विकसित भारत का सपना
स्वतंत्रता आंदोलन ने हमारे अंदर यह भाव भर दिया कि राष्ट्र किसी व्यक्ति या संस्था से बड़ा होता है. किंतु विगत कुछ दशकों से यह राष्ट्रीय भाव लुप्त होता जा रहा है.
एपीजे अब्दुल कलाम (फाइल फोटो) |
आज आवश्यकता है कि सभी राजनीतिक दल आपस में सहयोग करते हुए इस ज्वलंत प्रश्न का उत्तर दें कि भारत कब एक विकसित राष्ट्र बनेगा? इसके लिए जरूरी है कि लोगों की सोच में समरसता हो. हमें फिर से यह सोचने और महसूस करने की जरूरत है कि राष्ट्र किसी व्यक्ति या संस्था से बड़ा होता है.
हम लोगों के दिमाग में यह बात घर कर गई है कि हम ‘यह’ नहीं कर सकते. फिर भी देश के विभिन्न संस्थानों में काम करने और मिशन के रूप में चलने वाली परियोजनाओं में कई परिणामों को नजदीक से देखने के बाद मेरा अनुभव यह है कि स्पष्ट उद्देश्य से जब भी हमने कोई लक्ष्य पाने का निर्णय लिया, तब हमने उसे प्राप्त किया. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, दोनों का अनुभव रहा है कि जब भी हम मिशन के रूप में कोई काम करने का संकल्प लते हैं तो हमें हमेशा कामयाबी मिलती है.
जब भी आप मीडिया और अन्य माध्यमों से सांस्कृतिक हमले को महसूस कर बेचैन होते हैं, तब आप महसूस करें कि आप एक शात सभ्यता की संतान हैं. हमने कई हमलों को झेला है. हमारे ऊपर कई वंशों का शासन रहा है, किंतु आज हमारे देश पर ऐसे किसी हमले का खतरा नहीं है और यह आजाद है. जितने भी विदेशी आक्रमण हुए, उनके साथ आने वाली सांस्कृतिक विशेषताओं को हमने अपनाया. आज हमने विविधतापूर्ण सवा सौ करोड़ आबादी की देखरेख के लिए अपने नेतृत्व में महान गुण पैदा कर लिया है. हमारे भीतर धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के प्रति अटूट निष्ठा होनी चाहिए. धर्मनिरपेक्षता हमारी राष्ट्रीयता का आधार है और हमारी सभ्यता का सबल पक्ष है.
सभी धर्मों के नेताओं को एक ही तरह का संदेश देना चाहिए जिससे लोगों के दिलो-दिमाग में एकता का भाव पैदा हो. ऐसा होने पर ही हमारा देश अपने स्वर्णिम युग में प्रवेश करेगा. जब आपके मन में पराजय का भाव उभरे तो आप घबराएं नहीं और महसूस करें कि आप एक महान देश के नागरिक हैं. जब भारत एक परमाणु और प्रक्षेपास्त्र संपन्न देश बन गया तब विकसित देशों ने हमारे ऊपर आर्थिक और प्रोद्यौगिकी प्रतिबंध लगा दिया. हमने अपनी कृषि, प्रौद्योगिकीक और औद्योगिक ताकत के साथ-साथ जनता के उत्साह की बदौलत इस प्रतिबंध को झेल लिया. इस उत्साह को बनाए रखें और इसे गतिशील बनाकर निखारते रहें.
हमने स्वतंत्रता के लिए पहला सपना सन् 1857 में देखा, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीयता के प्रबल भाव का उदय हुआ. लोग मन और उद्देश्य के स्तर पर एक होकर बलिदान के लिए तैयार हो गए. बहुत-से भारतीयों के मन में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विदेशियों से आगे बढ़ने की ख्वाहिश थी. यह महत्वपूर्ण विचार आत्म अभिव्यक्ति की आवश्यकता में परिणत हो गया और यही भाव राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान भारतीय नौजवानों के दिलो-दिमाग पर छा गया.
यह बात राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बन गई कि हम अपनी क्षमता को व्यक्त करें और पश्चिमी देशों को दिखा दें कि हम किसी मायने में उनसे कम नहीं. इस पहले सपने से राजनीतिक, सार्वजनिक जीवन, संगीत, काव्य, साहित्य और विज्ञान सहित सभी क्षेत्रों में स्वतंत्रता आंदोलन ने उच्च स्तरीय नेता दिए. स्वतंत्रता के लगभग छह दशक के बाद भारत को एक विकसित देश बनाने की आकांक्षा लोगों के दिल में उमड़ने लगी है. देश के लिए यह दूसरा सपना है.
इस चुनौती के लिए हम अपने आपको कैसे तैयार करेंगे? हमारा देश इस समय गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजारने वाले अपने करोड़ों नागरिकों की जिंदगी को संवारने की चुनौती का सामना कर रहा है. उन्हें आवास, भोजन, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार की आवश्यकता है. जहां राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में प्रतिवर्ष लगभग छह प्रतिशत की वृद्धि हो रही है, वहीं अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगले एक दशक से अधिक समय तक अर्थव्यवस्था में 10 प्रतिशत वाषिर्क वृद्धि होने से गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों के जीवन स्तर में सुधार होगा.
पांच ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें भारत में प्रतियोगी संभावना है. इनके बीच तालमेल करते हुए प्रयास करने की आवश्यकता है. यह पांच क्षेत्र हैं- कृषि और खाद्यान्न प्रसंस्करण, भरोसेमंद और स्तरीय विद्युत क्षमता, भूतल परिवहन और आधारभूत संरचना, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी; तथा सामरिक क्षेत्र. इन पांच क्षेत्रों के बीच निकट संबंध हैं. इनमें तेजी से विकास होने से राष्ट्रीय, खाद्यान्न और आर्थिक सुरक्षा होगी.
बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देश के प्राकृतिक और मानव संसाधन के पूर्ण दोहन पर बल देना चाहिए. हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि देश की आधी से अधिक आबादी युवकों की है और उनमें बेहतर जीवन स्तर की आकांक्षा है. कृषि, औद्योगिक उत्पादन, सेवा क्षेत्र, राष्ट्रीय मौलिक क्षमता का निर्माण और प्रौद्योगिकी में गुणवत्ता लाकर हम उच्च आय वाले रोजगार की अतिरिक्त संभावना पैदा कर सकते हैं.
मेरे मन में प्रतियोगिताशील विकसित भारत का स्वरूप इस प्रकार है- एक ऐसा देश जहां शहर और गांव के बीच की विभाजन रेखा पतली हो गई हो. जहां ऊर्जा और शुद्ध जल का समान वितरण हो. जहां उद्योग, कृषि और सेवा क्षेत्र के बीच तालमेल हो, प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से स्थायी तौर पर धन का सृजन होता हो और इसके फलस्वरूप अधिक रोजगार का सृजन हो. जहां सामाजिक या आर्थिक विभेद के कारण किसी प्रतिभाशाली को शिक्षा से वंचित न किया जाता हो. ऐसा देश जो प्रतिभाशाली विद्वानों और वैज्ञानिकों के लिए सबसे उपयुक्त जगह हो. करोड़ों लोगों को उत्तम स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो. देश की शासन व्यवस्था जनता की समस्याओं को दूर करने के लिए उत्तम प्रौद्योगिकी का उपयोग करती हो. शासन व्यवस्था में सरल कायदे-कानून हों और वह भ्रष्टाचार मुक्त हो.
संपादित अंश ‘अदम्य साहस’ से साभार
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