सूचना के आतंक पर लगाम जरूरी

Last Updated 30 Jan 2015 03:37:53 AM IST

सरकार ने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट- ट्विटर से पूछा है कि इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकी कहां से खतरनाक ट्वीट करते हैं और कैसे अपने सदस्यों से इसके जरिये जुड़े रहते हैं.




सूचना के आतंक पर लगाम जरूरी

ट्विटर से उन कंप्यूटरों का आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) एड्रेस मुहैया कराने को कहा गया है जिनसे आतंकियों ने अपना सूचना नेटवर्क पूरी दुनिया में फैला रखा है. आईपी एड्रेस की जानकारी से व्यक्ति और स्थान के बारे में कुछ जानकारी हासिल हो सकती है. इंटरनेट का दौर शुरू होने के बाद से लगातार कहा जाता रहा है कि भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती साइबर टेररिज्म यानी सूचना का आतंकवाद होगा.

साइबर आतंकवाद यानी इंटरनेट के माध्यम से संचालित की जाने वाली वे आपराधिक और आतंकी गतिविधियां, जिनसे कोई व्यक्ति या संगठन देश-दुनिया और समाज को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करे. आतंकवाद का एक साइबर चेहरा भी हो सकता है, इसकी एक बड़ी मिसाल दिसम्बर में बेंगलुरु  से एक भारतीय साइबर एक्सपर्ट मेहदी मसरूर बिस्वास की गिरफ्तारी से मिली थी. आरोप है कि मेहदी बेंगलुरु  में रहकर आईएस का ट्विटर अकाउंट चला रहा था. इस अकाउंट से दुनिया भर में मौजूद आईएस के सदस्यों को लगातार निर्देश मिलते थे और इसी के जरिये भारत में आईएस का भर्ती अभियान भी चल रहा था.  

भारत में मेहदी बिस्वास की मौजूदगी को साइबर आतंकवाद के संबंध में एक बड़ी घटना क्यों माना गया, इसकी दो अहम वजहें या विडंबनाएं हैं. एक, सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में भारत खुद को अगुवा देश मानता है और अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थापित सिलीकॉन वैली की स्थापना तक में युवा भारतीय आईटी विशेषज्ञों की भूमिका अहम मानी जाती है. आईटी से जुड़ी प्रतिभाओं के देश में साइबर आतंकवाद का कोई केंद्र हो सकता है- इस विडंबना पर आश्चर्य ही जगता है.

दो, ऐसे ही साइबर खतरों को भांपते हुए सरकार वर्ष 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति जारी कर चुकी है जिसमें देश के साइबर सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर की रक्षा के लिए प्रमुख रणनीतियों को अपनाने की बात कही गई थी. इन नीतियों के तहत देश में चौबीसों घंटे काम करने वाले एक नेशनल क्रिटिकल इंफार्मेशन प्रोटेक्शन सेंटर (एनसीईआईपीसी) की स्थापना शामिल है, जो साइबर सुरक्षा के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में काम कर सके. सवाल है कि क्या इन उपायों को अमल में लाने में कोई देरी या चूक हुई अथवा यह हमारे सूचना प्रौद्योगिकी तंत्र की कमजोर कड़ियों का नतीजा है कि मेहदी बिस्वास बेंगलुरु  से अपनी गतिविधियां चलाने में सफल रहा और ट्विटर पर भारत को ओबामा के दौरे के वक्त हमला करने की धमकी दी गई?  

जानकारों के मुताबिक कुछ तकनीकी बाध्यताओं की वजह से देश से बाहर चल रही गतिविधियों पर निगरानी रखना संभव नहीं हो पाता है. इसी का फायदा विदेशी संगठन और अपराधी-आतंकी उठाने में कामयाब हो जाते हैं. असल मुद्दा विदेशों में स्थित प्रॉक्सी इंटरनेट सर्वर और वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआईपी) जैसी तकनीकों की निगरानी का अभाव है. बताया जाता है कि वीओआईपी की पहचान करना और उसके सही पते-ठिकाने की जानकारी लेना काफी मुश्किल काम है- इसका फायदा आतंकी उठाते हैं. बताते हैं कि मुंबई में ताज होटल पर हुए हमले में भी आतंकियों ने वीओआईपी तकनीक का इस्तेमाल किया था.

