शपथग्रहण समारोहों की भाव-भूमिका

Last Updated 27 Jul 2014 12:15:14 AM IST

शपथग्रहण समारोह औपचारिक होते हैं लेकिन इनकी भाव-भूमिका विवेकपूर्ण होती है.


हृदयनारायण दीक्षित, लेखक

प्राचीन भारतीय वांग्मय में राजा के भावप्रवण शपथ समारोहों की चर्चा है. भौतिकवादी दृष्टिकोण से ये कोरे कर्मकाण्ड हैं. लेकिन शपथ की अपनी महत्ता है. पदधारक सार्वजनिक रूप में अपने कर्त्तव्यपालन की शपथ लेते हैं. शपथ तोड़ते हैं तो उनकी सार्वजनिक निंदा भी होती है. भारतीय संविधान निर्माताओं ने शपथ को महत्वपूर्ण माना है. विधायक-सांसद भी शपथ लिए बिना सदन में स्थान नहीं पाते. संविधान की हरेक संस्था पर आसीन लोग शपथ के लिए बाध्य किए गए हैं. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिगण, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अन्य सभी मंत्रिगण. शपथी और उनके अंतरंगों के लिए शपथ ग्रहण की भावभूमि बड़ी अंत:स्पर्शी होती है.

सारा भव्य दिव्य नहीं होता लेकिन सारा दिव्य भव्य ही होता है. उत्तर प्रदेश के 28वें राज्यपाल का शपथग्रहण समारोह इसी सप्ताह हुआ. राम नाइक महाराष्ट्र के जमीनी सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे संविधान निष्ठ, लोकनिष्ठ और संस्कृतिनिष्ठ हैं. सुपरिचित के प्रति तटस्थ भाव रखना कठिन होता है. मैं शपथ समारोह में गया. इसे तटस्थ भाव से ही देखने की तैयारी में था. हमने लक्ष्य किया कि वे नए उत्तरदायित्व के प्रति सजग हैं. साधारण सामाजिक कार्यकर्ता की तरह वे हम लोगों के बीच से मंच तक गए. राष्ट्रगान की भावप्रवण धुन बजाई गई. हम सब मात्र साक्षी थे इस समारोह के, लेकिन राष्ट्रगान की धुन पर तटस्थ साक्षी नहीं रह गए. समूचा भारत प्रत्यक्ष हुआ. उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने शपथ कराई. संविधान निर्माता बार-बार याद आए. मन में संविधान सभा जीवंत हो गई. डॉ. राजेंद्र प्रसाद अध्यक्ष, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और नजीरूद्दीन अहमद आदि अनेक पूर्वज वाद-विवाद-संवाद करते सामने आए.

ऋग्वेद में एक प्यारा मंत्र है- मैं ऋषियों को नमस्कार करता हूं, मैं मार्गद्रष्टा पूर्वजों, अग्रजों को नमस्कार करता हूं, वे हमारा पथ प्रदर्शन करते हैं. पूर्वजों ने शपथग्रहण का पुरोहित बहुत सोच-समझकर तय किया है. राज्यपाल की शपथ के लिए मुख्य न्यायाधीश. संविधान का व्याख्याता, संरक्षक और अभिभावक. राम नाइक ने संविधान के अनुसार शपथ ली- मैं राम नाइक ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं श्रद्धापूर्वक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के पद का कार्यपाल करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करुंगा और मैं उत्तर प्रदेश की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा. शपथ के शब्द बड़े महत्वपूर्ण हैं. इसमें संविधान और विधि के परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण, तीन शब्द एक जैसे आए हैं. अंग्रेजी में प्रिजर्व, प्रोटेक्ट और डिफेंड हैं. इन शब्दों का अर्थ समूची राज्य-व्यवस्था को आच्छादित करता है. केवल संविधान का ही नहीं विधि का भी परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण सम्मिलित है. राम नाइक जब मंच तक गए तो राज्यपाल नहीं थे, बेशक मनोनीत थे लेकिन परिपूर्ण राज्यपाल नहीं. शपथ के बाद वे राज्यपाल थे. उनमें संवैधानिक प्राधिकार निहित हो गया.

राम नाइक सरल हैं और तरल व विरल भी. राज्यपाल के रूप में उनके कामकाज को लेकर अनेक अनुमान किए जा रहे हैं. अनेक राजनीतिक कयास भी लगाए जा रहे हैं. उन्होंने निवर्तमान राज्यपाल के एक फैसले पर पुनर्विचार की बात खारिज की. स्वयं के लिए बताया कि वे केंद्र व राज्य के मध्य सेतु हैं. सेतु शब्द का प्रयोग भी ध्यान देने योग्य है. सेतु जोड़ता है. योजक होता है. जोड़ना भारतीय संस्कृति है. 1949 की 18 मई को राज्यपालों का सम्मेलन हुआ था. गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी ने राज्यपालों से कहा था आप स्वयं को प्रतीक मात्र न मानें. आप शुभ कार्य के लिए अपने प्रभाव का विस्तार करें. लोकतंत्र को गतिशील बनाने के लिए. बिना किसी संघर्ष के साथ. इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री पंडित नेहरू व उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल भी उपस्थित थे. राम नाइक अपनी नई जिम्मेदारी में सफल होंगे. सभी राज्यपालों से भी यही उम्मीद हैं. शपथ समारोहों की भाव भूमिका भी यही है. वे भव्य के साथ दिव्य भी हैं.



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