सड़कों पर उड़ता मौत का गुबार

Last Updated 27 Apr 2015 05:33:04 AM IST

राजधानी दिल्ली के मथुरा रोड चौराहे पर हर वक्त चारों चरफ से सैकड़ों वाहन हार्न बजाते हुए और प्रदूषण फैलाते हुए आपके सामने से गुजर रहे होंगे, जिससे हवा में जहरीले कण उड़ते रहते हैं.




सड़कों पर उड़ता मौत का गुबार (फाइल फोटो)

मथुरा रोड चौराहे पर वक्त चाहे सुबह के दस बजे का हो या रात के दस बजे का. अगर कोई वहां पर पांच मिनट भी खड़े हो जाएं बिना आंखों को बंद किया या बिना खांसी किए तो बहुत बड़ी बात होगी. चारों चरफ से सैकड़ों वाहन हार्न बजाते हुए और प्रदूषण फैलाते हुए आपके सामने से गुजर रहे होंगे. इस तरह का मंजर आपको अब देश के छोटे-बड़े तमाम शहरों के खास चौराहों पर देखने को मिलेगा. भले ही दिल्ली वाली स्थिति देश के दूसरे मेट्रो शहरों या दूसरे बड़े शहरों में न हुई हो, तो भी इसके लिए किसी प्रमाण की गुंजाइश कहां है कि अब मुंबई से लेकर इंदौर और कानपुर से लेकर गाजियाबाद तक, सड़कों पर चलने वाले वाहन मौत का धुंआ उड़ा रहे हैं. चूंकि वक्त रहते कारगर उठाए नहीं गए, लिहाजा अब हालात काबू से बाहर हो गए हैं.

हालात नियंत्रण से बाहर हुए हैं तो दिल्ली-एनसीआर में 15 साल पुराने वाहनों पर रोक लगाई जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल पुराने वाहनों पर रोक लगाने वाले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने एनजीटी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी. मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि एनजीटी ठीक काम कर रही है. उसका समर्थन किया जाना चाहिए, न कि उसका बहिष्कार.

 एनजीटी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर से साफ है कि अब दूसरे शहरों का भी नंबर लगने वाला है. वहां पर चलने वाले पुराने डीजल वाहन बंद होंगे. यानी देर से ही हालात सुधारने की मुहिम शुरू हो गई है. अब कहा जा रहा है कि एनजीटी के आदेश से दिल्ली-एनसीआर से लाखों वाहन हट जाएंगे, जिससे आम जनता को भारी परेशानी होगी. क्या परेशानी होगी..? क्या जिस तरह से वाहनों से निकलने वाले जहरीले धुएं से बीमारियां फैल रही है, उससे ज्यादा, बड़ी या गंभीर परेशानी कुछ और हो सकती है? आईआईटी दिल्ली से जुड़े ट्रांसपोर्ट मामलों के जानकार डॉ. महेश शर्मा कहते हैं कि इन वाहनों के हटने से जनता को परेशानी भी हो रही है तो इसकी परवाह करने की जरूरत नहीं है. बेशक, इस तरह की सख्ती के बिना 70 लाख से ज्यादा वाहनों वाली दिल्ली की आबोहवा में सुधार की कोई संभावना नहीं दिखती है.

 कुछ समय पहले विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) ने एक शोधपरक लेख- स्लो र्मडर, द देलही स्टोरी आफ व्हीकुलर पाल्युशन इन इंडिया- को प्रकाशित किया. इसमें बताया गया कि दिल्ली में वाहन प्रदूषण फैलाने में डीजल वाहन सबसे आगे हैं. यानी डीजल वायु प्रदूषण के लिए सबसे घातक है. इसलिए दुनिया के कई दूसरे देशों की तरह डीजल गाड़ियों पर एक सीमा तक पाबंदी तो देर-सवेर पूरे देश में ही लगने वाली है. पर सरकार को डीजल का विकल्प खोजना पड़ेगा. देश के अधिकतर लोग लोन से वाहन खरीदते हैं. पांच से छह साल तक समय लोन चुकाने में निकल जाता है. ऐसी स्थिति में दस साल से अधिक पुराने वाहनों पर रोक लगाना कहीं से न्यायोचित नहीं है. सबसे बड़ी बात यह है कि क्या गारंटी है कि दो साल पुराना वाहन प्रदूषण नहीं फैलाएगा. नियम यह बनना चाहिए कि जो वाहन प्रदूषण फैलाएगा, उसे जब्त किया जाएगा.

