आभासी घर में रहने का सलीका

Last Updated 03 Jun 2015 12:50:31 AM IST

आज भी हर माता-पिता अपने बच्चों को यह सिखाना नहीं भूलते कि बेटा किसी अनजान इंसान से बातें मत करना. अगर घर में अकेले हो तो किसी भी अनजान के लिये दरवाजा मत खोलना.


आभासी घर में रहने का सलीका

हम उन्हें ये समझाना भी नहीं भूलते कि अगर किसी की कोई बात उन्हें अजीब लगे, तो उस के बारे में घर में माता-पिता को जरूर बताएं. हम इन सब सावधानियों का पालन तो अपने बच्चों के साथ करते हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि यह इंटरनेट का जमाना है. यहां बाहरी दुनिया से ही नहीं, नेट की दुनिया से भी लोग आपके घर में प्रवेश करते हैं. आज जब इंटरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया ने हमारे घर के अंदर ही एक आभासी घर बना लिया है, ऐसे में जरूरत है कि वहां रहने के तौर-तरीके भी बच्चों और बड़ों को सिखाये जाएं.

आज बच्चा थोड़ी-सी समझ आने के साथ ही इंटरनेट की दुनिया में प्रवेश कर चुका होता है. माना फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने न्यूनतम आयु 13 वर्ष निर्धारित की है, लेकिन कोई सिर्फ  एक क्लिक से अपना अकाउंट फेसबुक पर बना सकता है. आयु चाहे 13 वर्ष से कम हो या इससे ज्यादा पर बालमन इतना भी परिपक्व नहीं होता कि वह इस दुनिया को, इसकी बदमाशियों को समझ सके. फेसबुक की दुनिया वास्तविक दुनिया से अलग नहीं है, तरह-तरह के बदमाश, दुष्ट लोग यहां घूम रहे हैं. एक समय था, जब माता-पिता अपने बड़े होते बच्चों को उनके शारीरिक बदलाव और जरूरतों के बारे में बात करने पर झिझकते थे लेकिन बच्चों से जुड़े अपराधों ने उन्हें इस ओर जागरूक किया कि वे इनके बारे में भी बच्चों से खुल कर बात करें. इसी तरह, अब यह भी जरूरी हो गया है कि बच्चों को बताएं कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे करना है.

आज के ज्यादातर बच्चे यह पसंद नहीं करते कि उनकी सोशल मीडिया प्रोफाइल पर उनके परिवार वाले जुड़ें और इसीलिए वे या तो घरवालों के लिए एक अलग आईडी बना लेते हैं या फेक नाम से आईडी बना कर अपने घरवालों को उससे ब्लॉक कर देते हैं. घरवालों को लगता है कि बच्चे सोशल मीडिया पर हैं ही नहीं या उनकी घरवालों के लिए उपलब्ध आईडी को देख कर खुश हो जाते हैं कि बच्चों की सोशल-मीडिया पर सक्रियता में कुछ समस्या नहीं है.

घरवालों के लिए उपलब्ध फेसबुक आईडी पर कुछ भी आपत्तिजनक नहीं होता. पर इसका मतलब यह नहीं कि आपके बच्चे फेसबुक पर कुछ भी आपत्तिजनक नहीं करते. फर्जी आईडी बनाकर वे कुछ का कुछ कर सकते हैं. बच्चों को यह बताना होगा कि सोशल मीडिया पर मिलने वाला हर व्यक्ति दोस्त नहीं है. अत: जब भी किसी से दोस्ती करें तो यह जानने की कोशिश करें कि कहीं वह प्रोफाइल फर्जी तो नहीं. हालांकि यह पता करना बड़ों के लिये भी थोड़ा मुशिकल ही है. वैसे बच्चों के लिये बेहतर यही है कि वे अपने दोस्तों के साथ ही सोशल मीडिया पर जुड़ें और जब एक बार उन्हें इस दुनिया की समझ हो जाए, तो ही किसी अनजान प्रोफाइल को अपनी मित्रता सूची में जोड़ें.

