भारतीय बाजार में चीन का काला कारोबार

Last Updated 20 Oct 2014 04:07:26 AM IST

दिवाली में चीन निर्मित लक्ष्मी-गणोश, उनके वस्त्र व श्रृंगार के सामान, डिजाइनर दीये, दीये की बत्तियां, रंग-रोगन के सामान, घरौंदे, बच्चों के मिट्टी से बने खिलौने से बाजार भरे पड़े हैं.


भारतीय बाजार में चीन का काला कारोबार (फाइल फोटो)

चीनी सामान जैसे कागज से बने सजावट के सामान, सजावट के इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण आदि सामानों से बाजार पटा पड़ा है. विक्रेताओं ने बड़े-बड़े अक्षरों में लिख रखा है, ‘खरीदए और भूल जाइए‘. यानी सामान की कोई गारंटी नहीं है. बावजूद इन्हें खरीदने के लिए लोगों में होड़ मची है. 

दिवाली पर्व को धूमधाम से मनाने की परंपरा भारत में रही है. इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. कारोबार की दृष्टि से भी यह त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण है. इसीलिए चीन दिवाली में होने वाले कारोबार पर अपना कब्जा जमाना चाहता है. पटाखा और इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार पर चीन का कब्जा हो भी गया है. गौरतलब है कि चीनी पटाखों पर सरकार ने रोक लगा रखी है. फिर भी इनकी खरीद-फरोख्त धड़ल्ले से की जा रही है.

\"\"गैरकानूनी तरीके से भारत आने के कारण चाइना मेड पटाखे असंगठित क्षेत्र में बिक रहे हैं, जिसके कारण पटाखों के देसी कारोबार में नरमी आई है. मालूम हो कि दिल्ली स्थित सदर बाजार, जामा मस्जिद का बाजार से दिल्ली-एनसीआर समेत अन्य पड़ोसी राज्यों को बड़े पैमाने पर पटाखों की आपूर्ति की जाती है. लेकिन इस बार इनका कारोबार मंदा है. चाइनीज पटाखों पर रोक है, फिर भी इनकी उपलब्धता बाजार में सुलभ है. इस वजह से संगठित बाजार में पटाखों की बिक्री पिछले साल के मुकाबले तकरीबन 40 प्रतिशत तक कम हुई है. स्पष्ट है, अवैध तरीके बेचे जा रहे चीनी पटाखों की मार देसी पटाखा कारोबारियों पर पड़ रही है.

इस साल पटाखे ज्यादा महंगे नहीं हुए हैं, फिर भी इनकी बिक्री कम है. कमोबेश, ऐसे ही विषम हालत का सामना दिवाली से जुड़े दूसरे उत्पादों की बिक्री में संगठित क्षेत्र के कारोबारी कर रहे हैं. चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के बाजार में आने के कारण दिल्ली का सदर बाजार, दिल्ली-एनसीआर के बाजार समेत तमाम राज्यों में बड़े पैमाने पर इनकी अवैध तरीके से खरीद-बिक्री की जा रही है. इससे देसी उत्पादों का कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. भारत में बिकने वाले ब्रांडेड कंपनियों के सजावटी इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, सामान्य बल्ब, सीएफएल, एलईडी एवं दूसरे सामान नहीं बिक पा रहे हैं. ब्रांडेड इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण बेचने वाले दुकानदार भी दिवाली में चाइनीज माल बेचने पर मजबूर हैं क्योंकि ग्राहकों की पहली पसंद चाइना मेड सामान है. दिवाली में उपयोग किए जाने वाले दूसरे सामानों का भी कमोबेश यही हाल है. चीनी सामानों की खरीद-फरोख्त प्रशासन की नाक के नीचे हो रही है, लेकिन सरकार सब कुछ जानते हुए भी अंजान बनी हुई है.

चाइना मेड सामानों की लोकप्रियता का मूल कारण इनकी सस्ती दर पर उपलब्धता और हम लोगों का लालच है. हम भले ही देशभक्त होने की दुहाई देते हैं लेकिन ग्राहक के रूप में हमारा व्यवहार ठीक इसके उलट है. मोटे तौर पर दुकानदार चाइनीज सामानों को खरीदने पर कोई बिल नहीं देते हैं या फिर कच्चा बिल देते हैं. अमूमन ग्राहक भी टैक्स बचाने के लिए इसका विरोध नहीं करते हैं. अनेक ग्राहक दुकानदार से बिल मांगने की जहमत तक नहीं उठाते हैं. चीन के इस काले कारोबार में चाइना मेड उत्पादों की आपूर्ति अवैध तरीके से नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि देशों के रास्ते से की जा रही है. सरकार इन सामानों के खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं लगा पा रही है जिससे देश को हर साल अरबों-खरबों रुपए का नुकसान हो रहा है.