इस तरफ ध्यान दिया जाए कि प्रदूषण किन कारणों से फैलता है. ट्रैफिक जाम की वजह से अधिक प्रदूषण फैलता है. सड़कें टूटी हुई हैं, इस वजह से भी जाम लगता है. छोटे-बड़े शहरों में जो भी प्रदूषण जांच केंद्र हैं, उन्हें ठीक करना चाहिए. ट्रैफिक पुलिस, प्रदूषण नियंतण्रबोर्ड सहित कई विभागों के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करनी चाहिए जिससे कहीं भी प्रदूषण फैलाने वाले वाहन चलते दिखाई न दें. जब सख्ती होगी, तब लोग अपने वाहनों के रखरखाव के ऊपर ध्यान देंगे. रखरखाव के ऊपर ध्यान देने से दस साल पुराने वाहनों से भी प्रदूषण नहीं फैलता है. रखरखाव के ऊपर ध्यान न देने पर दो साल पुराने वाहनों से भी प्रदूषण फैलने लगता है. लेकिन इस बात में दो राय नहीं हो सकती कि प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को किसी भी कीमत छोड़ा नहीं जाना चाहिए. 

भले ही बहुत से लोग इस बात को गंभीरता से न लें पर वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण ऐसा धीमा जहर है, जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसे रु ग्ण बना देता है, बल्कि यह जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी सड़ा-गलाकर नष्ट कर देता है.

 आईआईटी दिल्ली के पब्लिक ट्रासपोर्ट रिसर्च विभाग से जुड़े हुए डॉ. महेश शर्मा कहते हैं कि रोज वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ शहर की फिजा में खतरनाक धुंए व धूल के रूप में जहर घुलता जा रहा है. इस खतरे से बेखबर वाहन चालक फर्राटे भर रहे हैं और इसकी जानकारी देने वाला सरकारी तंत्र जुर्माना वसूली और कागजी खानापूर्ति में लगा हुआ है.

सड़कों पर धुएं का गुबार छोड़ते दौड़ रहे वाहनों की जांच साल में एक-दो बार ही होती है. प्रदूषण दूर करने की दिशा में कार्रवाई और जागरूकता का अभाव यहां के पर्यावरण के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन गया है. इस खतरे को दूर करने की जवाबदारी सभी विभाग एक-दूसरे पर मढ़ते नजर आते हैं. गाड़ियों से निकलने वाले जहर ने शहरों में लोगों को सांस का मरीज बना दिया है. राजधानी के नेशनल हार्ट सेंटर से जुड़े हुए डॉ. एसके पाल कहते हैं कि अब शहरों में हर 20वां व्यक्ति सांस की बीमारी से पीड़ित है. सरकारें न तो उद्योगों के प्रदूषण पर रोक लगा पा रही है और न वाहनों के धुएं पर. गाड़ियों से पैदा होने वाले प्रदूषण के कारण अस्थमा, कैंसर, दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है.

सड़कों से निकलने वाले जहर का एक इलाज यह भी है कि देशभर में साइकिल ट्रैक बनें. कुछ समय पहले इंदौर नगर निगम के चेयरमेन अजय सिंह नरूका अपनी साइकिल से अपने दफ्तर आने-जाने लगे. मजे से मध्य प्रदेश के इस खास शहर की सड़कों पर साइकिल चलाते हुए वे रोज अपने दफ्तर पहुंचते. अब यह देखने वाली बात है कि उनकी पहल और प्रयास का कितना असर हुआ बाकी लोगों पर. आईआईटी दिल्ली के ट्रांसपोर्ट मैनेजमेंट विभाग की डॉ. गीतम तिवारी कहती हैं कि हमें साइकिल ट्रैक बनाने होंगे, फ्लाईओवर बनाने से बात नहीं बनेगी. साइकिल चलाने को आंदोलन का रूप देने से दो लाभ होंगे. पहला, गाड़ियों से निकलने वाला जहर कम होगा. दूसरा, लोगों की सेहत सुधरेगी.

यह सचाई है कि देश बदला रहा है. नई पीढ़ी खासतौर पर अपनी कार लेने को उत्सुक रहती है. उसे आप रोक नहीं सकते. तो हल क्या है ? गीतम तिवारी कहती हैं कि इस सारी  समस्या को तभी स्थाई रूप से हल किया जा सकता है जब कि सब वाहनों का सख्ती से प्रदूषण टेस्ट हो, सभी शहरों का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम सुधरे और साइकिल ट्रैक बनें.  इनके अलावा सड़कों से उठने वाले जहर पर काबू पाने का कोई हल नहीं है. यह तो देश को बीमार बनाता रहेगा. यानी  सोचना होगा सरकारों को, सुधरना होगा हम सबको.

 

विवेक शुक्ला


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