जब इस मामले में बड़े पैमाने पर छानबीन हुई और जांच में अमेरिकी एजेंसी एफबीआई भी शामिल हुई और उसने वीओआईपी से जुड़े सबूत दिए, तभी पाकिस्तान ने यह स्वीकार किया था कि मुंबई हमले की साजिश उसकी जमीन पर रची गई थी. इसके अलावा गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के सर्वर विदेश में स्थित होते हैं. चूंकि अब तक हमारा देश इन सर्विस प्रोवाइडर्स को अपने सर्वर भारत में ही लगाने को बाध्य नहीं कर पाया है, इसलिए उनकी वेबसाइटों से होकर आने-जाने वाले संदेशों-सूचनाओं की निगरानी कर पाना संभव नहीं हो पाता है. ऐसे में यदि मेहदी जैसे लोग फेसबुक-ट्विटर का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के प्रचार-प्रसार के लिए करते हैं, तो उनकी धरपकड़ आसान नहीं होती है.  

समस्या यह भी है कि दुनिया में कोई ऐसा अंतरराष्ट्रीय सिस्टम नहीं बना है जो इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को अपने पास मौजूद सूचनाएं किसी देश की सरकार के साथ साझा करने को मजबूर कर सके. यह भी साफ नहीं है कि यदि सूचनाओं के आदान-प्रदान को लेकर किसी इंटरनेट सेवा प्रदाता के साथ कोई समस्या या विवाद उत्पन्न होगा, तो उसकी सुनवाई कहां होगी यानी उसका न्यायिक क्षेत्राधिकार कहां माना जाएगा.

चूंकि वर्चुअल आतंकियों का कोई स्पष्ट चेहरा नहीं होता, लिहाजा उन्हें ट्रैक करना और उनकी पहचान करना मुश्किल होता है. सूचना के आतंकवाद का एक स्वरूप अफवाहें फैलाने जैसी आपराधिक गतिविधि के मामले में भी सामने आ रहा है. पिछले डेढ़-दो वर्षो में हमारे देश में एक दर्जन से अधिक डिजिटल अफवाह की खबरें सामने आई जिनके कारण देश में कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हुई. हालांकि जांच एजेंसियों ने साइबर विशेषज्ञों की सहायता से अफवाह फैलाने वाले तत्वों तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन सूचना के आतंकवादियों को पहचाना और पकड़ा नहीं जा सका.

कई और मामले हैं जिनमें इसी तरह सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया गया. वर्ष 2012 में असम में हुई हिंसा के बाद पूर्वोत्तर के लोग बड़ी संख्या में बेंगलूरु , चेन्नई, पुणो और मुंबई जैसे शहरों से अपना कामकाज छोड़ अपने मूल स्थानों की ओर भाग खड़े हुए थे. इससे न सिर्फ  उन्हें काफी मानसिक-आर्थिक क्षति झेलनी पड़ी, बल्कि वे असुरक्षा के ऐसे भय से घिर गए जिसे शायद आज भी पूरी तरह दूर नहीं किया जा सका है. सरकार भी आज तक यह जानने में कामयाब नहीं हो पाई कि उस वक्त फैलाई गई अफवाहों की जड़ें कहां थीं.  

जहां तक सवाल है कि आम नागरिकों की साइबर सुरक्षा को पुख्ता करने और साइबर आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है, तो इसका एक जवाब मेहदी प्रकरण सामने आने के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इससे संबंधित रिपोर्ट में दिया था. इस रिपोर्ट के अनुसार, सरकार अब स्मार्टफोन व कंप्यूटरों से संचालित होने वाले इंटरनेट के जरिए होने वाली आपराधिक गतिविधियों के नियंत्रण के लिए विशेष कार्यबल बनाने जा रही है.

इस एक्शन टीम में खुफिया ब्यूरो और राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) के तकनीकी जानकार होंगे जो देश के बाहर से चलाई जा रही सोशल साइटों, माइक्रो ब्लॉगिंग साइटों और मल्टी प्लेटफार्म कंटेंट शेयरिंग साइटों की निगरानी करेंगे. इससे पूर्व यूपीए सरकार के समय दो जुलाई, 2013 को एक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति जारी की गई थी जिसमें देश के साइबर सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर की रक्षा के लिए प्रमुख रणनीतियों को रेखांकित किया गया है.

राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति में यह प्रस्ताव भी था कि ट्विटर जैसी विदेशी वेबसाइटें किसी भी भारतीय उपभोक्ता से संबंधित डाटा की होस्टिंग (सूचनाओं का आवागमन) भारत स्थित सर्वरों से ही कर पाएं, अन्यथा नहीं. इस व्यवस्था को अनिवार्य बनाने की योजना थी. साफ है कि इन योजनाओं पर पर्याप्त काम नहीं हुआ, अन्यथा मेहदी जैसे लोग आईएस का ट्विटर अकाउंट या तो भारत में बैठकर संचालित नहीं कर पाते या फिर फौरन पकड़ लिए जाते.

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)

अभिषेक कुमार सिंह
लेखक


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