देश की ब्यूटी, आपकी भी ड्यूटी

Last Updated 22 Sep 2014 03:56:23 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से आह्वान किया है कि वे देश को साफ-सुथरा बनाने में सरकार की मदद करें.


देश की ब्यूटी, आपकी भी ड्यूटी

भारत साफ होगा तो स्वस्थ भी होगा क्योंकि सफाई और स्वास्थ्य का गहरा संबंध है. उन्होंने नारा भी दिया है- स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत. इस काम को पूरा करने के लिए समय निर्धारित करते हुए उन्होंने कहा कि 2019 में गांधी जी की 150 वीं जयंती तक सारा देश साफ-सुथरा हो जाए क्योंकि गांधी जी को सफाई बहुत पसंद थी. उन्होंने कहा कि जिस तरह दिवाली पर हम अपने घर को साफ करते हैं, क्यों न पूरे देश को साफ करने का प्रयास करें. देश का हर नागरिक साल में कम से कम सौ घंटे सफाई को दे. उन्होंने यह भी कहा कि अगर देश साफ रहेगा तो बीमारियों का प्रसार घटेगा. इससे लोगों के इलाज पर आने वाला खर्चा बचेगा.

भारत को सफाई के मामले में विश्व के स्तर पर पहुंचना होगा. देश के पचास पर्यटन स्थलों में सफाई की व्यवस्था विश्व स्तर की करनी होगी, तभी भारत के बारे में दुनिया के लोगों की धारणा बदलेगी और हमारा पर्यटन बढ़ेगा. देश के पांच सौ शहरों में सरकारी और निजी भागीदारी से सफाई करनी होगी. यही नहीं, सफाई को आर्थिक गतिविधियों से भी जोड़ा जा सकता है जिससे कि आय के साधन बनें.

प्रधानमंत्री का सफाई के प्रति इस तरह का आग्रह बहुत अच्छी बात है क्योंकि इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने सफाई को लेकर इतनी चिंता नहीं प्रकट की. यह सच बात है कि जब हमारे यहां से कोई यूरोपीय देशों में या अमेरिका जाता है तो वहां की सफाई देखकर चकित रह जाता है. प्रधानमंत्री मोदी जब कह रहे हैं कि हर नागरिक सफाई के प्रति जवाबदेह हो तो वह सही कह रहे हैं. विदेशों में हमारी तरह कोई सड़कों पर कूड़ा फैलाता नहीं चलता. नमकीन खाया और रेपर बाहर फेंक दिया. गुटखा मुंह में डाला और रेपर कहीं भी फेंक दिया. पान खाया और पीक कहीं भी थूक दी.

अपने घर का कूड़ा चुपके से दूसरे के घर के सामने खिसका दिया. बल्कि पश्चिमी देशों में तो यह देखने को मिलता है कि अगर आप अपने हाथ के कूड़े को सड़क पर फेंक दें तो आप से पीछे चलने वाला उसे कूड़ेदान में डाल देता है और आगे बढ़ जाता है. आपके फैलाए कूड़े को उठाने से न तो उसका ईगो हर्ट होता है, न ही वह आपको बुरा-भला कहते हुए लड़ने को आता है. वह अपने शहर की सफाई को अपनी भी जिम्मेदारी समझता है. जबकि हमारे यहां नागरिकों की हालत यह है कि वे सारी जिम्मेदारी सरकार की समझते हैं. कूड़ा फैलाएं हम और उठाए सरकार. शहर को, अस्पताल, बस अड्डे, रेलवे स्टेशनों, पार्क, चिड़ियाघर, पुल, नदियां- हर सार्वजनिक स्थान, वस्तु, यहां तक की प्राकृतिक तोहफों तक को हम इतना गंदा करते हैं कि इन जगहों पर खड़ा होना भी मुश्किल होता है. लेकिन अपनी फैलाई इस गंदगी के लिए कभी हम खुद को दोष नहीं देते. जब देखो तब सरकार के दोष गिनाते हैं.

