के नारों का असल सच प्याज के छिलके की तरह उतरने लगा है. जिन पर तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे हैं. वीआईपी कल्चर का नशा सिर चढ़कर बोलने लगा है. सत्तासीन होने से पहले तक कांग्रेस की वीआईपी संस्कृति का उपहास करने वाली भाजपा सरकार उसी रंग में रंगने लगी है. सत्ता का दर्प उसके चाल-चरित्र में दिखने लगा है. उस पर ‘सूरदास कारी कमरि पै, चढ़त न दूजौ रंग’ की उक्ति सटीक बैठ रही है.

भाजपा ने केंद्र में सत्ता मिलने के बाद अपने सांसदों का वर्कशाप किया था. उन्हें सुशासन का पाठ पढ़ाया था. राजनीतिक शुचिता और आचार-विचार के जरिए जनमानस को राजनीतिक बदलाव का अहसास कराने का उपदेश दिया था. किंतु वे अब उनके लिए बीती बातें हो गई हैं. सत्ता के दुर्गुणों की काली छाया उन्हें घेरने लगी है, जिससे सरकार का चेहरा मलिन हो रहा है. ऐसे में पीएम मोदी की चुप्पी से जनता अधीर हो रही है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि वह कांग्रेसी संस्कृति के इतर राजनीतिक व्यवहार की मोदी से उम्मीद लगाए बैठी है. भाजपा को केंद्र और कई राज्यों में मिला अभूतपूर्व बहुमत उसकी इसी आकांक्षा का ही प्रस्फुटन था. अब उसे पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार के राजनीतिक चरित्र में कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है. आम आदमी के मन में तेजी से पनप रही यह सोच शनै-शनै सरकार के प्रति मोहभंग की स्थिति की ओर ले जा रही है, जो एक खतरनाक संकेत है.

सत्ता अहंकार रूपी जहर है, जिस पर काबू पाना आसान नहीं होता. इस सच से साक्षात्कार कराकर भाजपा के मंत्रियों ने जता दिया है कि वे ‘आम आदमी’ नहीं हैं. इसके लिए मैं यहां दो घटनाओं का जिक्र करना चाहूंगा, जिनसे सरकार का चेहरा ही मलिन नहीं हुआ है बल्कि जनता के भरोसे को भी ठेस लगी है. इससे आसानी से समझा जा सकता है कि नेताओं को सहूलियत देने की मानसिकता कितनी गहराई तक जड़ें जमाए हुए है. सत्ता बदली जरूर है किंतु उसके दुरुपयोग की संस्कृति नहीं बदली है, जो समूची व्यवस्था में ही रची-बसी है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजू, उनके सहायक और जम्मू-कश्मीर के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह को लेह से दिल्ली आने वाले एयर इंडिया के विमान में जगह देने के लिए उस पर सवार एक परिवार के तीन सदस्यों को उतारने की घटना इस सच को समझने के लिए काफी है. इतना ही नहीं, इसके लिए विमान लेट कराया गया. इस घटना के उजागर होने के बाद पहले इन नेताओं ने जिस तरह अपने इस अशोभनीय कृत्य का बचाव किया, वह बड़ा ही निंदनीय था.

उनकी वाणी से अहंकार टपक रहा था. इसी तरह इस घटना से तीन दिन पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस के प्रमुख सचिव के लिए एयर इंडिया की मुंबई-न्यूयार्क उड़ान को तकरीबन नब्बे मिनट तक रोका गया था, क्योंकि उनके बीजा संबंधी दस्तावेज घर पर ही छूट गए थे. इससे पहले स्वयं उड्डयन मंत्री राजू विमान में माचिस सहित यात्रा करने को लेकर सुर्खियों में आ चुके हैं. इन पर तुलसी की ‘प्रभुता पाई काहु मद नाहि’ की उक्ति सटीक बैठ रही है. यद्यपि पीएमओ की सख्ती के बाद रिजिजू ने माफी मांग ली है, किंतु निर्मल सिंह इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर कुतर्क करने से बाज नहीं आ रहे हैं, तो फडनवीस ने विदेश से ही मुकदमा चलाने की धमकी दे दी है. उन्हें नहीं पता है कि उड्डयन मंत्री ने दोनों घटनाओं के लिए यात्रियों से माफी मांग ली है. फिर वह ऐसा कहकर किसकी आंख में धूल झोंकने का प्रयास कर रहे हैं?