उल्लेखनीय है कि राजनीतिक मापदंडों और दिशा-निर्देशक सिद्धांतों को अमल में लाने के लिए भारत और चीन के बीच वर्ष 2005 में समझौता हुआ था, जिसका शुरू से ही चीन उल्लंघन कर रहा है. बावजूद इसके भारत औद्योगिक निवेश, आधारभूत संरचना के विकास, ऊर्जा संरक्षण, पर्यावरण की सुरक्षा, सूचना एवं प्रौद्योगिकी, स्मार्ट शहर आदि क्षेत्रों में परस्पर सहयोग से विकास करना चाहता है. दरअसल, नई सरकार को लग रहा है कि चीन के साथ भारत के रिश्ते मजबूत हो सकते हैं, लेकिन सामरिक और व्यापारिक, दोनों फ्रंटों पर चीन बार-बार भारत को सबक सिखा रहा है.

एक तरफ चीनी सैनिक भारत में घुसपैठ कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौता लाख कोशिशों के बाद भी महज 20 अरब डॉलर का ही हो सका. भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा फिलहाल 35 अरब डॉलर का है. इसका मतलब है कि भारत चीन से आयात, निर्यात के मुकाबले अधिक कर रहा है. अगर भारत चीन को निर्यात अधिक करता तो उसके विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा होता और देश के बुनियादी ढांचे को मजबूती मिलती. असल में चीन जानता है कि भारत उसका मुकाबला नहीं कर सकता क्योंकि वह तकनीक और अनुशासन के मामले में भारत से बेहतर है. दोनों देश लगभग एक साथ आजाद हुए थे, लेकिन आज चीन भारत से लगभग हर मामले में आगे है. इस वजह से वह भारत के साथ संतुलित द्विपक्षीय व्यापार समझौता नहीं करना चाहता है.  
 
चीन में फिलवक्त नौ प्रतिशत की दर से आथिर्क विकास हो रहा है. विकास के विविध मानकों पर उसने अच्छा काम किया है, लेकिन मुश्किलें वहां भी हैं. जानकारों के मुताबिक 2008 में आए वैश्विक वित्तीय संकट ने चीन को बुनियादी विकास एवं आवास क्षेत्र पर जरूरत से ज्यादा खर्च करने पर मजबूर कर दिया था, जिसका दुष्परिणाम वहां की अर्थव्यवस्था पर अब परिलक्षित हो रहा है. रेटिंग एजेंसी फिच के अनुसार 2008 के वित्तीय संकट को समाप्त हुए भले ही एक लंबा समय बीत गया है, लेकिन चीन में किए जाने वाले निवेश की दर में लगातार कमी आ रही है. ऐसे में चीन अपनी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए विकासशील देशों, जैसे दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और भारत आदि देशों को अरबों डॉलर के निवेश का लालच देकर उनके बाजार पर कब्जा करना चाहता है, जिसके लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है.  

मौजूदा समय में पूरे विश्व की नजर भारतीय बाजार पर है क्योंकि यहां का बाजार बहुत ही बड़ा है. साथ ही, इसका बहुत बड़ा हिस्सा आज भी अनछुआ है. चीन की नजर इसी बाजार पर है क्योंकि आज की तारीख में सामरिक रूप से ताकतवर होने के लिए आर्थिक रूप से मजबूत होना जरूरी है. इस तथ्य से चीन अच्छी तरह से वाकिफ है. इसीलिए वह भारत में अपने काले कारोबार को बढ़ावा दे रहा है, जो हमारी सरकार की लापरवाही और भारतीय ग्राहकों की लालच के वजह से लगातार फल-फूल रहा है. लिहाजा, इस आलोक में सरकार को सतर्कता बरतने, मेक इन इंडिया की संकल्पना को साकार करने की दिशा में अग्रसर होने के साथ-साथ भारतीय ग्राहकों को भी अपने लालची स्वभाव को तिलांजलि देना होगा, तभी हम चीन के नापाक मंसूबों को नाकाम करने में कामयाब हो सकेंगे. 

सतीश सिंह
लेखक


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