देखा गया है कि जब तक हमारे यहां लोगों को किसी चीज का डर न दिखाया जाए तब तक वे नहीं मानते. कानून का डंडा या दंड का भय दिखाए बगैर सामान्य लेकिन बेहद जरूरी बातें भी लोगों की समझ में नहीं आतीं. तमाम तरह के उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को यह बात अच्छी तरह से मालूम है. इसीलिए वे डर दिखाकर हमारे लोगों को अपने उत्पाद बेचती हैं. किसी तेल को बेचने के लिए हार्ट अटैक का डर दिखाती हैं, किसी पालिसी को बेचने के लिए बीमारी और बुढ़ापे का. तुलसीदास ने बहुत पहले लिखा था- भय बिन होय न प्रीत. यानी कि अगर भय न हो तो प्रेम भी नहीं होता. यह बात सैकड़ों साल बाद भी हम पर बेहद सही ढंग से लागू होती है. इसीलिए सफाई की महत्ता बताने के लिए गंदगी से होने वाले रोगों के बारे में बताना और उनका डर दिखाना आवश्यक है. इससे लोग सतर्क होंगे और साफ-सफाई का ध्यान रखेंगे. इसके अलावा गंदगी फैलाने वालों पर भारी जुर्माना भी लगना चाहिए. लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि यह जुर्माने का प्रावधान पुलिस की जेब भरने का साधन बन जाए. क्योंकि अकसर देखा गया है कि हर नया कानून हमारी पुलिस के लिए भारी कमाई के नए रास्ते खोल देता है.
भय के अलावा अपनेपन से भी बहुत से काम होते हैं. जैसे कि यदि सरकारी और निजी भागीदारी से लोगों में पार्क, अस्पताल, बस अड्डों के बारे में यह धारणा विकसित की जा सके कि ये स्थान आपकी सुविधा के लिए ही हैं, इन्हें गंदा मत कीजिए, किसी गंदी जगह पर तो आप नहीं बैठना चाहेंगे, तो हो सकता है कि लोग कुछ जागरूक हो जाएं.

और सबसे महत्वपूर्ण बात सफाई को आर्थिक गतिविधि यानी कि रोजगार से जोड़ने की है. कूड़े को रिसाइकल करके तरह-तरह की चीजें बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है. जैसे कि मध्य प्रदेश के कुछ शहरों में पालिथीन से सड़क बनाने का काम किया जा रहा है. इससे लोगों को पालिथीन इकट्ठा करने का काम मिला है. साथ ही शहर भर में फैले पालिथीन गायब होते जा रहे हैं. ये सड़कें अपने शहर के ही कच्चे माल से तैयार होती हैं, इससे लागत भी कम आती है.
 दिल्ली में भी ऐसी बहुत-सी योजनाओं पर काम चल रहा है. इधर-उधर फैले मलबे से टाइल्स बनाने की योजना है. कूड़े से बिजली बनाई जाएगी.

गौरतलब है कि जहां कूड़े की अधिकता हमारे लिए समस्या है, वहीं बिजली की किल्लत भी. ऐसे में यदि कूड़े से बिजली बनने लगे तो एक साथ दो बड़ी समस्याओं का हल पाया जा सकता है. बड़े होटलों, अस्पतालों आदि से कहा जा रहा है कि वे अपने यहां उपयोग किए जाने वाले पानी को दोबारा उपयोग लायक बनाएं. इससे गंदा पानी नालों में जाकर नदियों और भूमि जल को प्रदूषित नहीं करेगा. कायदे से तो होना यह भी चाहिए कि बिल्डर्स के लिए किसी भी नई योजना को शुरू करने से पहले रेन वाटर हारवेस्टिंग को अनिवार्य कर दिया जाए. साथ ही फ्लैट्स में उपयोग होने वाले पानी की रिसाइक्लिंग करके उसे बागवानी आदि के कामों में लाने की व्यवस्था की जाए. सड़कों के आसपास ऐसे कूड़ेदानों की व्यवस्था की जाए जिनसे आसपास बदबू न फैले. साथ ही उनमें कूड़ा आसानी से डाला जा सके.

दिल्ली को साफ-सुथरा बनाने के लिए कुछ नारे भी तैयार किए गए हैं- दिल्ली की ब्यूटी आपकी ड्यूटी, थू-थू कुमार न बनें, कूड़ा कुमार न बनें. अन्य शहरों की नगर पालिकाएं अपने शहरों के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था कर सकती हैं. जामिया  मिलिया इस्लामिया के पास कुछ पढ़े-लिखे नौजवान अपने घर के आसपास, सड़कों की सफाई खुद करते हैं. उनका कहना है कि इससे उन्हें अच्छा लगता है. वे चाहते हैं कि दूसरे भी अगर ऐसा ही करने लगें तो देश में कहीं गंदगी दिखाई नहीं देगी. इन नौजवानों से देश के दूसरे नौजवान भी सबक ले सकते हैं.

क्षमा शर्मा
लेखिका


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