झंझावतों में फंसी भाजपा की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के भगोड़े ललित मोदी से व्यावसायिक संबंधों को लेकर हो रहे नए-नए खुलासों से वह वैसे ही परेशानी में है. अब रिजिजू और फडनवीस के प्रमुख सचिव द्वारा सत्ता के खुलेआम दुरुपयोग की घटनाओं ने उसके समक्ष विकट समस्या खड़ी कर दी है. सत्ता के गलियारे में यह चर्चा है कि क्या पीएम जांच रिपोर्ट आने के बाद इन नेताओं पर नकेल कसेंगे. ऐसा कोई बड़ा संदेश देंगे, जो सरकार की छवि सुधारने की दिशा में अहम हो. इतना ही नहीं, महाराष्ट्र में उसके दो मंत्रियों पर नियमों की उपेक्षा कर अपने खास लोगों को ठेका देने का भी आरोप है. सवाल महिला विकास मंत्री पंकजा मुंडे और शिक्षामंत्री विनोद तावड़े पर उठे हैं. उनके आपसी घमासान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तावड़े के समर्थन में वहां के दो मंत्री आगे आए, पर मुंडे को अपना ‘दाग’ धोने के लिए अकेले आना पड़ा है. जबकि सरकार में सहयोगी शिवसेना उनके साथ खड़ी है और मुख्यमंत्री पहले ही उन्हें क्लीनचिट दे चुके हैं.

बावजूद इसके भाजपा मंत्रियों के आपसी विवाद सतह पर आ चुके हैं और वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लग गए हैं. इसके अलावा व्यापम घोटाले को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और चावल घोटाले को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ कांग्रेस ने अभियान छेड़ रखा है. आए दिन हो रही इन घटनाओं और उछल रहे आरोपों से भाजपा विचलित है. उसे भय सताने लगा है कि कहीं इनकी काली छाया बिहार चुनाव में उसके लिए नुकसान का सबब न बन जाए. पार्टी के रणनीतिकार इसी कारण विवादित भूमि अधिग्रहण बिल को जान-बूझ कर बिहार चुनाव तक टालना चाहते हैं. सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि इसे लेकर किसानों में बड़ा रोष है. इसीलिए आसन्न चुनावी नुकसान के भय से वह ऐसा सोच रही है.

लोकतंत्र में नेता को जनता चुनकर संसद और विधानसभाओं में भेजती है, जहां वे मंत्री बनते हैं. किंतु दुखद यह है कि मंत्री बनते ही वह अपने को ‘मालिक’ मान बैठते हैं और भूल जाते हैं कि जनता के हाथों में उन्हें धूल चटाने की ताकत भी है. वीआईपी कल्चर हमारी व्यवस्था में पूरी तरह से रच-बस गया है. यह किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं रहा है. इसी सप्ताह डीएमके नेता स्टालिन द्वारा चेन्नई की मेट्रो में एक यात्री को थप्पड़ मारने की घटना बताती है कि हर पार्टी वीआईपी संस्कृति की दास है. बस अवसर चाहिए. ऐसे में पीएम से वीआईपी कल्चर के खिलाफ चुप्पी तोड़ने का सभी आमजन को इंतजार है. ऐसी घटनाएं पूरे देश में कहीं न कहीं रोज हो रही हैं.

लालबत्ती, हूटर, गारद और गाड़ियों का लंबा काफिला नेताओं की शान में कसीदे की तरह हैं. नेताओं के लिए रास्ता साफ रहे, इसलिए चौराहों पर आमजनों को अपने वाहनों में लंबा इंतजार करना हर किसी सरकार में आम बात हो गई है. नेता इंतजार करती भीड़ को देखकर अपनी वीआईपी ताकत पर गुमान करते हैं. इसलिए सत्ताधारी की खुद को विशिष्ट समझने की रीति-नीति के खिलाफ जनमत तैयार करने का समय आ गया है ताकि वे यह समझने के लिए बाध्य किए जा सके कि उनके हाथों में जो ताकत है, वह जनता द्वारा प्रदत्त की गई है.
ranvijay_singh1960@yahoo.com

रणविजय सिंह
समूह सम्पादक, राष्ट्रीय सहारा दैनिक


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