सोशल मीडिया पर न सिर्फ  दोस्ती से पहले सोचना जरूरी है, बल्कि क्या अपडेट कर रहे हैं, इसे समझना भी जरूरी है. सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहां आप तो सोच रहे हैं कि आपने अपनी अपडेटिंग दोस्तों के लिए की है, लेकिन वह कहां-कहां होती हुई कहां तक पहुंचेगी, समझ पाना मुश्किल है. कोई कॉलेज छात्रा शराब पीते हुए, शराब पीकर बहकते हुए अपनी फोटो बतौर स्टेटस अपडेट कर सकती है. सोच सकती है कि इसे सिर्फ उसके मित्र ही देखेंगे पर वह फोटू कल को उसके भविष्य के रोजगारदाताओं के पास भी पहुंच सकती है.

सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर क्या अपडेट करना है; यह हमें खुद भी समझना होगा और अपने बच्चों को भी समझाना होगा कि वे अपनी कितनी और कैसी बातों को सोशल मीडिया पर शेयर करें. इसके साथ-साथ अपने अकाउंट में प्राइवेसी सेटिंग्स कैसे करनी है;  यह भी ध्यान रखने की बात है.

कम से कम स्कूलों में फेसबुक पर ओरिएंटेशन कार्यक्रम चलाया जाना जरूरी हो गया है. कोई सोशल मीडिया एक्सपर्ट आकर फेसबुक, ट्विटर वगैरह के बारे में बच्चों को बताएं. इसके खतरों के साथ आवश्यक सावधानियों के बारे में भी बच्चों को बताया जाना जरूरी है. आप अपने आसपास देख सकते हैं कि कई बच्चे और बच्चियां सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. इसके खतरों-सावधानियों को समझे बगैर.

ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया पर सिर्फ  खतरे ही खतरे हैं और यहां सिर्फ  बुरे लोग ही होते हैं. ऐसी सेलिब्रिटी और आदर्श लोग मिलेंगे, जिनसे आप सीधे नहीं जुड़ सकते तो उनसे जुड़ने के लिए सोशल मीडिया बहुत ही अच्छा माध्यम है.

यहां आप बहुत कुछ ऐसी कई बातें भी सीख सकते हैं, जो कहीं और नहीं सीखी जा सकतीं. सोशल मीडिया के नफा-नुकसान में एक और बात जो सामने आती है कि यह आपका इतना ज्यादा समय ले जाता है कि कभी-कभी लगने लगता है कि 24 घंटे भी कम हैं, इसके लिए. जब बड़ों का इसके आकर्षण से बचना मुश्किल है तो बच्चों की तो बात ही क्या करें? लेकिन यह बात खुद और बच्चों को भी समझानी होगी कि सोशल मीडिया पर सीमित समय ही देना चाहिए. हम जितने समय भी यहां होते हैं, वह समय बाकी कामों से ही चुराया होता है.

आज के समय स्मार्टफोन बड़ों के हाथ ही नहीं, बच्चों को भी सुलभ हो गए हैं. ये कभी जरूरत की वजह से तो कभी जिद की वजह से बच्चों तक पहुंच गए हैं. इसके साथ-साथ सोशल मीडिया ने भी चौबीस घंटे वाली घुसपैठ कर ली है. फोन पर इंटरनेट होने का सबसे बड़ा घाटा और फायदा एक ही है कि यह हर वक्त हमारी पहुंच में रहता है. जब कोई चीज हमारे साथ 24 घंटे रहे, तो उसके सम्मोहन से बच पाना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है.

एक ओर बच्चे सोशल नेटवर्किंग के लिये समय अपनी पढ़ाई के समय से ही निकालते हैं. वहीं दूसरी ओर, हर वक्त दिमाग में अपडेट करने और देखने का ख्याल उन्हें पढ़ाई पर ध्यान लगाने नहीं देता है और उनमें एकाग्रता की कमी आती जाती है, जो उनके भविष्य के लिए कहीं से भी अच्छा नहीं है. हम अपने बच्चों को सोशल मीडिया पर जाने से रोक कर उनको समय के साथ चलने से रोक नहीं सकते.

उनके सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है कि उन्हें सोशल मीडिया पर जाने दिया जाए लेकिन साथ ही उन्हें उससे होने वाले फायदे और खतरों के बारे में विस्तार से बताया जाए. आज की पीढ़ी मना करने पर और उग्र होकर प्रतिक्रिया देती है, लेकिन अगर उन्हें प्यार से तर्कों के साथ समझाया जाए तो वह समझते भी हैं और कभी-कभी हमें भी कुछ सिखा जाते हैं. तो प्यार से अपने बच्चों को समझाएं, उनके दोस्त बनें और फिर देखें सोशल मीडिया के शानदार परिणाम.

रेशू वर्मा
लेखक


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